
भारत और फ्रांस ने शुक्रवार को अपनी दूसरी रणनीतिक वार्ता के लिए बैठक की। यह बैठक भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रोन के राजनयिक सलाहकार इमैनुएल बोने के बीच हुई। इस दौरान समुद्री चुनौतियों पर दोनों देशों के सांझा हितों को लेकर आपसी तकनीकी सहयोग के माध्यम से समुद्री सुरक्षा को और अधिक मजबूत बनाने का मुद्दा केंद्र में रहा।
फ्रांस और भारत के बीच अफगानिस्तान पर और हिन्द-प्रशांत समुद्री क्षेत्र की सुरक्षा को मजबूत करने को लेकर विस्तृत चर्चा हुई। अभी हाल ही NSA अजित डोभाल ने फ्रांस की राजधानी पेरिस की अपनी एक छोटी यात्रा के दौरान फ्रांस के रक्षा मंत्री फ्लोरेंस पार्ली (Florence Parly) और विदेश मंत्री जीन-यवेस ले ड्रियन (Jean-Yves Le Drian) से मुलाकात की थी। फ्रांसीसी दूतावास द्वारा जारी एक बयान के मुताबिक, इस दौरे के दौरान फ्रांस के विदेश मंत्री ने NSA अजित डोवाल के साथ जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई में प्राथमिकताओं पर चर्चा की।
भारत में फ्रांस के राजदूत इमैनुएल लेनिन (Emmanuel Lenain) ने ट्विटर पर कहा, “पेरिस में 35वें रणनीतिक संवाद के अवसर पर NSA अजीत डोभाल के साथ अपनी बैठक में, फ्रांसीसी विदेश मंत्री जीन-यवेस ले ड्रियन ने भारत-फ्रांस रणनीतिक साझेदारी को उसके सभी आयामों में गहरा करने के लिए फ्रांस की प्रतिबद्धता पर जोर दिया।”
बयान में आगे कहा गया, “उन्होंने एक स्वतंत्र और खुले हिंद-प्रशांत की सुरक्षा के लिए काम करने में फ्रांस और भारत के बीच आपसी विश्वास के साथ-साथ भारत-फ्रांस साझेदारी के महत्व को भी इस बैठक के दौरान रेखांकित किया।”
At his meeting with NSA Ajit Doval on the occasion of the 35th 🇫🇷🇮🇳 Strategic Dialogue in Paris, French FM @JY_LeDrian stressed France's commitment to deepening the Indo-French strategic partnership in all its dimensions.
— Emmanuel Lenain (@FranceinIndia) November 6, 2021
Statement⤵ https://t.co/19s4RiO68d
दोनों देशों ने ब्रिटेन से भिन्न दृष्टिकोण रखने वाले यूरोपीय संघ के हिस्से के रूप में फ्रांस के साथ अफगानिस्तान में गंभीर स्थिति पर नोट्स (Notes) का आदान-प्रदान किया जिसने तालिबान नेतृत्व के साथ दोहा की असफल राजनीतिक प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। आज पाकिस्तानी आईएसआई (ISI) की देखरेख में तालिबान के नेतृत्व वाला अफगानिस्तान सूखे जैसी आपदा और सुशासन नहीं होने के कारण भारी तबाही की ओर बढ़ रहा है। काबुल पर कब्जा करने के लगभग तीन महीने बाद भी पाकिस्तान, चीन, कतर और तुर्की द्वारा तालिबान शासन को मान्यता दिलाने की कोशिश की गयी लेकिन इसके बावजूद भी किसी देश ने इसकी मान्यता नहीं दी है।