देश के मशहूर गीतकार, शायर, डायरेक्टर, प्रोड्यूसर और लेखक गुलज़ार साहब का आज जन्मदिन है। उनके जन्मदिन पर हम आज आपको उनसे जुड़ी कुछ दिलचस्प बाते बताते हैं।
गुलज़ार साहब का जन्म 18 अगस्त 1934 को पंजाब के झेलम (जो कि अब पाकिस्तान का हिस्सा है) में हुआ था। गुलजार साहब का सही नाम संपूर्णं सिंह कालरा है। उनका जन्म एक सिख परिवार में हुआ था। 1947 में हुए बँटवारे के बाद उनका पूरा परिवार अमृतसर आकर बस गया। गुलज़ार साहब ने दिल्ली में शिक्षा ग्रहण की और फिर रोजी-रोटी की तलाश मेें मुंबई आ गए। लेखक बनने से पहले गुलज़ार साहब ने कार मैकेनिक के रूप में करियर ची शुरूआत की थी। गुलज़ार साहब ने बॉलीवुड में अपनी एक अलग पहचान बनाई। 2010 में उन्हें जय हो गाने के लिए “ग्रैमी आवार्ड” भी मिल चुका है। 2013 में उन्हें असम यूनिवर्सटी का वाइस चांसलर नियुक्त किया गया। उन्हें पाँच नेशनल फिल्म आवार्ड, 22 फिल्मफेयर आवार्ड, साहित्य आकादमी पुरस्कार, दादा साहब फाल्के आवार्ड और पद्मश्री से नवाज़ा जा चुका है।
म्यूजिक के प्रति गुलजार साहब का झुकाव शुरू से ही था। लेकिन उनके पिता व भाई को उनका लिखना पसंद नहीं था। उनका मानना था कि गुलजार साहब ऐसा करके सिर्फ अपना समय बर्बाद कर रहे हैं। इसके चलते उनको काफ़ी डाँट भी पड़ती थी। वह डाँट से बचने के लिए अपने पड़ोसी के घर जाकर लिखने की प्रैक्टिस करते थे।
गुलज़ार साहब के बारे मे एक और रोचक किस्सा है। उन्होंने अपने पिता की मौत के पाँच वर्ष बाद तक उनकी अस्थियां बचाए रखी थी। दरअसल, जब उनके पिता की मौत हुई, उस समय वह मुंबई में मौजूद थे। उनके भाई पिता की मौत की सूचना मिलने के बाद फ्लाईट पकड़ कर दिल्ली आ गए और पिता का अंतिम संस्कार कर दिया। लेकिन गुलज़ार साहब के पास फ्लाईट की टिकट के पैसे नहीं थे, जिसके कारण उनको ट्रेन से अगले दिन आना पड़ा। अपने पिता के अंतिम संस्कार में गुलज़ार साहब शामिल नहीं हो पाए थे। जिसके बाद उन्होंने अपने पिता की अस्थियां पाँच वर्ष तक बचाकर रखी। और जब पाँच वर्ष बाद उनके करीबी बिमल दा का निधन हुआ तो उन्होंने बिमल दा की अस्थियों के साथ अपने पिता की अस्थियों को विसर्जित किया था।