वाराणसी. वाराणसी के काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक ने दावा किया है कि ओमिक्रोन कोरोना वायरस का नया वैरिएंट नहीं है, बल्कि इसके पुराने वर्जन 18 महीने से घूम रहे हैं। मगर, 32 म्यूटेशन होने के बाद यह सक्रिय हुआ और लोगों को अपनी गिरफ्त में ले रहा है। बताया यह भी जा रहा है कि इसका नया म्यूटेशन एड्स मरीज में हुआ, जिसके बाद यह तेजी से फैल रहा। वह भी अफ्रीकन लोगों को जो कि कोविड के दोनों लहर में लगभग अछूते रहे।
BHU के जीव वैज्ञानिक प्रो. ज्ञानेश्वर चौबे की सिक्वेंस एनालिसिस स्टडी के मुताबिक इस वैरिएंट जन्म मई 2020 में अफ्रीकी देशों में हुआ था। उस समय इसका संक्रमण दर शून्य पर था। मगर आज इस वैरिएंट का R0 (आर नॉट) 2.0 से अधिक है, जबकि डेल्टा वैरिएंट की 1.6 ही थी। यानि कि इस वैरिएंट से संक्रमित एक व्यक्ति 2 लोगों को कोरोना फैला रहा है।
भारत में इस वैरिएंट से ग्रस्त लोगों की गंभीर बीमारी नहीं होगी। इसके पीछे डेल्टा और डेल्टा प्लस वैरिएंट है। दरअसल, इस वायरस में भी डेल्टा जैसे ही म्यूटेशन देखे गए हैं। भारत में कोरोना की दूसरी लहर डेल्टा वैरिएंट के ही कारण ही आई थी। इस लिहाज से यहां के लोगों पर ओमिक्रॉन वैरिएंट से कोई बहुत बड़ा असर नहीं पड़ेगा। संक्रमण भले ही बढ़े, मगर मृत्युदर बेहद नीचे रहेगी।
अफ्रीकन लोगों की इम्युनिटी सबसे बेहतर
अफ्रीका के मानव हमसे 2 लाख साल पहले धरती पर आए थे, इस लिहाज से उनकी इम्युनिटी हमसे कहीं बेहतर है। यदि यह वैरिएंट अन्य देशों में फैलता है तो इसका असर कुछ ज्यादा हो सकता है। प्रो. चौबे बताते हैं कि अफ्रीका में इसका इंफेक्शन रेट डेल्टा वैरिएंट से भी ज्यादा है, मगर सिवियॉरटी काफी कम है। इस वैरिएंट का म्यूटेशन रेट काफी तेज है। हर महीने इसमें 2 या 3 म्यूटेशन होने की क्षमता है। डेल्टा वैरिएंट के स्पाइक प्रोटीन पर 2 म्यूटेशन पाए गए हैं, जबकि ओमिक्रॉन वैरिएंट के भी स्पाइक प्रोटीन पर 32 म्यूटेशन अब तक हो चुका है।