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यूपी के हाथरस सत्संग कांड में पुलिस ने सिकन्दराऊ थाने में एक एफआईआर दर्ज की है. इस एफआईआर में सत्संग के मुख्य आयोजक समेत कई के खिलाफ केस दर्ज किया गया है. हैरत की बात यह है कि पुलिस-प्रशासन ने एफआईआर में अपनी व्यवस्थाओं पर कोई उंगली नही उठाई है. केस में दिलचस्प तौर पर सत्संग करने वाले कथित बाबा को भी आरोपी नही बनाया गया है. सत्संग में मची भगदड़ में अब तक 116 लोग मारे जा चुके है.
हाथरस के सिकन्दराऊ थाने में दर्ज एफआईआर की संख्या 427 है और भारतीय न्याय संहिता-2023 की धारा 105, 110. 126(2), 223 और 238 के अन्तर्गत केस दर्ज किया गया है. इस केस में मुख्य आरोपी है मुख्य सेवादार देवप्रकाश मधुकर. जानकारी के मुताबिक मधुकर ने ही इस सत्संग की अनुमति प्रशासन से ली थी. फिलहाल मधुकर फरार है. मुख्य आरोपी मधुकर के अलावा आरोपियों के अगले कॉलम में ‘अन्य आयोजक व अन्य सेवादार’ लिखा गया है जिन्हें अज्ञात दर्शाया है.
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एफआईआर में कहा गया है कि आयोजक ने अनुमति के दौरान सत्संग में इकठ्ठा होने वाली भीड़ 80 हजार लोगो की बताई थी लेकिन आयोजन के वक्त करीब ढाई लाख लोग इकठ्ठा हो गये. यहां अनुमति की शर्तों का उल्लंघन हो गया और नेशनल हाईवे अवरूद्ध होने पर सरकारी सिस्टम ने हालात सामान्य करने के प्रयास किये. यह प्रयास जारी ही थे तभी प्रवचनकर्ता सूरजपाल उर्फ भोले बाबा के निकलने पर उनकी चरणरज लेने को लालायित भीड़ अनियंत्रित हुई और लोग कुचलना शुरू हो गये.
आयोजकों के ऊपर आरोप है कि काबू से बाहर भीड़ को सेवादारों द्वारा डंडों के जोर पर कार्यक्रम स्थल से सटे खेत में जबरन रोका गया जिसमें 3 फीट पानी भरा था और चारों ओर कीचड़ था. लाखों लोगो की भीड़ का दबाब इतना ज्यादा था कि लोग कुचलते गये और चारों ओर चीख-पुकार मचना शुरू हो गया. मौके पर मौजूद पुलिस-प्रशासन के अफसरों ने घायलों को अस्पताल पहुंचाया, इस बात का भी एफआईआर में जिक्र है.
आयोजकों और सेवादारों की जिम्मेवारी वाली बात दोबारा एफआईआर में दोहराई गयी है और उनके कृत्य को आपराधिक बताया गया है.
इस एफआईआर में अपने “चरण रज” को दिव्य बताकर भ्रम फैलाने वाले कथित बाबा को आरोपी नही बनाया गया है.इस एफआईआर में अपने “चरण रज” को दिव्य बताकर भ्रम फैलाने वाले कथित बाबा को आरोपी नही बनाया गया है.
एफआईआर में परलक्षित हो रहा है वोटबैंक-
इस सत्संग में मुख्य प्रवचनकर्ता और खुद को भगवान से कनैक्ट बताने वाला सूरजपाल उर्फ भोलेबाबा जाटव जाति से है. लाजिमी है कि करीब 30 साल के आध्यात्मिक गुरू वाले कैरियर में कथित बाबा के अनुयायियों की संख्या लाखों में है. यह अनुयायी 90 फीसदी दलित बिरादरियों से ही आते है. ऐसे में सरकार को कथित बाबा के खिलाफ केस दर्ज करने में पीड़ा होना लाजिमी है. शायद इसीलिए एफआईआर में बाबा को आरोपी नही बनाया गया है. एफआईआर को पढ़ने के बाद प्रतीत होता है कि जानबूझकर इतने बड़े मामले में जिम्मेवारियों से किसी को बचाने की कोशिश की जा रही है.