
Mahakumbh: महाकुंभ मेला, जो भारत में हर 12 साल में एक बार आयोजित होता है। इस बार महाकुंभ बेहद खास है। इसकी सबसे बड़ी वजह ये हैं कि ग्रहों की जो स्थिति हैं वो बेहद दुर्लभ संयोग बना रही है। ऐसा इसलिए कह रहे हैं क्योंकि 144 साल के बाद महाकुंभ में समुद्र मंथन के संयोग बन रहे हैं। बताया जा रहा है कि यह शुभ संयोग समुद्र मंथन के दौरान बनी थी। ऐसे में इस बार का महाकुंभ बेहद खास हैं। इस मेले का आयोजन प्रयागराज (इलाहाबाद), हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में होता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि महाकुंभ मेला पहली बार कब और कहां आयोजित हुआ था? इसके इतिहास से जुड़े कई ऐसे रहस्य हैं, जिनके बारे में आज भी बहुत से लोग अंजान हैं। तो आइए जानते हैं इसके पीछे के राज और रहस्य…

कैसे हुई कुंभ की शुरुआत?
इसके लिए एक कहानी बहुत प्रचलित हैं वो कहानी हैं समुद्र मंथन की…दरअसल,एक समय देवराज इंद्र अहंकारी हो गए थे, जिसके बाद ऋषि दुर्वासा ने उन्हें श्राप दिया था कि इंद्र श्रीहीन हो जाएंगे। इसके चलते स्वर्ग का ऐश्वर्य, देवताओं का धन और वैभव सब कुछ नष्ट हो गया। इसके बाद देवता भगवान विष्णु से मदद मांगने पहुंचे। भगवान विष्णु ने उन्हें समुद्र मंथन करने की सलाह दी और कहा कि अमृत प्राप्त होने पर देवता अमर हो जाएंगे और स्वर्ग का वैभव भी लौटेगा। भगवान विष्णु ने मंथन के लिए देवताओं और असुरों को साथ आने को कहा। असुरों के राजा दैत्यराज बली अमृत और रत्न पाने के लिए मंथन के लिए तैयार हो गए। इसके बाद मंदराचल पर्वत और वासुकी नाग की सहायता से समुद्र मंथन किया गया। इस मंथन में 14 मुख्य रत्न निकले।

12 साल में ही क्यों होता है कुंभ?
इसके बाद पुराणों के मुताबिक, समुद्र मंथन के दौरान जब भगवान धन्वंतरि अमृत कलश लेकर प्रकट हुए, तो देव और दानवों में अमृत पाने के लिए युद्ध शुरू हो गया। यह युद्ध देवताओं और असुरों के बीच अमृत कलश को लेकर 12 दिनों तक छिड़ा था, आपको बता दें कि देवताओं के 12 दिन धरती पर 12 सालों के जितने होते हैं। देव-असुर युद्ध के दौरान आकाश से धरती पर अमृत की चार बूंदें गिरीं, जो उज्जैन की शिप्रा, प्रयागराज की गंगा-यमुना-संगम, नासिक की गोदावरी और हरिद्वार में गंगा में जा गिरीं। आज इन्हीं चार स्थानों पर कुंभ मेले का आयोजन किया जाता है। साथ ही हर 12 साल में इन जगहों पर महाकुंभ होता है। पुराणों में बताया गया हैं कि, समुद्र मंथन के बाद से ही कुंभ की शुरुआत हुई। कुंभ का उल्लेख ऋग्वेद, अथर्ववेद और यजुर्वेद में भी मिलता है।

महाकुंभ मेले का ऐतिहासिक रहस्य
महाकुंभ के इतिहास से जुड़े कई रहस्य हैं, जिनका खुलासा आज तक नहीं हो पाया है। काफी लोगों के मन में अक्सर यह प्रश्न आता हैं कि महाकुंभ मेला पहली बार कब और कहां आयोजित हुआ था, हालांकि आज भी इसका रहस्य अनसुलझा है। कुछ पुराणों में कहा गया है कि यह मेला शुरू में हरिद्वार में आयोजित हुआ था, जबकि अन्य ग्रंथों में प्रयागराज को पहला स्थल बताया गया है। इसके अलावा, महाकुंभ मेला में भाग लेने के लिए श्रद्धालुओं द्वारा किए जाने वाले विशेष अनुष्ठान और पूजा विधियाँ भी आज तक एक रहस्य बनी हुई हैं।

महाकुंभ मेला 2025 में एक नया अध्याय
महाकुंभ मेला 2025 का आयोजन प्रयागराज में होने जा रहा है, और यह मेले के इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ेगा। लाखों श्रद्धालु और पर्यटक इस अद्भुत आयोजन में भाग लेने के लिए यहां आएंगे, और यह मेला एक बार फिर से भारतीय संस्कृति और धर्म के अद्भुत संगम को प्रदर्शित करेगा। वही इस साल प्रयागराज में महाकुंभ के दौरान 3 दिन के तप के बाद 12 हजार संत नागा संन्यासी बनेंगे। इसके लिए सभी अखाड़ों ने तैयारी भी कर ली है। महाकुंभ का पहला अमृत स्नान (शाही स्नान) 14 जनवरी को किया जाएगा।

आयोजन का कुल बजट 7000 करोड़ रुपये
इस बार काफी कुछ खास होने वाला हैं। महाकुंभ मेले में डिजिटल तकनीक का अभूतपूर्व उपयोग किया गया है, जिसमें आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और रिस्ट बैंड की मदद से श्रद्धालुओं की गतिविधियों को ट्रैक किया जाएगा। महाकुंभ में अनुमानित 45 करोड़ श्रद्धालु आएंगे। मेला परिसर 4000 हेक्टेयर में फैला है, जिसमें 1,50,000 टेंट लगाए गए हैं। आयोजन का कुल बजट 7000 करोड़ रुपये रखा गया है। इतना ही नहीं पहली बार श्रद्धालुओं की गणना भी की जाएगी।









