SBI ने चुनावी फायदे के लिए मुफ्त रेवड़ियां बांटने को बताया टाइम बम, मुफ्त योजनाओं व कल्याणकारी योजनाओं में फर्क समझने की है जरूरत

भारतीय स्टेट बैंक ने सरकारों द्वारा लायी जा रही मुफ्त योजनाओं पर चिंता जताई। एक रिपोर्ट जारी कर चुनावी फायदे के लिए मुफ्त रेवड़ियां(मुफ्त योजनाओं) बांटने को टाइम बम बताया

भारतीय स्टेट बैंक ने सरकारों द्वारा लायी जा रही मुफ्त योजनाओं पर चिंता जताई। एक रिपोर्ट जारी कर चुनावी फायदे के लिए मुफ्त रेवड़ियां(मुफ्त योजनाओं) बांटने को टाइम बम बताया। सुप्रीम कोर्ट की मुफ्त उपहार का विश्लेषण करने वाली समिति से राज्य सरकारों द्वारा लागू की जा रही कल्याणकारी योजनाओं पर राज्य के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) या कुल कर संग्रह की एक फीसदी सीमा तय करने का आग्रह भी किया है।

डॉ. सौम्य कांति घोष जो वर्तमान भारतीय स्टेट बैंक समूह के मुख्य आर्थिक सलाहकार हैं। उन्होंने ‘इकोरैप’ नाम से एक रिपोर्ट जारी कर पुरानी पेंशन स्कीम की वापसी पर चिंता जताते बताया कि झारखंड, राजस्थान व छत्तीसगढ़ राज्यों ने पुरानी पेंशन स्कीम फिर से बहाल कर दी है। जिसके बाद कई अन्य राज्य भी स्कीम वापस लाने पर विचार कर रहे हैं। अगर सभी ऐसा करते हैं तो पेंशन पर ही हर साल 31.04 लाख करोड़ रुपये खर्च होंगे। कई राजनीतिक दल राज्यों में चुनाव जीतने के लिये मुफ्त स्कीमों का वादा कर रहे हैं। इन पर राज्यों के कुल कर संग्रह का 10 प्रतिशत खर्च होगा। रिपोर्ट में पेंशन सुविधा सिर्फ खास वर्ग को देने की बात कही गयी है।

रिपोर्ट में मुफ्त योजनाओं व कल्याणकारी योजनाओं में बहुत महीन फर्क बताया है। इसे समझना काफी मुश्किल पर आवश्यक है। मुफ्त योजनाओं में यह नहीं देखते कि किसे फायदा मिलना चाहिए और किसे नहीं। जैसे मुफ्त बिजली-पानी, स्मार्टफोन, लैपटॉप, साइकिल, किसान लोन माफी आदि सभी के लिये समान हैं। जबकि कल्याणकारी योजना का लक्ष्य उन लोगों तक मदद पहुंचाना है, जिन्हें जरूरत है। जैसे 80 करोड़ लोगों को कोरोना महामारी के दौरान अनाज मुहैया करना। मुफ्त योजनाओं को लागू करने से राज्य पर वित्तीय बोझ बढ़ता है। जिससे संसाधनों कीमतों पर बुरा असर पड़ता है और संसाधन गलत ढंग से आवंटित होने लगते हैं। अन्त में इसकी कीमत करदाता को चुकानी पड़ती है।

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