
Dedicated freight corridor : भारतीय रेलवे अपने माल ढुलाई नेटवर्क को नया आकार देने के लिए 1.5 लाख करोड़ रुपये की लागत से तीन नए डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर (DFC) बनाने की योजना पर काम कर रहा है। इन फ्रेट कॉरिडोर के लिए डिटेल्ड प्रोजेक्ट रिपोर्ट (DPR) तैयार हो चुकी है और अभी इसकी जांच चल रही है। यह योजना रेलवे के माल ढुलाई नेटवर्क की गति और क्षमता बढ़ाने के उद्देश्य से बनाई गई है।
तीन प्रमुख कॉरिडोर की योजनाएं इस प्रकार हैं:
पूर्वी तट कॉरिडोर: 1,115 किलोमीटर लंबा, खड़गपुर से विजयवाड़ा तक।
ईस्ट-वेस्ट कॉरिडोर: 1,673 किलोमीटर लंबा, भुसावल और दनकुनी के बीच।
नॉर्थ-साउथ सब-कॉरिडोर: 975 किलोमीटर लंबा, विजयवाड़ा, नागपुर और इटारसी को जोड़ने वाला।
इन तीन कॉरिडोरों में से कम से कम एक को हरी झंडी मिलने की संभावना है, जिसका फैसला तकनीकी पहलुओं, ट्रैफिक क्षमता और फंड की उपलब्धता के आधार पर होगा। विशेषज्ञों का मानना है कि इस प्रस्ताव को आगामी केंद्रीय बजट में शामिल किया जा सकता है, जिसमें वित्तीय वर्ष 2027 के लिए सांकेतिक फंड अलॉट किया जा सकता है।
इन नए प्रोजेक्ट्स का उद्देश्य पहले से मौजूद 1,337 किलोमीटर लंबे पूर्वी और 1,506 किलोमीटर लंबे पश्चिमी डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर के काम को और आसान बनाना है। वर्तमान में पश्चिमी कॉरिडोर का 1,404 किलोमीटर हिस्सा शुरू हो चुका है, और वैतरणा से जवाहरलाल नेहरू पोर्ट ट्रस्ट (JNPT) तक के 102 किलोमीटर का हिस्सा भी जल्द ही शुरू होने वाला है।
भारत के फ्रेट और लॉजिस्टिक्स मार्केट में बड़ी वृद्धि की संभावना जताई जा रही है, और ‘नेशनल रेल प्लान’ के तहत सरकार का लक्ष्य है कि 2030 तक रेलवे की माल ढुलाई में हिस्सेदारी बढ़ाकर 45% तक पहुंचाई जाए। विशेषज्ञों का कहना है कि पूर्वी तट कॉरिडोर को प्राथमिकता दी जा सकती है, क्योंकि यह रेलवे की कमाई में सबसे अधिक योगदान दे सकता है, खासकर ओडिशा-छत्तीसगढ़ क्षेत्र के खनिजों के ट्रांसपोर्ट के लिए।
हालांकि, कुछ एक्सपर्ट्स का मानना है कि रेलवे को नए फ्रेट कॉरिडोर में पैसा लगाने के बजाय मौजूदा नेटवर्क को अपग्रेड करना चाहिए, जिससे मालगाड़ियों की गति को 100 किमी/घंटा तक बढ़ाया जा सके और यात्री ट्रेनों की गति 120 किमी/घंटा हो। इससे माल ढुलाई में समय की बचत होगी और रेलवे का रेवेन्यू बढ़ सकता है।









