भारत में धान से बाजरे की ओर बदलाव: किसानों की आमदनी बढ़ाने और पर्यावरण संरक्षण की दिशा में बड़ा कदम

भारत न केवल अपने किसानों की आय दोगुनी कर सकता है, बल्कि वैश्विक बाजरा बाजार में भी एक अहम भूमिका निभा सकता है।

भारत में टिकाऊ कृषि की दिशा में एक बड़ा बदलाव देखा जा रहा है, जहां बाजरे जैसे मोटे अनाज धान की जगह एक व्यवहारिक विकल्प के रूप में उभर रहे हैं। 2024-2030 के दौरान भारत में बाजरे की वार्षिक वृद्धि दर 16% रहने का अनुमान है, जो वैश्विक 6.2% CAGR से कहीं अधिक है। पर्यावरणीय क्षरण और पानी की बढ़ती कमी को देखते हुए, अब समय आ गया है कि नीति-निर्माता बाजरे के उत्पादन को बढ़ावा दें और किसानों को इसके लिए उत्साहित करें।

“बाजरे को मिले न्यूनतम समर्थन मूल्य और नकद प्रोत्साहन, बदल सकता है भारत का कृषि भविष्य”
वर्तमान में, पंजाब, आंध्र प्रदेश और हरियाणा जैसे राज्यों में अत्यधिक उर्वरक उपयोग के कारण धान का उत्पादन अधिक है, जो पर्यावरण को नुकसान पहुंचाता है। इसके समाधान के लिए सरकार दो-स्तरीय रणनीति अपना सकती है—किसानों को धान न उगाने पर नकद प्रोत्साहन और इससे बची सब्सिडी को बाजरे के प्रचार, भंडारण, प्रसंस्करण और डिजिटल कृषि में निवेश किया जा सकता है।

हालांकि बाजरे और ज्वार के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ाया गया है (बाजरा ₹4,375/क्विंटल, ज्वार प्रस्तावित ₹4,470/क्विंटल), फिर भी FCI द्वारा सुनिश्चित खरीद और सशक्त समर्थन प्रणाली की आवश्यकता है। उदाहरण के लिए, 2022-23 में पंजाब और हरियाणा से करोड़ों टन धान की खरीद हुई, जबकि बाजरे की खरीद केवल 0-140 टन रही।

मध्य प्रदेश, राजस्थान और हरियाणा जैसे राज्यों में बाजरे और ज्वार की MSP में वृद्धि से किसानों की आय कुछ सीजन में ही दोगुनी हो सकती है। वहीं, बाजरा और ज्वार आधारित उत्पादों को प्रोत्साहन और PDS प्रणाली के जरिए इनके उपभोग को भी बढ़ाया जा सकता है।

भारत, जो दुनिया के शीर्ष पाँच बाजरा निर्यातकों में शामिल है, केवल 2% वैश्विक निर्यात करता है। अगर बाजरा उत्पादन और मूल्य श्रृंखला को मज़बूत किया जाए, तो भारत न केवल अपने किसानों की आय दोगुनी कर सकता है, बल्कि वैश्विक बाजरा बाजार में भी एक अहम भूमिका निभा सकता है।

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