पूर्व मुजाहिदीन कमांडर और संसद सदस्य अब्दुल रसूल सय्यफ को तालिबान में अफगानिस्तान के एक संभावित नेता के रूप में देखा जा रहा है। ऐसे कयास लगाए जा रहे हैं कि अब्दुल रसूल सय्यफ अफगानिस्तान से तालिबान विरोधी ताकतों को एकजुट कर सकते हैं जो वर्तमान में कई देशों में बिखरे हुए हैं।
70 के दशक के मध्य से ही उस्ताद अब्दुल रसूल सय्यफ लोगों के बीच बेहद लोकप्रिय रहे हैं। अफगानिस्तान में उन्हें एक विद्वान और एक वरिष्ठ पश्तून नेता के रूप में जाना जाता था। इस घटना से परिचित लोगों ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि अब्दुल रसूल सय्यफ ही एकमात्र ऐसे व्यक्ति हैं जो अपने व्यक्तित्व के प्रभाव से तालिबान विरोधी विभिन्न समूहों को एक साथ ला सकते हैं।
अशरफ गनी सरकार के पतन और अगस्त के मध्य में तालिबान द्वारा काबुल के अधिग्रहण के बाद उस्ताद अब्दुल रसूल सय्यफ वर्तमान में नई दिल्ली में मौजूद है। लोगों ने कहा कि सैयाफ का नाम आगे बढ़ाया गया क्योंकि तालिबान विरोधी कमांडर अहमद शाह मसूद के बेटे और अफगानिस्तान के राष्ट्रीय प्रतिरोध मोर्चा के संस्थापक अहमद मसूद को तालिबान विरोधी विभिन्न समूहों को एकजुट करने में बहुत कम सफलता मिली है।
पूर्व अफगान जासूस प्रमुख और उपराष्ट्रपति, क्रमशः मसूद और अमरुल्लाह सालेह को तालिबान विरोधी ताकतों के संभावित प्रमुखों के रूप में देखा गया था, लेकिन सितंबर में पंजशीर घाटी के तालिबान में पतन बाद से उनके स्टॉक में गिरावट आई है। माना जाता है कि मसूद वर्तमान में पेरिस और दुशांबे से अपने कामों को संचालित कर रहा है, जबकि अक्टूबर माह में सालेह को कथित तौर पर ताजिकिस्तान की राजधानी में देखा गया था।