शुभांशु शुक्ला ने अंतरिक्ष में भारत का नाम रोशन किया, गगनयान मिशन के लिए एक नया कदम

गगनयान के लिए महत्वपूर्ण प्रौद्योगिकियाँ विकसित की हैं, जैसे क्रीव एस्केप सिस्टम और हाई-एल्टीट्यूड एबॉर्ट डेमॉन्स्ट्रेशन का सफल परीक्षण।

नई दिल्ली- जब विंग कमांडर (सेवानिवृत्त) राकेश शर्मा ने 1984 में सोवियत अंतरिक्ष यान में सवार होकर अंतरिक्ष यात्रा की थी, उस समय ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला का जन्म भी नहीं हुआ था। यह कदम भारतीय अंतरिक्ष यात्रा के इतिहास में मील का पत्थर साबित हुआ और राकेश शर्मा का नाम भारतीय स्कूलों और दिलों में हमेशा के लिए समा गया।

लेकिन अब, 41 साल बाद, शुभांशु शुक्ला ने भारत के दूसरे अंतरिक्ष यात्री के रूप में अंतरिक्ष की यात्रा की है। इस यात्रा के साथ भारत ने एक और ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की है, और यह शुक्ला के लिए केवल एक निजी उपलब्धि नहीं, बल्कि भारत के बढ़ते अंतरिक्ष कार्यक्रम की ओर एक महत्वपूर्ण कदम है।

अंतरिक्ष यात्रा की नई दिशा: गगनयान मिशन

राकेश शर्मा के मिशन के समय भारत के पास अपना अंतरिक्ष कार्यक्रम नहीं था, जबकि शुक्ला का अंतरिक्ष मिशन भारत के गगनयान मिशन से जुड़ा हुआ है, जो भारत का पहला स्वतंत्र मानव अंतरिक्ष मिशन होगा। इस मिशन को लेकर ISRO ने गगनयान के लिए महत्वपूर्ण प्रौद्योगिकियाँ विकसित की हैं, जैसे क्रीव एस्केप सिस्टम और हाई-एल्टीट्यूड एबॉर्ट डेमॉन्स्ट्रेशन का सफल परीक्षण।

पहला गगनयान मिशन, जो बिना क्रू के होगा, इस साल के अंत में लॉन्च होने की योजना है, और इसके बाद कई और मिशन होंगे, ताकि सिस्टम की पूरी तरह से जांच की जा सके।

आत्मनिर्भर मानव अंतरिक्ष यात्रा: भारत की नई दिशा

ISRO अब मानव अंतरिक्ष उड़ान के लिए आत्मनिर्भर क्षमता विकसित करने की ओर बढ़ रहा है। गगनयान मिशन में 400 किमी की कक्षा में क्रू को भेजने और सात दिनों तक उन्हें सुरक्षित रूप से वापस लाने का लक्ष्य रखा गया है। मिशन के लिए कितने अंतरिक्ष यात्री जाएंगे और कितने दिनों तक वे अंतरिक्ष में रहेंगे, इसका निर्णय बाद में लिया जाएगा।

भारतीय अंतरिक्ष यात्री प्रशिक्षण सुविधा

राकेश शर्मा ने सोवियत संघ में प्रशिक्षण लिया था, जबकि शुभांशु शुक्ला ने इस मिशन के लिए अमेरिका में प्रशिक्षण लिया। लेकिन अब भारत में बेंगलुरु में एक समर्पित अंतरिक्ष यात्री प्रशिक्षण केंद्र है, जो भविष्य में भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों को प्रशिक्षित करेगा। इस सुविधा को आने वाले वर्षों में और उन्नत किया जाएगा, जिससे भविष्य में भारतीय अंतरिक्ष यात्री अपने ही देश में चयनित, प्रशिक्षित और उड़ान भर सकेंगे।

भविष्य की योजनाएँ: अंतरिक्ष में मानव की स्थायी उपस्थिति

भारत की अंतरिक्ष यात्रा केवल लो-इर्थ ऑर्बिट (LEO) तक सीमित नहीं रहेगी। आने वाले दो दशकों में, भारत स्पेस स्टेशन मॉड्यूल्स विकसित करेगा और चंद्रमा पर मानव मिशन के लिए तैयारी करेगा। इस दिशा में कई योजनाएँ बन चुकी हैं, जो भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र को नई ऊँचाइयों तक पहुँचाने में मदद करेंगी।

निष्कर्ष: भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम अब एक नए अध्याय में

अब, जब शुभांशु शुक्ला ने अंतरिक्ष की यात्रा की है, तो यह साबित हो गया है कि भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम अब एक लंबी चुप्पी के बाद फिर से सक्रिय हो चुका है। भविष्य में भारत के अगले अंतरिक्ष यात्री को फिर से चार दशकों का इंतजार नहीं करना पड़ेगा, क्योंकि अब ISRO के पास अंतरिक्ष यात्रा के लिए संस्थागत संरचनाएँ, परीक्षण किए गए हार्डवेयर और प्रतिबद्ध निवेश हैं।

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