संघ प्रमुख के बयान का निहितार्थ और भाजपा

लोकसभा चुनाव 2024 में इस बार उत्‍तर प्रदेश ने देश की सियासत को झकझोर कर रख दिया। यूपी में भाजपा को तगड़ा झटका लगा, वहीं इंडी गठबंधन को बड़ी ताकत मिली। यूपी में जो एनडीए गठबंधन 2019 में 64 सीटों पर खड़ा था, वही 2024 में 36 सीटों पर फ‍िसल गया। वहीं इंडी गठबंधन यान‍ि सपा और कांग्रेस पिछले चुनावों में 6 सीट जीत सके थे, उन्‍होंने इस बार 43 सीटों पर परचम लहरा दिया। भाजपा के इस बेहद खराब प्रदर्शन में कहीं न कहीं राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ की नाराजगी को भी कारण माना जा रहा है । इसी क्रम में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के बयान को भी जोड़कर देखा जा रहा है। उधर संघ के वरिष्ठ नेता इंद्रेश ने भी 14 जून को कहा कि बीजेपी अपने अहंकार की वजह से 241 पर सिमट गई l


लोकसभा चुनाव के दौरान एक अंग्रेजी अखबार को दिए एक इंटरव्यू में बीजेपी के राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष जेपी नड्डा ने कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के समय और मौजूदा समय में काफी कुछ बदल चुका है। उन्‍होंने कहा कि पहले हम इतनी बड़ी पार्टी नहीं थे और अक्षम थे, हमें आरएसएस की जरूरत पड़ती थी, लेकिन आज हम काफी आगे बढ़ चुके हैं और अकेले दम पर आगे बढ़ने में सक्षम हैं।


जेपी नड्डा ने कहा था कि पार्टी बड़ी हो गई है और सभी को अपने-अपने कर्तव्य के साथ भूमिकाएं मिल चुकी हैं। आरएसएस एक सांस्कृतिक और सामाजिक संगठन है और हम एक राजनीतिक संगठन हैं। यह जरूरत का सवाल नहीं है। यह एक वैचारिक मोर्चा है। वो वैचारिक रूप से अपना काम करते हैं और हम अपना। हम अपने मामलों को अपने तरीके से मैनेज कर रहे हैं और राजनीतिक दलों को यही करना चाहिए।


मोदी सरकार के शपथ ग्रहण समारोह के ठीक एक दिन बाद संघ प्रमुख मोहन भागवत ने मणिपुर, चुनाव,राजनीतिक दलों के रवैये पर बात की। भागवत ने सभी धर्मों को लेकर बयान दिया। उन्होंने कहा कि सभी धर्मों का सम्मान है। लोकसभा चुनाव खत्म होने के बाद बाहर का अलग माहौल है। नई सरकार भी बन गई। संघ नतीजों के विश्लेषण में नहीं उलझता। संघ इसमें नहीं पड़ता। लोगों ने जनादेश दिया है और सबकुछ उसी अनुसार होगा। RSS चीफ ने मणिपुर के मसले पर काफी कुछ कहा और शांति बहाली नहीं होने पर चिंता व्यक्त की। मोहन भागवत की ओर से जो बयान सामने आए उसके बाद विपक्षी दलों को मोदी सरकार पर निशाना साधने का मौका देखने लगे l


नागपुर में आरएसएस प्रशिक्षुओं की एक सभा को संबोधित करते हुए सोमवार मोहन भागवत ने कहा था कि 10 साल पहले मणिपुर में शांति थी। ऐसा लगा था कि वहां बंदूक संस्कृति खत्म हो गई है, लेकिन राज्य में अचानक हिंसा बढ़ गई है।

