बैंकों को सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका- ‘किसी खाते को फ्रॉड घोषित करने से पहले उधारकर्ताओं का पक्ष सुने…’

कोर्ट ने कहा कि किसी उधारकर्ता के बैंक खाते में हुए धोखाधड़ी के मामले में भारतीय रिजर्व बैंक को यह सुनिश्चित करना होगा कि पीड़ित के साथ पक्षपात ना हो. उसके साथ नैसर्गिक न्याय सुनिश्चित हो इसके लिए कोर्ट ने "ऑडी अल्टरम पार्टेम" के सिद्धांत को RBI द्वारा अमल में लाने के निर्देश दिए.

सोमवार को एक मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला दिया. सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि कर्जदारों को उनके खातों को धोखाधड़ी के रूप में वर्गीकृत करने से पहले उनका पक्ष सुना जाना चाहिए. शीर्ष अदालत ने जोड़ा कि यदि इस तरह की कार्रवाई की जाती है तो मामले से संबंधित एक तर्कपूर्ण आदेश का पालन किया जाना चाहिए. न्यायालय ने एक मामले की सुनवाई के दौरान “ऑडी अल्टरम पार्टेम” के सिद्धांत का जिक्र किया.

कोर्ट ने कहा कि किसी उधारकर्ता के बैंक खाते में हुए धोखाधड़ी के मामले में भारतीय रिजर्व बैंक को यह सुनिश्चित करना होगा कि पीड़ित के साथ पक्षपात ना हो. उसके साथ नैसर्गिक न्याय सुनिश्चित हो इसके लिए कोर्ट ने “ऑडी अल्टरम पार्टेम” के सिद्धांत को RBI द्वारा अमल में लाने के निर्देश दिए. शीर्ष अदालत की संवैधानिक पीठ ने कहा, “बैंकों को धोखाधड़ी पर मास्टर निर्देशों के तहत धोखाधड़ी के रूप में अपने खातों को वर्गीकृत करने से पहले कर्जदारों को सुनवाई का अवसर देना चाहिए.”

क्या है “ऑडी अल्टरम पार्टेम”

“ऑडी अल्टरम पार्टेम” नैसर्गिक न्याय की एक अवधारणा है. नैसर्गिक न्याय का आशय है कि जो भी निर्णय दिया जाए उसमें समता का भाव हो और वह विधिक रुप से हर कानुनी मापदंडों पर खरा उतरे. भारत में, प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत का पता भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 और अनुच्छेद 21 से लगाया जा सकता है. अनुच्छेद 14 कानून के समक्ष समानता के बारे में कहता है और अनुच्छेद 21 जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सुरक्षा के बारे में बात करता है.

SC ने तेलंगाना HC के फैसला को रखा बरकरार

भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ ने दिसंबर 2020 में तेलंगाना उच्च न्यायालय द्वारा दिए गए फैसले को बरकरार रखा. भारतीय स्टेट बैंक द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई करते हुए तब तेलंगाना हाईकोर्ट ने “ऑडी अल्टरम पार्टेम” के सिद्धांतों के अनुपालन की बात कही थी. सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत की संवैधानिक पीठ ने गुजरात उच्च न्यायालय के एक फैसले को भी रद्द कर दिया, जो इसके विपरीत था.

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