
सुलतानपुर : पूर्व प्रधान पर तमंचे से फायर कर जानलेवा हमला करने के मामले में दो सगे भाई समेत चार आरोपियों को स्पेशल जज एससी-एसटी एक्ट की अदालत ने दोषी करार दिया है। जिन्हें अदालत ने दोषी ठहराते हुए दस-दस वर्ष के कठोर कारावास एवं 30-30 हजार रुपये अर्थदंड की सजा सुनाई है.
मामला मुसाफिरखाना कोतवाली क्षेत्र से जुड़ा है। जहां पर हुई घटना का जिक्र करते हुए बल्दीराय थाना क्षेत्र स्थित बीही निदूरा गांव के रहने वाले तत्कालीन हेल्थ इंस्पेक्टर व पूर्व प्रधान श्रीपाल पासी के मुताबिक घटना के दिन वह अपने भतीजे अमरनाथ व चचेरे भाई रामबरन के साथ मुसाफिरखाना होते हुए मोटरसाइकिल से ड्यूटी पर जा रहे थे, इसी दौरान उस मार्ग पर गोमती नदी पार करने के बाद जैसे ही वह हैदर के पुरवा गांव के पास पहुंचे ,तभी पीछे से पहुंचे बाइक सवार आरोपीगण रमाकांत मिश्रा, कन्हैयालाल एवं सगे भाई मंशाराम व अनिरुद्ध ने ताबड़तोड़ फायरिंग शुरू कर दी।आरोपियोह के हमले में श्रीपाल पासी की पीठ पर एवं बाएं हाथ में गोली लगी,आरोप के मुताबिक फायरिंग की घटना को अंजाम देने के बाद आरोपियों ने पीड़ित पक्ष पर जातिसूचक अपशब्दों का भी प्रयोग किया.

इस मामले में अभियोगी श्रीपाल पासी की तहरीर पर चारों आरोपियों के खिलाफ मुसाफिरखाना कोतवाली में मुकदमा दर्ज हुआ और प्रकरण की तफ्तीश चली। तफ्तीश पूरी कर पुलिस ने न्यायालय में आरोप-पत्र दाखिल किया। मामलें का विचारण स्पेशल जज एससी-एसटी एक्ट की अदालत में चला। इस दौरान बचाव पक्ष ने अपने साक्ष्यों व तर्कों को प्रस्तुत कर आरोपियों को बेकसूर साबित करने का भरसक प्रयास किया। वहीं अभियोजन पक्ष से पैरवी कर रहे विशेष लोक अभियोजक गोरखनाथ शुक्ला एवं वादी के निजी अधिवक्ता रामफेर यादव व भगवान दीन यादव ने कड़ी पैरवी कर अपने पक्ष को साबित किया एवं आरोपियों को दोषी करार देकर कड़ी से कड़ी सजा से दंडित किए जाने की मांग की.
मिली जानकारी के मुताबिक इस प्रकरण को लम्बित रखने के इरादे से आरोपियों ने कई बार कानूनी दांव-पेंच का प्रयोग किया,लेकिन अंततः वह सफल नहीं हो सके। मामले में उभय पक्षों को सुनने के पश्चात स्पेशल जज ने चारों आरोपियों को हत्या के प्रयास एवं एससी-एसटी एक्ट में दोषी करार देते हुए 10-10 वर्ष के कठोर कारावास एवं कुल एक लाख 20 हजार रुपए अर्थदंड की सजा सुनाई है। इस मामले में न्याय विभाग की प्रचलित व्यवस्था एवं अभियुक्त पक्ष के कानूनी पैंतरे के परिणाम स्वरूप घटना के करीब साढ़े तेईस साल बाद एक पीड़ित दलित परिवार को न्याय मिल सका.









