
सरहदें अच्छी कि सरहद पे न रुकना अच्छा
सोचिए आदमी अच्छा कि परिंदा अच्छा
शायर इरफान सिद्दीकी के इस सवाल के जबाब में तो परिंदों को ही अच्छा कह सकते है. अगर ऐसा न होता तो पाकिस्तान के कमर की जिंदगी सरहदों के हिसाब-किताब में बंटकर चिथड़े न हुई होती. सवाल था पाकिस्तानी या हिन्दुस्तानी…. पूरी जिंदगी इस कशमकश में जीने वाले कामिल खान उर्फ कमर के परिवार में बरसों बाद ईद आयी है. उम्रकैद से ज्यादा सजा काटने के बाद कामिल खान को सुप्रीमकोर्ट के आदेश पर डिटेन्शन सेंटर की कैद से आजादी नसीब हुई है. देश की सरहदों के बंटवारे का दंश झेलने वाले इस परिवार की दो पीढ़ियों की जिंदगी तरक्की से महरूम होकर महज मुफलिसी की होकर रह गयी.
मेरठ के खैरनगर की डॉक्टर सेन गली के वाशिन्दे कामिल खान उर्फ कमर 8 साल के थे जब वह 1959 में अपनी मां के साथ पाकिस्तान के लाहौर गये. पाकिस्तान में उनकी मां की अचानक मौत हुई और वह वहीं के होकर रह गये. रिश्तेदारों ने उन्हें बालिग होने तक पाला-पोसा जरूर लेकिन उनकी पढ़ाई-लिखाई नही हो सकी. बालिग होने पर कमर को पाकिस्तान से पासपोर्ट मिला और वह लॉग-टर्म वीजा पर मेरठ अपने खानदान के बीच आ गये.

उनके परिवार ने शहनाज बेगम से उनका निकाह कर दिया और वह अपने 5 बच्चों के परिवार के बीच रहते रहे. 2011 में एक शिकायत पर उन्हें पुलिस पकड़कर ले गयी तो पता चला कि उनका वीजा एक्सपायर्ड हो गया और अनपढ़ होने की वजह से वह उसे रिन्यू नही करा सके. कामिल यहां खराद मशीन पर डाई बनाने का काम करते थे.
देहलीगेट थाने में मुकदमा दर्ज हुआ और कमर को साढ़े 3 साल के लिए जेल हो गयी. जेल की सजा पूरी होने पर उन्हें दिल्ली के नरेला में डिटेंशन सेंटर की कैद में भेज दिया गया. केन्द्र सरकार ने दो बार पाकिस्तान को अपना नागरिक वापिस लेने के लिए चिट्ठी भेजी लेकिन सरहद पार से कोई जबाब नही आया.

दो साल पहले कमर की बेटी एना परवीन ने अपने पिता की रिहाई के लिए सुप्रीमकोर्ट में पैरवी शुरू की. 11 साल कैद की सजा काट चुके कमर को सुप्रीमकोर्ट ने सशर्त जमानत पर रिहाई दी है. विदेश मंत्रालय अब यह तय करेगा कि कमर को लॉग-टर्म वीजा दिया जा सकता है या नही. लेकिन कमर की रिहाई से परिवार के लिए ईद को तोहफा जरूर आया है.
कमर की बेटी शाहिदा बताती है कि पिता की जिंदगी कानूनी पचड़े में पड़ जाने के बाद उनके परिवार ने ढेरों मुश्किलें झेली है. 5 भाई-बहिनों में केवल एक की ही शादी हो सकी. दो बहिनें लेकिन केवल बड़ी बहिन एना ही बीए तक पढ़ पायी है. शाहिदा के मुताबिक वह केवल 12वीं तक ही पढ़ सकी. घर में पेट पालने के लिए पैसे नही थे सो ऐसे में पढ़ाई छो़ड़नी पड़ गयी. बाकी भाई भी नही पढ़ सके. अब सभी भाई मारबिल बिछाने का काम करते है.
शाहिदा की मौसी मुन्ताज से जब पूछा गया कि कमर की 11 साल की कैद के बाद जब सुप्रीमकोर्ट के आदेश पर रिहाई हो रही है तो उन्होने उनके स्वागत के लिए क्या तैयारियां की है, मुन्ताज कुछ नही बोल सकी. उनकी आंखों में आंसू भर आये और उनका मन बरसों पुरानी यादों की ओर चला गया. आखिर में उन्होने सिर्फ इतना कहा कि अल्लाह ने उन्हें ईद का तोहफा दिया है. वह खुश है.
शाहिदा की मां, बड़ी बहिन एना और भाई अपने पिता की रिहाई के लिए कानूनी औपचारिकता पूरी करने दिल्ली गये हुए है. उन्हें उम्मीद है कि ईद या उसके बाद तक उनके पिता वापस घर आ सकेगें. पिता की रिहाई के लिए बीए पास एना ने सुप्रीमकोर्ट तक जाकर संघर्ष किया और आखिरकार पिता को परिवार तक लाने में कामयाब हो पायी. अपनी रिहाई के बाद कमर को हर हफ्ते इलाके के थाने में अपनी हाजिरी लगवानी होगी.