NISAR Satellite Launch : श्रीहरिकोटा से लॉन्च हुआ सैटेलाइट, जलवायु परिवर्तन और आपदा प्रबंधन में लाएगा क्रांति

NASA ISRO Radar Mission. भारत ने अंतरिक्ष विज्ञान और पर्यावरणीय निगरानी के क्षेत्र में एक नया मील का पत्थर पार किया है। बुधवार शाम 5:40 बजे श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से भारत और अमेरिका के संयुक्त सहयोग से तैयार NISAR (NASA-ISRO Synthetic Aperture Radar) सैटेलाइट का सफल प्रक्षेपण किया गया। इस ऐतिहासिक मिशन के साथ भारत ने वैश्विक जलवायु निगरानी और आपदा प्रबंधन में नई ऊंचाई छू ली है।

NISAR मिशन लगभग $1.5 बिलियन डॉलर की लागत से विकसित किया गया है और इसे इसरो के GSLV (जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल) द्वारा अंतरिक्ष में भेजा गया। यह दुनिया का पहला ऐसा अर्थ-मैपिंग सैटेलाइट है, जिसमें डुअल-फ्रीक्वेंसी सिंथेटिक अपर्चर रडार (SAR), नासा का L-बैंड और इसरो का S-बैंड, एक साथ लगे हैं।

कैसे करेगा काम?

यह रडार प्रणाली बादलों, जंगलों और अंधेरे में भी धरती की सतह पर हो रहे सूक्ष्मतम परिवर्तनों को सटीकता से पकड़ सकती है, यहां तक कि कुछ मिलीमीटर तक के बदलाव भी। हर 97 मिनट में यह सैटेलाइट पृथ्वी की एक परिक्रमा पूरी करेगा और हर 12 दिन में पृथ्वी के लगभग सभी भू-भाग और हिम क्षेत्र का उन्नत चित्रण प्रदान करेगा।

भारत को क्या मिलेगा लाभ?

NISAR मिशन का सबसे बड़ा फायदा भारत को आपदा प्रबंधन और पर्यावरणीय अनुसंधान में मिलेगा।

  • हिमालय के ग्लेशियरों की गति
  • भूकंप से पहले फॉल्ट लाइनों की पहचान
  • कृषि चक्रों की निगरानी
  • जल संसाधनों का प्रभावी प्रबंधन
  • बाढ़, सूखा और भूस्खलन की पूर्व चेतावनी
    इन सभी क्षेत्रों में NISAR के डेटा का उपयोग कर भारत अधिक प्रभावशाली और सटीक नीतियां बना सकेगा।

मिशन के चार चरण

  1. लॉन्च: सफलतापूर्वक प्रक्षेपण
  2. डिप्लॉयमेंट: 12 मीटर डिश एंटीना का 9 मीटर लंबा विस्तार
  3. कमिशनिंग: 90 दिन की जांच और कैलिब्रेशन
  4. साइंस ऑपरेशन: दीर्घकालीन वैज्ञानिक डेटा संग्रह और विश्लेषण

सैटेलाइट के सभी मुख्य उपकरण इसरो के यू आर राव सैटेलाइट सेंटर (URSC) में असेंबल किए गए। वहीं, रडार सिस्टम की असेंबली और टेस्टिंग नासा के जेट प्रोपल्शन लैब (JPL) में हुई।

वैश्विक नेतृत्व का संकेत

यह मिशन भारत की अंतरराष्ट्रीय सहयोग, तकनीकी क्षमता और जलवायु नेतृत्व को दर्शाता है। NISAR के जरिए भारत और अमेरिका ने मिलकर एक ऐसा उपकरण विकसित किया है, जिससे पृथ्वी के पर्यावरण को बेहतर ढंग से समझा और संरक्षित किया जा सकेगा।

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