
2013 में बुक किया गया फ्लैट, लेकिन निर्माण शुरू नहीं हुआ
2013 में एक दंपत्ति ने गुड़गांव में एक बिल्डर से फ्लैट बुक किया, जिसकी कीमत 1.16 करोड़ रुपये थी। उन्होंने 12 लाख रुपये की बुकिंग राशि और 2014 में 95 लाख रुपये का भुगतान किया। कुल मिलाकर, उन्होंने 1.07 करोड़ रुपये चुकाए। लेकिन जब उन्होंने फ्लैट देखने का सोचा, तो यह देखकर हैरान रह गए कि निर्माण कार्य भी शुरू नहीं हुआ था।
पुनः निवेश के झांसे में फंसे खरीदार
जब खरीदार ने बुकिंग रद्द कर अपनी राशि वापस मांगनी चाही, तो बिल्डर ने उन्हें एक और प्रोजेक्ट में 1.55 करोड़ रुपये में फ्लैट खरीदने के लिए मना लिया। लेकिन यह फ्लैट भी समय पर तैयार नहीं हुआ। इस दौरान, बिल्डर ने दो बार खरीदार को अन्य प्रोजेक्ट्स में फ्लैट लेने के लिए मना लिया।
खरीदार ने हरियाणा रेरा में दर्ज कराई शिकायत
बिल्डर द्वारा बार-बार फ्लैट डिलीवरी में देरी और 10 साल तक निर्माण कार्य पूरा न करने से परेशान होकर खरीदार ने हरियाणा रेरा (RERA) में शिकायत दर्ज कराई। उन्होंने 1.07 करोड़ रुपये की वापसी और ब्याज के साथ मुआवजे की मांग की।
रेरा ने बिल्डर को झूठ बोलते हुए पकड़ा
बिल्डर (मेसर्स अंसल हाउसिंग एंड कंस्ट्रक्शन लिमिटेड, जिसे अब न्यू लुक बिल्डर्स एंड डेवलपर्स प्राइवेट लिमिटेड के नाम से जाना जाता है) ने ‘फोर्स मेज्योर’ का हवाला देते हुए कहा कि लॉकडाउन के कारण निर्माण में देरी हुई। हालांकि, हरियाणा रेरा ने पाया कि यह दावा झूठा है क्योंकि लॉकडाउन 23 मार्च 2020 को शुरू हुआ, जबकि बिल्डर ने जनवरी 2021 में नया समझौता किया था।
रेरा का आदेश: 2.26 करोड़ रुपये की वापसी और मुआवजा
रेरा ने सेक्शन 2(za), रूल 15, सेक्शन 11(4)(a), सेक्शन 18(1), और दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले (मेसर्स हैलिबर्टन ऑफशोर सर्विसेज इंक बनाम वेदांता लिमिटेड) का हवाला देते हुए बिल्डर को खरीदार को 2.26 करोड़ रुपये (1.07 करोड़ रुपये की वापसी और 11.1% ब्याज के साथ) चुकाने का आदेश दिया।
10 साल में तीन बार बदली गई फ्लैट बुकिंग
रेरा की जांच में पाया गया कि खरीदार की बुकिंग तीन बार अलग-अलग प्रोजेक्ट्स में स्थानांतरित की गई।
- 2013: यूनिट नंबर 3016 बुक की गई।
- 2017: इसे सेक्टर-67 के प्रोजेक्ट में यूनिट नंबर E-2144 में बदला गया।
- 2021: तीसरी बार यूनिट नंबर 1571-D में बुकिंग स्थानांतरित की गई।
फ्लैट की डिलीवरी में देरी और रेरा का निष्कर्ष
रेरा ने कहा कि बिल्डर ने फ्लैट की डिलीवरी के लिए जुलाई 2022 की तारीख तय की थी, लेकिन वह ऑक्यूपेंसी सर्टिफिकेट भी हासिल नहीं कर सका। यह खरीदार के साथ अन्याय और अनुबंध की शर्तों का उल्लंघन है।
खरीदार के लिए न्याय की जीत
हरियाणा रेरा के इस फैसले ने न केवल खरीदार को न्याय दिलाया, बल्कि यह अन्य खरीदारों के लिए भी एक मिसाल बन गया है, जो रियल एस्टेट सेक्टर में धोखाधड़ी का शिकार होते हैं।
रेरा के नियम 15 के तहत ब्याज सहित धनवापसी के प्रावधान
नियम 15: धनवापसी के लिए निर्धारित ब्याज दर
रेरा के नियम 15 के अनुसार, यदि कोई आवंटी परियोजना से हटने की इच्छा रखता है और धनवापसी मांगता है, तो उसे स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI) की सबसे अधिक मार्जिनल कॉस्ट ऑफ लेंडिंग रेट (MCLR) + 2% ब्याज दर पर धनवापसी का अधिकार है।
नियम 15 का मुख्य अंश:
- यह प्रावधान रेरा अधिनियम की धारा 12, धारा 18, और धारा 19 (4) और (7) के तहत लागू होता है।
- यदि SBI की MCLR उपयोग में नहीं है, तो इसे उस बेंचमार्क लेंडिंग रेट से बदला जाएगा, जिसे SBI समय-समय पर आम जनता के लिए निर्धारित करेगा।
मामले का प्रमुख कानूनी निष्कर्ष
1. ब्याज का भुगतान प्रत्येक किस्त के भुगतान की तिथि से:
इस निर्णय में यह स्पष्ट किया गया कि डेवलपर को ब्याज का भुगतान प्रत्येक किस्त के भुगतान की तिथि से करना होगा, न कि अंतिम समझौते में निर्दिष्ट डिलीवरी तिथि (21 जुलाई 2022) से।
2. महामारी को ‘फोर्स मेज्योर’ के रूप में नहीं माना गया:
चूंकि खरीदार का अंतिम समझौता जनवरी 2021 में हुआ था, जो मार्च 2020 में घोषित लॉकडाउन के बाद का है, रेरा ने यह माना कि महामारी को डिलीवरी में देरी के लिए ‘फोर्स मेज्योर’ का आधार नहीं माना जा सकता।
3. ब्याज दर आदेश की तिथि पर लागू दर के अनुसार तय हुई:
ब्याज दर SBI के MCLR के आधार पर तय की गई। आदेश की तिथि (11 दिसंबर 2024) पर लागू दर 9.8% थी, जबकि डिफ़ॉल्ट की तिथि (21 जुलाई 2022) पर यह दर 7.8% थी।
विशेषज्ञों की राय
अविक्षित मोरल, पार्टनर, S&R एसोसिएट्स:
“इस मामले में यह महत्वपूर्ण था कि ब्याज का निर्धारण भुगतान की तारीख से हुआ और महामारी को देरी के लिए जिम्मेदार नहीं माना गया। इसके अलावा, ब्याज दर आदेश की तारीख पर लागू दर के अनुसार तय की गई, जिससे खरीदारों को अधिक मुआवजा मिला।”
यह निर्णय रेरा के नियम 15 के तहत खरीदारों के अधिकारों को सशक्त करता है और डेवलपर्स को उनकी देरी के लिए जिम्मेदार ठहराता है। यह मामला उन खरीदारों के लिए एक मिसाल है, जो समय पर डिलीवरी न मिलने पर धनवापसी और मुआवजा मांग रहे हैं।