आरएसएस प्रमुख ने कहा,मणिपुर की स्थिति पर प्राथमिकता के साथ विचार करना होगा। चुनावी बयानबाजी से ऊपर उठकर राष्ट्र के सामने मौजूद समस्याओं पर ध्यान देने की जरूरत है। उन्होंने चुनावी बयानबाजी से बाहर आकर देश के सामने मौजूद समस्याओं पर ध्यान केंद्रित करने की जरूरत पर जोर दिया। उन्होंने कहा,मणिपुर पिछले एक साल से शांति स्थापित होने की प्रतीक्षा कर रहा है। कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी दल चुनाव के दौरान भी मणिपुर हिंसा मामले में मोदी सरकार पर निशाना साधते रहे l


मोहन भागवत ने कहा कि अभी चुनाव संपन्न हुए, उसके परिणाम भी आए। सरकार भी बन गई, यह सब हो गया लेकिन उसकी चर्चा अभी तक चलती है। जो हुआ वह क्यों हुआ, कैसे हुआ, क्या हुआ। यह अपने देश के प्रजातांत्रिक तंत्र में प्रति 5 साल में होने वाली घटना है। समाज ने अपना मत दे दिया, उसके अनुसार सब होगा। क्यों, कैसे, इसमें हम लोग नहीं पड़ते। हम लोकमत परिष्कार का अपना कर्तव्य करते रहते हैं। हर चुनाव में करते हैं, इस बार भी किया है। बाकी क्या हुआ इस चर्चा में नहीं पड़ते।


मोहन भागवत ने कहा कि तकनीक की मदद से झूठ को पेश किया गया। ऐसे देश कैसे चलेगा। साथ ही उन्होंने कहा कि विपक्ष को विरोधी नहीं माना जाना चाहिए। वे विपक्ष हैं और एक पक्ष को उजागर कर रहे हैं इसलिए उनकी राय भी सामने आनी चाहिए। चुनाव लड़ने की एक गरिमा होती है उस गरिमा का ख्याल नहीं रखा गया। ऐसा करना जरूरी है क्योंकि हमारे देश के सामने चुनौतियां खत्म नहीं हुई है। पिछले दस सालों में बहुत सारी सकारात्मक चीजें हुई हैं लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हम चुनौतियों से मुक्त हो गए है l संघ को जो लोग नजदीक से नहीं जानते वे संघ नेताओं के बयानों में भ्रम में फस जाते है l

कभी कभी उन बयानों का विरोधी लोग जान बूझकर गलत तरह से पेश करते है l संघ को जो जब जरूरी लगता है तो वह देश और समाज हित में बोलने से परहेज नहीं करता हालाँकि संघ ऐसा करने में मर्यादा का पालन अवश्य करता है l विपक्ष को यह नहीं भूलना चाहिए कि बीजेपी के संगठन मंत्री बी एल संतोष संघ के ही प्रचारक है l इसके अलावा प्रदेशों की बीजेपी इकाइयों में अनेको संगठन मंत्री संघ से भेजे गए पूर्णकालिक प्रचारक है l किसी जमाने में पीएम मोदी भी संघ से संगठन मंत्री के रूप में बीजेपी में भेजे गए थे l इतना ही नहीं आज बीजेपी के संगठन और सरकार में शीर्ष पर बैठे न जाने कितने नेता है जो संघ के अनुसांगिक संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से भाजपा में गए है l खुद जे पी नड्डा भी इसके अपवाद नहीं है l इसलिए संघ प्रमुख के बयान का निहितार्थ मार्गदर्शन मानना चाहिए न कि विरोध l अगस्त 1999 की वह घटना भी नहीं भूलनी चाहिए जब केंद्र में अटल सरकार के दौरान त्रिपुरा में 4 संघ के वरिष्ठ प्रचारकों की अपहरण के बाद हत्या कर दी गई थी, तब भी संघ के अटल सरकार से मतभेदों की बात सामने आई थी l लेकिन उस समय भी वे बाते निराधार निकली थी और आज जब भाजपा की कम सीटें हुई तो संघ की नाराजगी की बात मात्र कोरी कल्पना ही है l

लेखक – मुनीष त्रिपाठी,पत्रकार, इतिहासकार और साहित्यकार है

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