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रंगों की बहार, परंपराओं की धार… जानिए देशभर में होली की अनोखी परंपराएं!

Holi 2025: देश के अलग-अलग हिस्सों में होली मनाने के तरीके अलग हो सकते हैं, लेकिन इसका संदेश एक ही है – बुराइयों को खत्म करना और खुशियों का...

Holi 2025: होली का त्योहार रंगों, उल्लास और मस्ती का प्रतीक है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि भारत के अलग-अलग हिस्सों में होली मनाने के तरीके भी अलग-अलग हैं? कहीं होली में रामलीला होती है, तो कहीं आठ दिन तक होली का जश्न चलता है। कहीं मस्जिदों को ढककर होली खेली जाती है, तो कहीं दरगाह में रंगों की बरसात होती है। आइए, जानते हैं देशभर में होली मनाने की कुछ अनोखी परंपराओं के बारे में।

कानपुर: आठ दिन तक क्यों खेली जाती है होली?

कानपुर के हटिया बाजार में होली का जश्न आठ दिन तक चलता है। यह परंपरा 1942 से शुरू हुई थी। दरअसल, अंग्रेजी हुकूमत के दौरान व्यापारी गुलाबचंद सेठ ने होली का भव्य आयोजन किया था। अंग्रेजों ने इसे रोकने की कोशिश की और गुलाबचंद सेठ को गिरफ्तार कर लिया। इसके बाद पूरे शहर ने विरोध में आठ दिन तक होली खेली। दुकानें बंद रहीं, मिलें ठप हो गईं। अंग्रेजों को भारी नुकसान हुआ और आखिरकार उन्हें कैदियों को रिहा करना पड़ा। तब से कानपुर में आठ दिन तक होली मनाने की परंपरा चली आ रही है।

शाहजहांपुर: जूतम-पैजार होली

शाहजहांपुर में होली से पांच दिन पहले ही मस्जिदों को तिरपाल से ढक दिया जाता है, ताकि रंगों से उनकी दीवारें खराब न हों। इसके बाद एक अनोखा जुलूस निकाला जाता है, जिसमें किसी व्यक्ति को ‘लाट साहब’ बनाया जाता है। उसे काले रंग से रंगकर जूते की माला पहनाई जाती है और गधे या भैंसा गाड़ी पर बैठाकर पूरे शहर में घुमाया जाता है। यह परंपरा अंग्रेजों के खिलाफ विरोध का प्रतीक है।

देवा शरीफ दरगाह: गंगा-जमुनी तहजीब की मिसाल

बाराबंकी स्थित देवा शरीफ दरगाह पर होली का त्योहार गंगा-जमुनी तहजीब की अनूठी मिसाल पेश करता है। यहां होली के दिन हाजी वारिस अली शाह की दरगाह पर रंग और गुलाल उड़ाया जाता है। यह परंपरा सौ साल से भी पुरानी है। संत वारिस अली शाह अपने हिंदू शिष्यों के साथ होली खेलते थे, और तभी से यह परंपरा चली आ रही है। देश-विदेश से लोग यहां होली मनाने आते हैं।

पीलीभीत: महिलाओं का राज

पीलीभीत के माधोटांडा इलाके में होली के दूसरे दिन महिलाएं पूरे गांव पर राज करती हैं। इस दिन महिलाएं टोलियां बनाकर गांव में घूमती हैं और राहगीरों से फगुआ वसूलती हैं। पुरुष इस दिन घरों में छिप जाते हैं या गांव से बाहर चले जाते हैं। यह परंपरा सदियों पुरानी है और जंगल में शिकार पर जाने वाले पुरुषों के खिलाफ महिलाओं के विरोध का प्रतीक है।

हमीरपुर: महिलाओं की बारात

हमीरपुर में होली पर 300 साल पुरानी परंपरा निभाई जाती है। यहां महिलाएं राम-जानकी मंदिर से दूल्हे की बारात निकालती हैं। इस बारात में एक भी पुरुष शामिल नहीं होता। दूल्हे को घोड़े पर बैठाया जाता है और महिलाएं बैंड-बाजे के साथ गांव भर में घूमती हैं। हर घर पर दूल्हे को टीका लगाया जाता है और आरती उतारी जाती है।

मथुरा-वृंदावन: होली की रंगीन धूम

मथुरा और वृंदावन की होली पूरी दुनिया में मशहूर है। यहां लड्डू होली, लठमार होली, फूलों वाली होली और हुरंगा होली जैसी अनोखी परंपराएं देखने को मिलती हैं। बरसाना की लठमार होली में महिलाएं पुरुषों पर लाठियां बरसाती हैं, जबकि पुरुष ढाल से अपनी रक्षा करते हैं। यह होली भगवान कृष्ण और राधा की लीलाओं से जुड़ी हुई है।

प्रयागराज: हथौड़े की बारात

प्रयागराज में होली से पहले हथौड़े की बारात निकाली जाती है। इस बारात में दूल्हे की जगह एक भारी-भरकम हथौड़ा होता है। बारात निकालने से पहले कद्दू भंजन की रस्म होती है, जो बुराइयों को खत्म करने का प्रतीक है। यह परंपरा सदियों से चली आ रही है और होली के उल्लास को एक नया आयाम देती है।

काशी या बनारस: ‘मसाने की होली’

खेलैं मसाने में होरी दिगंबर…भूत पिशाच बटोरी दिगंबर….काशी यानी बनारस में रंग-गुलाल और अबीर से नहीं बल्कि चिताओं की राख से होली खेली जाती है, जिसे “मसाने की होली” या “मसान होली” कहते हैं। यह होली चिताओं की राख से खेली जाती है, न कि रंग-गुलाल से। हरिश्चंद्र घाट पर महाश्मशान नाथ की आरती के बाद ‘मसाने की होली’ की शुरुआत होती है, जिसमें साधु-संत और शिव भक्त भगवान शिव की पूजा करके चिता की राख से होली खेलते हैं। काशी में रंगभरी एकादशी से होली उत्सव की शुरुआत होती है, जो 6 दिन तक चलता है। मसान होली रंगभरी एकादशी के दूसरे दिन मनाई जाती है। मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव अपने गणों के साथ काशी में विचित्र होली खेलते थे, और भूत-प्रेतों के साथ होली खेलते हुए यह परंपरा शुरू हुई।

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