
जहां देश में एक तरफ SC/ST को लेकर सुप्रीम कोर्ट के ही फैसले पर घमासान मचा है तो वहीं दूसरी ओर अब सुप्रीम कोर्ट ने एक और फैसला सुनाया है जिसे जानकर शायद आपको भी थोड़ा झटका लगेगा। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में बताया कि अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य का अपमान या धमकी अधिनियम, 1989 के तहत अपराध नहीं माना जाएगा, जब तक कि ऐसा अपमान या धमकी इस आधार पर न हो कि पीड़ित अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति से संबंधित है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर अपना पक्ष स्पष्टता से रखते हुए साफ कर दिया है कि अधिनियम, 1989 की धारा 3(1)(R) के पाठ में “अपमानित करने के इरादे से” शब्द उस व्यक्ति की जाति पहचान से अभिन्न रूप से जुड़े हुए हैं, जिसे जानबूझकर अपमानित या धमकी दी जाती है। बता दें अब से एससी/एसटी समुदाय के किसी सदस्य का हर जानबूझकर किया गया अपमान या धमकी जाति-आधारित अपमान की भावना का परिणाम नहीं होगी। इतना ही नहीं ये केवल उन मामलों में होता है, जहां जानबूझकर अपमान या धमकी या तो अस्पृश्यता की प्रचलित प्रथा के कारण होती है या ऐतिहासिक रूप से स्थापित विचारों जैसे “उच्च जातियों” की “निचली जातियों/अछूतों” पर श्रेष्ठता, ‘पवित्रता’ और ‘अपवित्रता’ की धारणाओं आदि को मजबूत करने के लिए होती है, जिसे अधिनियम 1989 द्वारा परिकल्पित प्रकार का अपमान या धमकी कहा जा सकता है।








