समलैंगिक विवाह से जुड़ी याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से 1 महीने में मांगा जवाब, महान्यायवादी को भी नोटिस जारी…

याचिका पर सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस हिमा कोहली की पीठ सुनवाई कर रही है. इस याचिका में LGBTQ कपल्स के विवाह को स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत कानूनी मान्यता देने का अनुरोध किया गया है.

देश में समलैंगिक जोड़ो के विवाह को मान्यता देने वाली मांग जोर पकड़ने लगी है. शीर्ष अदालत LGBTQ विवाह से संबंधित याचिका पर सुनवाई के लिए तैयार है. इस कड़ी में सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को केंद्र सरकार की जवाबदेही तय की. शीर्ष अदालत ने समलैंगिक जोड़ो के विवाह को लेकर दायर दो याचिकाओं पर केंद्र सरकार और महान्यायवादी आर. वेंकटरमणि को नोटिस जारी की.

यह याचिका सुप्रीम कोर्ट की दो सदस्यीय संवैधानिक पीठ के समक्ष प्रस्तुत की गई है. याचिका पर सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस हिमा कोहली की पीठ सुनवाई कर रही है. इस याचिका में LGBTQ कपल्स के विवाह को स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत कानूनी मान्यता देने का अनुरोध किया गया है.

इसी कड़ी में केंद्र और महान्यायवादी आर. वेंकटरमणि को नोटिस को नोटिस जारी करने से पहले सुप्रीम कोर्ट ने वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी की ओर से दाखिल किए प्रतिवेदन पर गौर किया. संवैधानिक पीठ ने केंद्र को 1 महीने में जवाब देने के लिए कहा है.

बता दें कि समलैंगिक जोड़ो के विवाह को कानूनी मान्यता देने वाली याचिका हैदराबाद के रहने वाले लेस्बियन छपल सुप्रियो चक्रवर्ती और अभय डांग ने दायर की है. जबकि दूसरी याचिका समलैंगिक जोड़े पार्थ फिरोज मेहरोत्रा और उदय राज की ओर से दायर की गई. याचिका में यह भी कहा गया है कि समलैंगिक विवाह को मान्यता नहीं देना संविधान प्रदत्त समानता और जीवन के अधिकार का उल्लंघन है.

संविधान का अनुच्छेद 14 और 21 नागरिकों को जीवन और समानता का अधिकार प्रदान करता है. गौरतलब हो कि साल 2018 में सुप्रीम कोर्ट की पांच-जजों वाली संवैधानिक पीठ ने IPC की धारा 377 से सहमति से अप्राकृतिक यौन संबंध को अपराध बताने वाले हिस्से की कानूनी वैधता समाप्त कर दी थी. धारा 377 भारतीय दंड संहिता की 158 साल पुरानी धारा थी जो औपनिवेशिक काल से ही कानूनी रुप से प्रयोग में लाई जाती थी.

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