
Delhi: भारत सरकार ने इस वित्तीय वर्ष की पहली छमाही (अप्रैल से सितंबर) में छह प्रमुख सेक्टरों के लिए प्रोडक्शन-लिंक्ड इंसेंटिव (PLI) स्कीम्स के तहत 1,596 करोड़ रुपये का वितरण किया है। इनमें इलेक्ट्रॉनिक्स और फार्मा जैसे सेक्टर शामिल हैं। यह योजना भारत की मैन्युफैक्चरिंग और तकनीकी क्षेत्र में बड़े बदलाव लाने का उद्देश्य रखती है।
PLI स्कीम्स का उद्देश्य
PLI स्कीम्स का मुख्य उद्देश्य है, भारत में विभिन्न प्रमुख सेक्टरों में निवेश को आकर्षित करना, नई तकनीकों को अपनाना, और मैन्युफैक्चरिंग में दक्षता और पैमाने की अर्थव्यवस्था लाना। साथ ही, यह भारतीय कंपनियों और निर्माताओं को वैश्विक प्रतिस्पर्धा में आगे बढ़ाने में मदद करता है।
कितना हुआ वितरण?
इस वित्तीय वर्ष की पहली छमाही में 1,596 करोड़ रुपये का वितरण किया गया। सबसे ज्यादा ₹964 करोड़ का वितरण इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्युफैक्चरिंग के लिए किया गया। इसके बाद फार्मा सेक्टर को ₹604 करोड़, फूड प्रोडक्ट्स को ₹11 करोड़, टेलीकॉम को ₹9 करोड़, बल्क ड्रग्स को ₹6 करोड़ और ड्रोन सेक्टर को ₹2 करोड़ मिले।
PLI स्कीम्स का MSME सेक्टर पर असर
इस स्कीम का एक बड़ा असर MSME (माइक्रो, स्मॉल, और मीडियम एंटरप्राइजेज) सेक्टर पर देखने को मिल रहा है। जिन प्रमुख इकाइयों का निर्माण हर सेक्टर में किया जाएगा, उन्हें एक नई सप्लायर बेस की आवश्यकता होगी, जो अधिकांश MSME सेक्टर में ही विकसित होंगे। इसका मतलब है कि MSME सेक्टर को बहुत सारे नए अवसर मिलेंगे।
अब तक के परिणाम
जुलाई 2024 तक, PLI स्कीम्स के तहत ₹1.46 लाख करोड़ का निवेश किया गया है, जिसके परिणामस्वरूप ₹12.50 लाख करोड़ की उत्पादन और बिक्री में वृद्धि हुई है। साथ ही, 9.5 लाख से ज्यादा रोजगार के अवसर पैदा हुए हैं, और निर्यात ₹4 लाख करोड़ से ज्यादा हो चुका है।
PLI स्कीम्स के तहत कुल लाभ
अब तक 760 से अधिक आवेदन PLI स्कीम्स के तहत मंजूर किए जा चुके हैं, जो भारतीय अर्थव्यवस्था और उद्योग के लिए महत्वपूर्ण कदम साबित हो रहे हैं। यह योजना देश में औद्योगिक विकास, रोजगार सृजन और निर्यात में वृद्धि को सुनिश्चित करती है।
उद्योगों के लिए एक मील का पत्थर
PLI स्कीम्स भारत के उद्योगों के लिए एक मील का पत्थर साबित हो रही है। इसके जरिए न केवल निवेश आकर्षित किया जा रहा है, बल्कि भारत को ग्लोबल मैन्युफैक्चरिंग हब बनाने का रास्ता भी तैयार हो रहा है। सरकार की इस पहल से भारतीय उद्योगों को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाने में मदद मिलेगी, साथ ही MSME सेक्टर को भी विकास के नए अवसर मिलेंगे।