
लखनऊ- यूपी विधानसभा के लिए शुक्रवार का दिन ऐतिहासिक रहा. विधानसभा में 58 साल बाद शुक्रवार को अदालत लगी. भाजपा विधायक सलिल बिश्नोई की पिटाई करने वाले 6 पुलिसकर्मी कटघरे में पेश हुए. विशेषाधिकार हनन और सदन की अवमानना के दोषी इन सभी पुलिसकर्मियों को विधानसभा अध्यक्ष ने एक दिन की सजा सुनाई है. इस दौरान सभी पुलिसकर्मियों को विधानसभा में बनी सेल के लॉकअप में रखा जाएगा. इससे पूर्व विधानसभा में 1964 में अदालत लगी थी. विधानसभा की इस कार्यवाही के लिए अधिकांश सदस्यों ने हामी भरी और निर्णय विधानसभा अध्यक्ष के विवेक पर छोड़ा. इससे पूर्व अखिलेश यादव ने कहा था कि सदन में यह गलत परंपरा शुरू हो रही है.

➡MLA सलील बिश्नोई को 5 पुलिसकर्मियों ने पीटा था
— भारत समाचार | Bharat Samachar (@bstvlive) March 3, 2023
➡सलील बिश्नोई सदन में स्ट्रेचर पर पहुंचे थे
➡CO अब्दुल समद और साथी पुलिसकर्मियों ने लाठीचार्ज की थी
➡समिति की रिपोर्ट पर विधानसभा में तलब
➡बिजली कटौती के खिलाफ ज्ञापन सौंपा था pic.twitter.com/6maSSKesex
जानें पूरा मामला
विशेषाधिकार हनन और सदन की अवमानना का यह मामला 2004 का है. तब प्रदेश में सपा की सरकार थी, मुलायम सिंह मुख्यमंत्री थे. कानपुर में बिजली कटौती के विरोध में सतीश महाना (वर्तमान विधानसभा अध्यक्ष) धरने पर बैठे थे. उनके साथ स्थानीय भाजपा विधायक सलिल विश्नोई भी मौजूद थे. प्रदर्शन के दौरान पुलिस ने बीजेपी विधायक और कार्यकर्ताओं पर लाठीचार्ज किया.

इस दौरान सलिल विश्नोई का पैर टूट गया था. कई कार्यकर्ताओं को चोट आई. इसके बाद विशेषाधिकार हनन और सदन की अवमानना की सूचना 25 अक्टूबर 2004 को विधानसभा सत्र में रखी गई थी. विशेषाधिकार हनन और सदन की अवमानना के मामले में सभी 6 पुलिसकर्मियों के खिलाफ साल 2005 तक सुनवाई हुई. सुनवाई की प्रक्रिया पूरी होने के बाद 17 साल पहले सभी पुलिसकर्मियों को दोषी ठहराया जा चुका था. लेकिन 2005 के बाद से अभी तक सजा का ऐलान नहीं हुआ था.

विधानसभा अध्यक्ष ने दोषी पुलिसकर्मियों को सदन में पेश होने के दिए निर्देश
विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना ने इस मामले को लेकर DGP और प्रमुख सचिव गृह को पूर्व सीओ कानपुर के साथ पांच अन्य पुलिसकर्मियों को पेश करने के निर्देश दिए थे. संसदीय कार्य मंत्री सुरेश खन्ना ने सदन में विशेषाधिकार से जुड़े प्रस्ताव को रखा जिसकी सदन ने सर्वसम्मति से मंजूरी दी. इस मामल में दोषी सीओ अब्दुल समद के अलावा किदवई नगर के थानाध्यक्ष ऋषिकांत शुक्ला, एसआई थाना कोतवाली त्रिलोकी सिंह, किदवई नगर थाने के सिपाही छोटे सिंह यादव, काकादेव थाने के सिपाही विनोद मिश्र और काकादेव थाने के सिपाही मेहरबान सिंह सदन की अदालत में पेश हुए. इन सभी पुलिसकर्मियों की तैनाती उस समय कानपुर में थी.
इससे पूर्व 1964 में लगी थी सदन में अदालत
14 मार्च 1964 में यूपी विधानसभा में कांग्रेस के पूर्व सांसद नरसिंह नारायण पांडे ने विधानसभा सदस्य के खिलाफ भ्रष्टाचार का आरोप लगाया था. उन्होंने विधानसभा में हाथों से पंपलेट बांटा था. विधानसभा में नरसिंह नारायण पांडेय तथा अन्य द्वारा शिकायत की गई यह विशेषाधिकार का हनन है. विशेषाधिकार समिति की शिकायत पर चार लोगों को नोटिस भेजा गया था.
जिसमें केशव सिंह, श्याम नारायण, हुबलाल दुबे और महात्मा सिंह नोटिस में शामिल थे. इन चारों पर आरोप था कि श्याम नारायण सिंह हुबलाल दुबे ने पंपलेट को छपवाया और बांटा था. विशेषाधिकार समिति की जांच में आरोप सही पाए जाने पर फटकार लगाते हुए दोषियों पर अवमानना की कार्रवाई करने का निर्देश दिया गया था. जिसमें सभी दोषियों को सात दिन की सजा मिली थी व दो रुपये जुर्माना भी देना पड़ा था.
इस मामल में नरसिंह नारायण पांडे विधानसभा सदस्य की याचिका पर दोषी पाए गए श्याम नारायण सिंह, हुबलाल दुबे समेत तीन को विधानसभा के समक्ष उपस्थित होने का नोटिस जारी किया गया था. श्याम नारायण सिंह और हुबलाल दुबे 19 फरवरी 1964 को विधानसभा के समक्ष पेश हुए. लेकिन आवश्यक रेल यात्रा की किराए का भुगतान करने में असमर्थता जताई. तीसरे दोषी पाए गए केशव सिंह को विधानसभा अध्यक्ष के बार-बार कहने के बावजूद उपस्थित न हुए.
इस पर विधानसभा अध्यक्ष के आदेश पर मार्शल के द्वारा उन्हें 14 मार्च 1964 को गोरखपुर से गिरफ्तार किया गया. विधानसभा अध्यक्ष द्वारा जारी किए गए वारंट पर केशव सिंह को 19 मार्च 1964 को 7 दिन की सजा मिली और 2 रुपये जुर्माना भी लगा. फिलहाल इस मामले में केशव सिंह ने विधानसभा अध्यक्ष के खिलाफ हाईकोर्ट इलाहाबाद बेंच में 10 मार्च 1965 को याचिका दाखिल की थी.