
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने मंगलवार को बड़ी घोषणा की। उन्होंने बताया कि राज्य कि भाजपा सरकार ने चार धाम देवस्थानम बोर्ड प्रबंधन अधिनियम को निरस्त करने का फैसला किया है। उन्होंने कहा कि “हम मनोहर कांत ध्यानी की अध्यक्षता वाले पैनल द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट के अवलोकन करने और मुद्दे के सभी पहलुओं पर विचार करने के बाद, हमारी सरकार ने अधिनियम को वापस लेने का फैसला किया है।”
दरअसल, यह अधिनियम साल 2019 में तत्कालीन सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत के कार्यकाल के दौरान पारित हुआ था जिसमें चार धाम सहित 50 से अधिक मंदिरों को चार धाम देवस्थानम बोर्ड के माध्यम से राज्य सरकार ने अपने नियंत्रण में ले लिया था। इसके बाद उत्तरखंड में पुजारियों और दूसरे लोगों ने इसका विरोध करना शुरू कर दिया था। धामी ने पुजारियों द्वारा दो साल के लंबे विरोध को समाप्त करने की घोषणा की।
अधिनियम का विरोध कर रहे पुजारियों ने आरोप लगाया था कि राज्य सरकार उनके अधिकारों पर अतिक्रमण कर रही है। इस विरोध के बाद राज्य सरकार ने उत्तराखंड चार धाम देवस्थानम प्रबंधन अधिनियम, 2019 की जांच के लिए एक उच्च स्तरीय समिति का गठन किया था जिसने रविवार को सीएम धामी को अपनी रिपोर्ट सौंपी।
अधिनियम के अनुसार, मुख्यमंत्री बोर्ड के अध्यक्ष थे जबकि धार्मिक मामलों के मंत्री उपाध्यक्ष थे। गंगोत्री और यमुनोत्री निर्वाचन क्षेत्रों के दो विधायक सदस्य होने के साथ-साथ बोर्ड के मुख्य सचिव भी थे। एक वरिष्ठ IAS अधिकारी मुख्य कार्यकारी अधिकारी थे। बोर्ड के पास नीतियां बनाने, बजट और व्यय के संबंध में निर्णय लेने, सुरक्षित अभिरक्षा, निधियों की रोकथाम और प्रबंधन, मूल्यवान प्रतिभूतियों, आभूषणों और मंदिरों की संपत्तियों के लिए दिशा-निर्देश देने की शक्तियां थीं। इस बोर्ड का गठन उत्तरखंड के पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत ने 15 जनवरी, 2020 को किया था जिसे अब अधिनियम निरस्त करके बोर्ड को निष्प्रभावी कर दिया गया है।