
श्री मदभागवत पुराण में उल्लेख किया गया है कि विष्णु भगवान का चौबीसवा अवतार संभल में कल्कि अवतार के रूप में कलियुग के अंत में होगा.
मुस्लिम बहुल संभल लोकसभा सीट 2019 में समाजवादी पार्टी के खाते में गई थी लेकिन इस बार उसका बीजेपी और बीएसपी से त्रिकोणीय मुकाबला है. यहां गौर करने वाली बात यह है कि सपा और बसपा के दोनों प्रत्याशी मुस्लिम समुदाय से ताल्लुक रखते है.
संभल लोकसभा सीट 1977 में अस्तित्व में आई. गंगा किनारे बसे इस क्षेत्र में शुरुआत में बहजोई, संभल व बदायूं जिले के गुन्नौर और बिसौली क्षेत्र शामिल थे. उस समय सीट यादव बहुल मानी जाती थी. 2009 में परिसीमन के बाद संभल से बिसौली और गुन्नौर सीट को अलग कर बदायूं सीट में शामिल कर दिया गया.

इन सीटों की जगह संभल में मुरादाबाद की कुंदरकी और बिलारी सीटों को जोड़ा गया. इससे इस लोकसभा सीट पर यादव मतदाताओं की संख्या घटी, लेकिन मुस्लिमों मतों की संख्या में बढ़ोत्तरी हुई. 1977 में अस्तित्व में आने के बाद, संभल लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र ने जनता पार्टी, कांग्रेस, जनता दल, बहुजन समाज पार्टी समाजवादी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी जैसी कई पार्टियों के नेताओं को विजेता बनाया है. यह कृषि उत्पादों का व्यावसायिक केंद्र भी है. हड्डी और लकड़ी शिल्प के साथ ही चीनी उद्योग के लिए मशहूर संभल लोकसभा क्षेत्र में लोकतंत्र के आगमन के साथ ही नए राजनीतिक समीकरण लिखे गए हैं.
2019 के लोकसभा चुनाव में जब राज्य में मोदी लहर थी, तब समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार शफीकुर रहमान बर्क ने संभल सीट पर भाजपा उम्मीदवार परमेश्वर लाल सैनी को 2 लाख से अधिक वोटों से हराकर जीत हासिल की. 2014 में, भाजपा ने पहली बार यह सीट जीती थी. जब भाजपा उम्मीदवार सत्यपाल सैनी 5000 वोटों से कुछ अधिक के मामूली अंतर से जीत गए थे. 18.92 लाख मतदाताओं वाले संभल लोकसभा क्षेत्र में सबसे ज्यादा मुस्लिम मतदाताओं की आबादी 9 लाख है.

मुस्लिमों के अलावा दलित 3 लाख, सैनी 1.5 लाख, जाट 1 लाख, ठाकुर 1 लाख, यादव 80 हजार, वैश्य 80 हजार, ब्राह्मण 70 हजार और दूसरे तबकों के मतदाता हैं. आधे से ज्यादा मुस्लिम आबादी वाले संभल सीट पर इस बार का चुनाव बेहद रोमांचक होने की उम्मीद है.
यहां से पिछला चुनाव जीते पुराने दिग्गज नेता डॉ. शफीकुर्रहमान बर्क के निधन के बाद सपा ने उनके पोते जियाउर्रहमान बर्क पर दांव लगाया है. सपा प्रत्याशी जियाउर्रहमान बर्क कुंदरकी के विधायक हैं. सपा प्रत्याशी जियाउर्रहमान बर्क ने मुस्लिमों को ज्यादा से ज्यादा अपने पाले में लाने के लिए अतिवादी बयानो का सहारा ले रहे है. उन्होंने 30 अप्रैल को खुलेआम अतीक, मुख्तार अंसारी और बिहार के शहाबुद्दीन को अपना रोल माडल बताया. जियाउर्रहमान बर्क धार्मिक कट्टरतावाद का दामन ओढ़कर कोशिश करने में लगे है कि किसी भी सूरत में मुस्लिम मतों का बटवारा न हो सके. उधर, भाजपा ने परमेश्वर लाल सैनी पर और बसपा ने पूर्व विधायक सौलत अली पर दांव लगाया है. सौलत अली शेखजादा बिरादरी से आते हैं. भाजपा ने सपा के किले में सेंध लगाने के लिए अपने कैडर को सक्रिय कर दिया है और सत्तारूढ़ पार्टी के शीर्ष नेता निर्वाचन क्षेत्र में प्रचार कर रहे हैं.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 19 फरवरी को श्री कल्कि धाम मंदिर की नींव रखी थी. इसमें प्रभावशाली पूर्व कांग्रेसी नेता आचार्य प्रमोद के समर्थन से भाजपा कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ा है. भाजपा के रणनीतिकारों को उम्मीद है कि हिंदुत्व कार्ड को उच्च जाति के ब्राह्मण, राजपूत, वैश्य के साथ-साथ गैर-यादव ओबीसी गुर्जर, लोध, कुर्मी, जाट, और दलितों का समर्थन मिलेगा, जो कुल मिलाकर लगभग 50% मतदाता हैं.
समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव ने 1998 और 1999 के लोकसभा चुनाव में दो बार संभल सीट जीती थी, जबकि राष्ट्रीय महासचिव रामगोपाल यादव ने 2004 में इस सीट पर विजय हासिल की थी. इस बार, सपा को यादव और मुस्लिम मतदाताओं के समर्थन से सीट बरकरार रखने की उम्मीद है. समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ने बर्क की मृत्यु के बाद निर्वाचन क्षेत्र का दौरा किया था. समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने 28 अप्रैल को कभी यादव परिवार के गढ़ रहे संभल में जनसभा करके पार्टी की उम्मीदों को परवान चढ़ाने की कोशिश की.
1989 और 1991 के लोकसभा चुनाव में श्रीपाल सिंह यादव ने जनता दल के टिकट पर संभल सीट जीती थी. 1996 के लोकसभा चुनाव में डीपी यादव ने बहुजन समाज पार्टी के टिकट पर यह सीट छीन ली. 2009 में शफीकुर रहमान बर्क ने बसपा के टिकट पर चुनाव जीतकर सपा के इकबाल महमूद को हराकर चौंका दिया था. बसपा ने 1996 और 2009 के लोकसभा चुनावों में दो बार संभल सीट जीती. इस बार पार्टी दलित-मुस्लिम फॉर्मूले पर काम कर रही है. बसपा प्रमुख मायावती ने इंडिया गठबंधन के समर्थक वोट बैंक में सेंध लगाने के लिए संभल समेत आसपास की सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवारों पर दांव लगाया है.
बसपा उम्मीदवार सौलत अली वर्ष 1996 में मुरादाबाद पश्चिम से विधायक रह चुके हैं. राजनीतिक विश्लेषकों की माने तो, संभल लोकसभा सीट पर वर्ष 2014 के चुनाव जैसे हालात बन गए हैं. वर्ष 2014 के चुनाव में भाजपा से सैनी समाज के सत्यपाल सैनी, तुर्क के रूप में सपा उम्मीदवार शफीकुर्रहमान बर्क और पठान उम्मीदवार के रूप में बसपा से अकीलुर्रहमान थे. इसका फायदा भाजपा को मिला था और सत्यपाल सैनी जीत गए थे.
अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए वे कहते हैं कि इस समय सैनी समाज से परमेश्वर लाल सैनी, तुकों से जियाउर्रहमान बर्क और शेखजादा बिरादरी से सौलत अली उम्मीदवार हैं. यदि बसपा उम्मीदवार मुस्लिम वोटों में तगड़ी सेंध लगा गए तो भाजपा की राह आसान हो सकती है.
संभल लोकसभा सीट में जो पांच विधानसभा क्षेत्र आते हैं उनमें कुंदरकी, बिलारी, असमोली व संभल में सपा का कब्जा है जबकि चंदौसी सीट भाजपा के पास है. यहां से माध्यमिक शिक्षा मंत्री गुलाबो देवी विधायक हैं. सपा की उम्मीदें मुस्लिम यादव समीकरण पर टिकी हैं जबकि भाजपा मोदी-योगी के नाम व काम के सहारे कमल खिलाने में लगी है. बसपा की नजर दलित के साथ मुस्लिम मतदाताओं पर है.
एक अरसे बाद बहजोई में जिला मुख्यालय बनना तय हुआ. लेकिन संभल की पहचान के रूप स्थापित होने वाला जिला मुख्यालय आज भी लोगों के लिए सपना ही बना हुआ है. जिला मुख्यालय अस्थायी रूप से बहजोई में संचालित हो रहा है.
दो साल पहले प्रदेश सरकार ने धन अवमुक्त कर दिया तो बहजोई में जमीन खरीदी गई लेकिन कानूनी दांवपेचों में उलझने के कारण मुख्यालय बनने की राह साफ नहीं हो पा रही है.
जिला मुख्यालय पर स्थाई कलक्ट्रेट और विकास भवन नहीं होने से जिले के आला अधिकारी सही तरीके से काम भी नहीं कर पा रहे हैं. लेकिन देखना यह है कि इस बार कौन सा उम्मीदवार संभल की इन उम्मीदों पर खरा उतर पाता है.
लेखक – मुनीष त्रिपाठी,पत्रकार, इतिहासकार और साहित्यकार है ।









