‘सूर्यकांत त्रिपाठी निराला’ 12वीं के पाठ्यक्रम से बाहर, अब नहीं दिखेगा वह ‘निराला’ अंदाज!

आज हिंदी साहित्य के महान रचनाकार डॉ सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की रचना 'बाहर मैं कर दिया गया हूँ' फिर याद आ गई. कहते हैं कवि अपनी रचनाओं में भूत, भविष्य और वर्तमान तीनों काल पर दृष्टि डालते हैं. देश के महान साहित्यकारों में से एक डॉ सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की रचना 'बाहर मैं कर दिया गया हूँ' आज फिर प्रासंगिक है. वैसै तो उनकी अनेक रचनाओं को पढ़कर कई पीढ़ियां बढ़ीं.

लखनऊ- हिंदी साहित्य के महान रचनाकार डॉ सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की रचना ‘बाहर मैं कर दिया गया हूँ’ आज अचानक फिर याद आ गई. कहते हैं कवि अपनी रचनाओं में भूत, भविष्य और वर्तमान तीनों काल पर दृष्टि डालते हैं. देश के महान साहित्यकारों में से एक डॉ सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की रचना ‘बाहर मैं कर दिया गया हूँ’ आज फिर प्रासंगिक है. दरअसल, सरकार ने 12वीं के सिलेबस से साहित्यकार सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की रचनाओं को बाहर करने का निर्णय लिया है.

उनकी मार्मिक रचनाओं को पढ़कर भावनाओं लोगों के अंदर भावनाओं का ज्वार उमड़ पड़ता है. लेकिन, अब नई पीढ़ियां निराला की रचनाओं को पढ़ने से वंचित रह जाएंगी. दरअसल NCERT ने 12वीं के सिलेबस से डॉ सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की रचनाओं को हटाने का निर्णय लिया है. निराला के साथ-साथ फिराक गोरखपुरी की रचनाएं भी 12वीं के पाठ्यक्रम से हटाई गईं हैं.

इन दोनों महान साहित्यकारों को पढ़कर कई पीढ़ियां बड़ी हुईं. जिन्होंने अपने युग के ‘मुक्ति के स्वप्न’ को काव्य में बंधी-बंधायी रूढ़ियों से मुक्ति के रूप में देखा. छंद, काव्यरूप, गीतिकाव्य, लंबी कविता आदि में नए प्रयोग कर भारतीय हिंदी काव्य की दिशा प्रशस्त की. वास्तव में निराला काव्य में विषय और काव्यरूपों की जैसी विविधता, गहनता और नवीनता है वैसी हिंदी के किसी दूसरे आधुनिक कविओं में नहीं दिखती. हमारा उद्देश्य निराला की विविधता पूर्ण रचनाओं को आमजन के समक्ष रखना है.

निराला के बारे में साहित्यकारों का कथन

निराला की मृत्यु के बाद धर्मवीर भारती ने निराला पर एक स्मरण-लेख लिखा था. उसमें उन्होंने निराला की तुलना पृथ्वी पर गंगा उतार कर लाने वाले भगीरथ से की थी. धर्मवीर भारती ने लिखा है: ‘भगीरथ अपने पूर्वजों के लिए गंगा लेकर आए थे. निराला अपनी उत्तर-पीढ़ी के लिए.’ निराला को याद करते हुए भगीरथ की याद आए या ग्रीक मिथकीय देवता प्रमेथियस/प्रमथ्यु की, तो यह आश्चर्य की बात नहीं है.

निराला ने हिंदी के विष को पिया और उसे बदले में अमृत का वरदान दिया. 1923 ईस्वी में जब कलकत्ता से ‘मतवाला’ का प्रकाशन हुआ, उस समय रामविलास शर्मा के अनुसार- निराला ने उसके कवर पेज के लिए दो पंक्तियां लिखी थीं:

अमिय गरल शशि सीकर रविकर राग-विराग भरा प्याला
पीते हैं, जो साधक उनका प्यारा है यह मतवाला

बाहर मैं कर दिया गया हूँ, पढ़ें निराला की पूरी रचना

बाहर मैं कर दिया गया हूँ। भीतर, पर, भर दिया गया हूँ।
ऊपर वह बर्फ़ गली है, नीचे यह नदी चली है;

सख़्त तने के ऊपर नर्म कली है; इसी तरह हर दिया गया हूँ।

बाहर मैं कर दिया गया हूँ।
आँखों पर पानी है लाज का, राग बजा अलग-अलग साज़ का;

भेद खुला सविता के किरण-ब्याज का; तभी सहज वर दिया गया हूँ।

बाहर मैं कर दिया गया हूँ।
भीतर, बाहर; बाहर भीतर; देखा जब से, हुआ अनश्वर; माया का साधन यह सस्वर; ऐसे ही घर दिया गया हूँ।

बाहर मैं कर दिया गया हूँ।

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