
Holi in Prayagraj: बारात का नाम सुनते ही दिमाग में दूल्हे की तस्वीर उभर आती है। लेकिन आज हम आपको एक ऐसी बारात से रूबरू कराने जा रहे हैं, जिसे जानकर आप हैरान रह जाएंगे और सोचने पर मजबूर हो जाएंगे कि आखिर यह कैसी बारात और कैसी शादी है। इस बारात में दूल्हा नहीं, बल्कि एक भारी-भरकम हथौड़ा होता है। संगमनगरी के नाम से मशहूर प्रयागराज की यह अनोखी परंपरा है, जहां होलिका दहन से पहले शहर की सड़कों पर पूरे विधि-विधान के साथ हथौड़े की बारात निकाली जाती है।
दूल्हा नहीं… हथौड़े की बारात
होली के रंगों की तरह ही इस त्योहार को मनाने की परंपराएं भी कम अनोखी नहीं हैं। प्रयागराज की यह अजीबो-गरीब परंपरा हथौड़े की बारात के नाम से जानी जाती है। इस अनूठी परंपरा वाली शादी में दूल्हे की जगह एक भारी हथौड़ा होता है। बारात निकालने से पहले कद्दू भंजन की रस्म भी की जाती है, जो इस परंपरा को और भी खास बना देती है।
आखिर हथौड़े की बारात क्यों…
प्रयागराज की यह परंपरा आज की नहीं हैं बल्कि सदियों पुरानी है। यहां होलिका दहन से एक दिन पहले शहर की सड़कों पर हथौड़े की बारात निकाली जाती है। इस बारात में सैकड़ों लोग शामिल होते हैं, जो बैंड-बाजे के साथ नाचते-गाते हुए चलते हैं। बारात का मुख्य आकर्षण एक विशाल हथौड़ा होता है, जिसे सजाया जाता है और इसे दूल्हे के रूप में पूजा जाता है। इस हथौड़े को समाज की बुराइयों को तोड़ने का प्रतीक माना जाता है।
कद्दू भंजन की रस्म
हथौड़े की बारात निकालने से पहले कद्दू भंजन की रस्म होती है। इस रस्म में एक कद्दू को हथौड़े से तोड़ा जाता है, जो बुराई और नकारात्मकता के प्रतीक के रूप में देखा जाता है। यह रस्म इस बात का संकेत देती है कि समाज से बुराइयों को खत्म करना ही इस परंपरा का मुख्य उद्देश्य है। कद्दू भंजन के बाद ही हथौड़े की बारात निकाली जाती है।
परंपरा का सामाजिक संदेश
प्रयागराज की यह अनोखी परंपरा न केवल एक सांस्कृतिक आयोजन है, बल्कि इसमें एक गहरा सामाजिक संदेश भी छुपा है। हथौड़े की बारात और कद्दू भंजन का उद्देश्य लोगों को यह याद दिलाना है कि समाज से बुराइयों को खत्म करना हम सभी की जिम्मेदारी है। यह परंपरा लोगों को एकजुट होकर नकारात्मकता और अंधविश्वास के खिलाफ खड़े होने का संदेश देती है।
लोगों की भागीदारी
इस परंपरा में शहर के बड़े-बूढ़े, युवा और बच्चे सभी बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं। बारात में शामिल लोग पारंपरिक वेशभूषा पहनते हैं और होली के गीत गाते हुए नाचते हैं। यह न केवल एक धार्मिक आयोजन है, बल्कि सामाजिक एकता और उल्लास का प्रतीक भी है। होली के इस अनोखे रंग को देखने के लिए दूर-दूर से लोग प्रयागराज आते हैं और इस परंपरा का हिस्सा बनते हैं। यह परंपरा हमें यह याद दिलाती है कि त्योहार न केवल उल्लास का, बल्कि सामाजिक सद्भाव और सकारात्मकता का भी प्रतीक होते हैं।