
नई दिल्ली: रक्षा मंत्रालय 2025 को ‘सुधारों का वर्ष’ (Year of Reforms) के रूप में मनाने की दिशा में तेजी से कदम बढ़ा रहा है। स्वदेशी रक्षा उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने एक के बाद एक कई अहम फैसले लिए हैं। कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी (CCS) ने जहां 307 स्वदेशी तोपों की खरीद को मंजूरी दी, वहीं रक्षा अधिग्रहण परिषद (DAC) ने भी पूंजी अधिग्रहण प्रक्रिया में सुधार के लिए नई गाइडलाइंस को मंजूरी दी है। ये गाइडलाइंस रक्षा खरीद प्रक्रिया को 10-15% तक तेज करने में मदद करेंगी।
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की अध्यक्षता में हुई इस बैठक में 54,000 करोड़ रुपये से अधिक के आठ रक्षा खरीद प्रस्तावों को मंजूरी दी गई। इनमें भारतीय सेना के T-90 टैंकों को अपग्रेड करने के लिए 1,350 हॉर्सपावर के नए इंजन की खरीद शामिल है, जिससे टैंकों की ऊंचाई वाले इलाकों में गतिशीलता बेहतर होगी।
आत्मनिर्भर भारत और स्वदेशी रक्षा उत्पादन की दिशा में तेजी
सरकार का यह कदम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आत्मनिर्भर भारत पहल को मजबूती देता है, जिसका लक्ष्य विदेशी रक्षा आपूर्तिकर्ताओं पर निर्भरता कम करना और घरेलू रक्षा निर्माण को बढ़ावा देना है। यह और भी महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि FY24 से अगले 10 वर्षों में रक्षा क्षेत्र में 138 अरब डॉलर (लगभग 11.5 लाख करोड़ रुपये) के ऑर्डर की संभावना है।
- रक्षा एयरोस्पेस सेक्टर को अकेले 50 अरब डॉलर के ऑर्डर मिलने की संभावना है।
- मिसाइल और तोपखाने (आर्टिलरी) को 21 अरब डॉलर के ऑर्डर मिल सकते हैं।
स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (SIPRI) की रिपोर्ट के अनुसार, भारत 2023 में दुनिया का चौथा सबसे बड़ा सैन्य खर्च करने वाला देश था। इस साल भारत का कुल रक्षा बजट 836 अरब रुपये रहा, जो 2022 की तुलना में 4.2% अधिक है।
भारत अभी भी दुनिया का सबसे बड़ा हथियार आयातक देश बना हुआ है। 2023 में भारत ने 36% हथियार रूस से खरीदे, जबकि अमेरिका और फ्रांस से कुल 46% हथियार आयात किए। हालांकि, रूस से आयात में कमी आई है, जो एक दशक पहले 50% से अधिक था।
रक्षा उत्पादन में तेजी, लेकिन निजी क्षेत्र की भागीदारी चिंता का विषय
पिछले एक दशक में भारत का रक्षा उत्पादन दोगुने से अधिक बढ़ा है। FY15 में 46,429 करोड़ रुपये का रक्षा उत्पादन था, जो अब बढ़कर FY24 में 21,083 करोड़ रुपये के रक्षा निर्यात तक पहुंच गया है। यह FY23 की तुलना में 33% अधिक और FY15 की तुलना में 10 गुना अधिक है।
लेकिन निजी क्षेत्र की भागीदारी अभी भी कम है, जो रक्षा उत्पादन में केवल 19-21% के बीच बनी हुई है। रक्षा मंत्रालय के अनुसार, निजी कंपनियों को अब भी तकनीकी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, खासकर इंजन और अन्य महत्वपूर्ण रक्षा उत्पादों के निर्माण में।
आगे की राह और सरकार की रणनीति
विशेषज्ञों का मानना है कि स्वदेशी रक्षा उद्योग को बड़े ऑर्डर और राजस्व में बढ़ोतरी के लिए अभी लंबा समय लगेगा। रक्षा उत्पादों के निर्माण और परीक्षण की कठोर प्रक्रिया के चलते वैश्विक मानकों पर खरा उतरना जरूरी होता है।
सरकार का लक्ष्य अब ऐसे आधुनिक और अत्याधुनिक हथियारों में निवेश करना है, जो भारत की सैन्य शक्ति को और मजबूत कर सकें। इसके अलावा, स्वदेशी अनुसंधान एवं विकास (R&D) को बढ़ावा देना और विदेशी आपूर्तिकर्ताओं पर निर्भरता कम करना भी सरकार की प्राथमिकता है।
अगर सरकार एक दूरदर्शी और व्यापक आधुनिकीकरण रणनीति पर काम करती है, तो इससे न सिर्फ राष्ट्रीय सुरक्षा मजबूत होगी, बल्कि भारत को वैश्विक रक्षा बाजार में एक प्रमुख तकनीकी शक्ति के रूप में उभरने का मौका भी मिलेगा।