कौन है शेख हसीना? रोचक है राजनीतिक इतिहास?, 1975 में भी छोड़ा था देश

2006 में भी कुछ ऐसी ही स्थिति बनी थी। सत्ता पर काबिज बांग्लादेशी नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) चुनाव का ऐलान करते हुए कार्यवाहक शासन की ओर चली गई थी

बांग्लादेश में भड़की हिंसा के बाद शेख हसीना ने पीएम पद से इस्तीफा दे दिया है। वह देश छोड़कर भारत आ गई हैं। वहीं देश की सेना ने देश में जल्द से जल्द शांति बहाली के लिए अन्तरिम सरकार के गठन पर जोर दिया है। शेख हसीना के लिए यह कोई पहला मामला नहीं है। इनके पिता शेख मुजीब उर रहमान की हत्या को लेकर 2008-09 में भी शेख हसीना के सामने कुछ ऐसी ही स्थिति थी। हसीना ने हर बार चुनौतियों का सामना करते हुए सत्ता में लौट आईं।

अब एक बार बांग्लादेश में फिर से लोग सड़कों पर हैं, बल्कि इस बार तो संसद और पीएम आवास में भी घुसकर जमकर तोड़फोड़ की है। ऐसे में यह जानना जरूरी है कि शेख हसीना कौन हैं? इनका राजनीतिक इतिहास क्या है? सत्ता में आने से पहले किन किन परिस्थितियों से लड़ना पड़ा। आईए विस्तार से जानते हैं-

कौन हैं शेख हसीना?

शेख हसीना का जन्म 1947 में हुआ था। ये बांग्लादेश की सबसे विवादित चेहरा रही हैं। इसके बावजूद शेख हसीना ने नई ऊंचाइयां हासिल की। इसका नाम कई विवादों से जुड़ा है। इनका जीवन और राजनीति बांग्लादेश के इतिहास से जुड़ा हुआ है। इनके पिता शेख मुजीब-उर-रहमान ने 1971 बांग्लादेश को पाकिस्तान से आजादी दिलाई थी। पिता के शासनकाल में शेख हसीना ने ईडन कॉलेज में उपाध्यक्ष पद का चुनाव लड़ी और जीत गईं। इसके बाद अपने पिता की पार्टी में ही उन्होंने छात्र इकाई की जिम्मेदारी सम्हाला।

1975 में भी छोड़ा था देश

1975 में पिता मुजीब-उर-रहमान और अपने परिवार की हत्या के बाद हसीना को बांग्लादेश को देश छोड़कर भागना पड़ा था। कई वर्षों के निर्वास के बाद 1980 के दशक में हसीना एक बार फिर देश लौटी और राजनीति में सक्रिय हो गईं। शेख हसीना पर पिता का काफी असर रहा, यही कारण है कि उन्होंने अपने दल का नाम भी अवामी लीग ही रखा। 1981 में पार्टी की अध्यक्ष बनी और विपक्ष की नेता के तौर पर अपने राजनीति की एक नई शुरू की। 1996 में वह पहली बार पहली बार बांग्लादेश की प्रधानमंत्री बनी। पहले कार्यकाल में उन्होंने बांग्लादेश में कई सुधार किए। इसी समय बांग्लादेश में आर्थिक उदारवाद का उदय हुआ। जिससे बांग्लादेश में जमकर विदेशी निवेश हुए। इससे देश की आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ। हसीना के नेतृत्व में ही बांग्लादेश दुनियाभर में कपड़ा उद्योग का केंद्र बना।

इन उपलब्धियों के बावजूद हसीना का कार्यकाल विवादों से घिरा रहा। इस दौरान सरकार और न्यायपालिका में कई बार टकराव की स्थिति बनी। यही कारण है कि हसीना पर न्यायालयों की स्वतंत्रता से खिलवाड़ करने का भी आरोप लगे। जिसका कई देशों ने आलोचना की। विपक्ष ने हसीना पर तानाशाही के आरोप लगाए। इस्लामिक जमात-ए-इस्लामी पार्टी और मानवाधिकार संगठनों ने उनके खिलाफ विरोध प्रदर्शन भी किया। 2001 में विपक्षी पार्टी खालिदा जिया से हार का सामना करना पड़ा।

2006-08 का राजनीतिक संकट

2006 में भी कुछ ऐसी ही स्थिति बनी थी। सत्ता पर काबिज बांग्लादेशी नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) चुनाव का ऐलान करते हुए कार्यवाहक शासन की ओर चली गई थी। इस दौरान शेख हसीना ने बीएनपी सरकार पर बांग्लादेश के मुख्य न्यायाधीश की सेवा नेतृत्व की उम्र को असंवैधानिक तरीके से बढ़ाने का आरोप लगाया था। पूरे देश में जबरदस्त प्रदर्शन हुए। इसके बाद 2007 में सेना ने कार्यवाहक सरकार का समर्थन किया। लेकिन इससे स्थिति और बिगड़ गई। कार्यवाहक सरकार ने शेख हसीना देश निकाला दे दिया था। बाद में मानवाधिकार संगठनों के विरोध और अलग-अलग देशों के दबाव में हसीना को बांग्लादेश लौटने की अनुमति मिली। देश लौटते ही शेख हसीना को भ्रष्टाचार के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया।

2008 में अवामी दल की वापसी

बांग्लादेश में तय समय 90 दिन बीत जाने के बाद सेना के दबाव में कार्यवाहक सरकार ने चुनाव कराने का फैसला किया। 29 दिसंबर, 2008 को हुए चुनाव में आवामी लीग और उसकी सहयोगी दलों ने दो तिहाई सीटों पर कब्जा किया। बीएनपी और जमात ए इस्लामी को विपक्ष में बैठना पड़ा और एक बार फिर हसीना बांग्लादेश की प्रधानमंत्री बनीं।

15 साल लगातार किया शासन

शेख हसीना लगातार तीन कार्यकाल में कुल 15 साल बांग्लादेश पर शासन कर चुकी हैं। उनकी जीत को लेकर विपक्ष ने कई बार चुनाव में गड़बड़ी का मुद्दा भी उठाया। राजनीतिक संस्थाओं और स्वतंत्र संस्थानों को धमकाने के भी आरोप लगे। विपक्ष को दबाने का आरोप भी लगा। हालांकि उनके समर्थकों ने उनके कार्यकाल में बांग्लादेश में आर्थिक सुधारों और विकास का हवाला देकर प्रचार प्रसार जारी रखा।

शेख हसीना पर दो बार जानलेवा हमला भी हो चुका है। पहला हमला 1975 में, जब उनके पिता मुजीब के साथ उनके परिवार की हत्या कर दी गई थी। जिसमें हसीना बाहर होने की वजह से बच गईं। दूसरा हमला 2004 में उन पर ग्रेनेड से हमला किया गया था, जिसमें वह बुरी तरह जख्मी हो गई थीं। इस हमले में दो दर्जन से अधिक लोगों की मौत हुई थी।

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