
मात्र 19 वर्ष की उम्र में देवव्रत महेश रेके ने एक ऐसी अद्भुत उपलब्धि हासिल की है, जो न केवल उनके व्यक्तिगत प्रयासों का परिणाम है, बल्कि भारतीय संस्कृति और वेद ज्ञान के प्रति उनकी गहरी श्रद्धा और समर्पण को भी दर्शाता है। देवव्रत ने 50 दिनों तक बिना किसी पुस्तक को देखे ‘दन्द्र क्रम पारायण’ पूरा किया। यह एक असाधारण कार्य है, जो सामान्यतः अनुभव और पुस्तक आधारित अध्ययन से संभव होता है।
देवव्रत महेश रेके ने इसके साथ ही शुक्ल यजुर्वेद का अध्ययन भी पूर्ण किया, जो वेदों के महत्वपूर्ण ग्रंथों में से एक है। इस महान कार्य के लिए उन्हें काशी विद्वत परिषद द्वारा सम्मानित किया गया। यह सम्मान उनके वेद-ज्ञान और तपस्या को मान्यता देने के रूप में था।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी देवव्रत की इस असाधारण उपलब्धि पर उन्हें बधाई दी। पीएम मोदी ने कहा कि इस प्रकार की विद्वत्ता और तपस्या भारतीय संस्कृति की धरोहर को संजोने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है। उनका यह कार्य भविष्य के पीढ़ियों के लिए प्रेरणास्त्रोत होगा।
देवव्रत महेश रेके की उपलब्धि यह साबित करती है कि भारतीय संस्कृति और वेद-ज्ञान को संरक्षित रखने के लिए युवा पीढ़ी में भी गहरी रुचि और ज्ञान की छिपी हुई शक्ति मौजूद है। उनके इस प्रयास से प्रेरित होकर कई युवा अपने पारंपरिक ज्ञान और संस्कृतियों की ओर रुख कर सकते हैं।









