अलीगढ़ के थाना विजयगढ़ इलाके के गांव नगला खुआ में पुलिस की हठधर्मी के कारण मृतक के भाई बहन को अंतिम बार मुँह तक देखना नसीब ना हो सका। छोटा भाई मुखाग्नि देना चाहता था, उसे भी शव नहीं सौंपा गया। दरअसल इलाके में 3 दिन से लापता दलित दिव्यांग युवक महेश का शवएक दिन पहले गांव के सूखे पड़े एक कुएं में पड़ा मिला था।
जोकि गांव में अपनी 4 बीघा जमीन में अन्य लोगों के सहयोग से खेती-बाड़ी कर जीवन यापन किया करता था। जिसका छोटा भाई ललित फरीदाबाद में कुछ दिनों पूर्व ही नौकरी करने चला गया था। कुएं में संदिग्ध परिस्थितियों में मिले शव के बाद परिजनों ने हत्या की आशंका भी जताई। मृतक के छोटे भाई ललित ने आरोप लगाया है कि वह जब फरीदाबाद से गांव वापस लौटा तो पता चला कि उसके भाई के शव को पुलिस पोस्टमार्टम के लिए ले जा चुकी है।
पोस्टमार्टम हाउस पर पहुंचा तो वहां अग्रिम कार्यवाही चल रही थी। ललित ने अपने भाई के शव को गांव में ना ले जाकर इगलास क्षेत्र में अंतिम संस्कार करने की बात कहते हुए उसके भाई के शव को उसके सुपुर्द करने की गुहार पुलिस ने लगाई। क्योंकि इगलास में उसकी बहन रहती है और वह भी अक्सर वहीं रहता था। गांव में भाई के अलावा कोई और नहीं रहता था। चाचा-ताऊ से ज्यादा मतलब नहीं रखते थे। क्योंकि वह लोग अलग रहते हैं।
दलित का आरोप है कि काफी गुहार के बावजूद भी पुलिस ने शव उसे नहीं सौंपा और पुलिस शव को गांव ले गई। इधर मृतक का भाई ललित व उसकी बहन शव लेने की गुहार लगाते हुए थाने पहुंच गए। लेकिन पुलिस ने एक न सुनी। वहां से जब तक गांव में पहुंचे तो मृतक के शव का अंतिम संस्कार पुलिस ने ग्राम प्रधान से मिलकर कर दिया। ललित और उसकी बहन का आरोप है कि उसके मृतक भाई को वह मुखाग्नि देना चाहता था। लेकिन उसे मुंह तक देखने को नसीब नहीं हुआ। यहां सवाल यह खड़ा होता है कि आखिर पुलिस ने अंतिम संस्कार में इतनी जल्दबाजी क्यों की? हाथरस कांड की तरह बिना सगे भाई के अंतिम संस्कार आखिर क्यों कर दिया गया?