वाराणसी: मार्च में ही भीषण गर्मी से लोग‌ परेशान, बीच गंगा में बने रेत के टीले…

वाराणसी में मार्च में ही गर्मी से लोग‌ परेशान हैं। मार्च के महीने में ही तापमान 41 डिग्री सेल्सियस तक जा पहुंचा है और सूर्य इस मार्च में ही लोगों को अप्रैल और मई की गर्मी का अहसास करा रहे है। वही गर्मी के चलते इसका असर गंगा नदी में भी दिखाई दे रहा है चर्चा का विषय इसलिए है कि पहले अप्रैल के दूसरे सप्ताह में रामनगर किले के समीप सामने घाट से राजघाट तक रेत का जमाव पूरब की ओर होने लगता है। इस वर्ष चौंकाने वाले दो नए बदलाव दिखे हैं। पहला, मार्च के तीसरे सप्ताह में ही रेत उभर गई। दूसरा, जमाव की जगह बदल गई।

गंगा वैज्ञानिकों और पर्यावरणविदों ने चिंता जताई है कि पानी का रेत हर बार पश्चिम के बजाय पूरब की तरफ शिफ्ट होने लगा है। वहीं रेत का जमाव भी अब आगे और गंगा के बीचो-बीच शिफ्ट हो रहा है। यह विचित्र चित्र देखकर काशी के लोग हैरान हैं। गंगा में बनाई गई पांच किलोमीटर लंबी मानव निर्मित नहर और रामनगर पुल के इंजीनियरिंग में ही दोष बताया जा रहा है।

काशी हिंदू विश्वविद्यालय में महामना मालवीय गंगा शोध केंद्र के चेयरमैन और प्रख्यात गंगा विज्ञानी प्रोफेसर बीडी त्रिपाठी बताते हैं कि उत्तराखंड में गंगा का पानी रोका गया है। इससे पानी का बहाव कम हुआ और सिल्ट्रेशन रेट बढ़ गया। जिस वजह से संकट की यह स्थिति खड़ी हुई है। वहीं गंगा के पानी की कुछ मात्रा हरिद्वार और भीमगौड़ा कैनाल से दिल्ली की ओर तरफ छोड़ा जा रहा है। वहीं काफी हद तक गंगा के पानी को सिंचाई के लिए नहरों में मोड़ दिया गया है। इससे गंगा की मुख्य धारा दिनों-दिन छोटी होती जा रही है। प्रो. त्रिपाठी ने बताया कि भारत को अपनी वाटर पॉलिसी बनाने की जरूरत है। इससे ग्राउंड वाटर के दोहन पर रोक लगेगी।

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