गिरिधर मालवीय जैसा अनमोल रत्न, अब चला गया हिन्दी का एक समर्पित सिपाही

मालवीय परिवार का एक अपूर्ण अंग लोगों ने खो दिया है. जी हां हम बात कर रहे हैं कि महामना पंडित मदन मोहन मालवीय के यशस्वी पौत्र न्यायमूर्ति गिरिधर मालवीय की.

डिजिटल स्टोरी- आज देश को एक बहुत बड़ी क्षति हुई है. मालवीय परिवार का एक अपूर्ण अंग लोगों ने खो दिया है. जी हां हम बात कर रहे हैं कि महामना पंडित मदन मोहन मालवीय के यशस्वी पौत्र न्यायमूर्ति गिरिधर मालवीय की. जिन्होंने आंखें मूंद लीं.

बता दें कि तीर्थनगरी प्रयागराज में जिन संस्थाओं से महामना मदन मोहन मालवीय का जुड़ाव था, उनसे गिरिधर मालवीय ने भी अपनी आत्मीयता जोड़ ली थी. महामना के बेटे और निजी सचिव के रूप में परिवार और देश की सेवा करने वाले पिता पंडित गोविंद मालवीय और विषम परिस्थितियों में भी विनम्रता और समर्पण के साथ परिवार तथा देश की सेवा करने वाली मां ऊषा मालवीय से मिले संस्कार ने गिरिधर मालवीय में भी सेवा और समर्पण का संस्कार भर दिया था.

जानकारी के लिए पांचवीं बेटी सत्या के बाद कार्तिक शुक्ल की प्रतिपदा गोवर्धन पूजन के दिन 14 नवंबर 1936 को गिरिधर मालवीय का जन्म हुआ था. दादी (महामना की पत्नी) गंगा नहाने गई थीं। लौटने पर गिरिधर के जन्म का समाचार मिला तो गदगद हो उठीं। बोली गोवर्धन पूजा के दिन नारायण स्वयं गिरिधर के रूप में आए हैं और बालक का नाम गिरिधर पड़ गया।

गिरिधर का जन्म महामना के कमरे में ही हुआ था, हो सकता है इसीलिए उनका स्वभाव भी कुछ-कुछ महामना की तरह ही मृदु रहा.लगभग 8 साल की उम्र में उनका यज्ञोपवीत संस्कार हुआ, फिर महामना ने ही उन्हें दीक्षा दी. महामना इलाहाबाद उच्च न्यायालय के प्रख्यात वकील थे. पिता पंडित गोविंद मालवीय चाहते थे कि गिरिधर भी वकील बनें और आगे चलकर ऊंचे पद पर पहुंचें.

आठ मार्च 1988 की शाम मुख्य न्यायाधीश अमिताभ बैनर्जी का फोन आया तो मां ऊषा मालवीय ने ही फोन उठाया और गिरिधर को बुलाया। मुख्य न्यायाधीश ने फोन पर ही बताया कि गिरिधर हाईकोर्ट के जज हो गए हैं.गिरिधर ने मां के पांव छुए और पिताजी के चित्र के पास जाकर कहा, आपकी इच्छा पूरी हो गई। फिर 14 मार्च को उन्होंने हाईकोर्ट में न्यायाधीश का दायित्व संभाला.बतौर न्यायाधीश उनका कार्य और कार्यकाल अनुकरणीय और स्मरणीय रहा.

शुरुआती पढ़ाई…

बता दें कि गिरिधर मालवीय की प्रारंभिक शिक्षा वाराणसी के बेसेंट थियोसोफिकल स्कूल में हुई थी। काशी हिंदू विश्वविद्यालय के चिल्ड्रन स्कूल में हाई स्कूल उत्तीर्ण किया। राजनीति शास्त्र की विधि स्नातक और एमए की डिग्री उन्होंने काशी हिंदू विश्वविद्यालय से प्राप्त की। 1960 में उन्होंने वकालत शुरू कर दी। इससे एक साल पहले दिल्ली में सरदार ज्ञान सिंह वोहरा के साथ तीस हजारी कोर्ट में वकालत की। 1961 में पिता का निधन हो गया तो प्रयागराज आकर 1965 में जिला कचहरी में पं. विश्वनाथ पांडेय और सत्यनारायण मिश्र के साथ वकालत करने लगे।

इसके अलावा न्यायमूर्ति गिरिधर मालवीय के बारे में एक रोचक तथ्य है। उन्हें देवपुत्र माना गया था। उनके करीबी हरिश्चंद्र मालवीय बताते हैं कि न्यायमूर्ति गिरिधर मालवीय के पिता गोविंद मालवीय की सात बेटियां हुई थीं। कोई पुत्र रत्न की प्राप्त नहीं हो रही थी। बेटियों से तो परिवार खुश था, लेकिन भगवान से इच्छा थी कि एक बेटा भी हो जाए।

ध्यान देने वाली ये भी है कि न्यायमूर्ति प्रेमशंकर गुप्त के बाद शहर के लिए ये राष्ट्रभाषा हिन्दी के सन्दर्भ में दूसरा बड़ा झटका है। गिरिधर मालवीय अपनी हिन्दी के बहुत लायक सपूत थे। महामना पंडित मदन मोहन मालवीय की विरासत को जीवन मूल्य की तरह जीने वाले गिरधर मालवीय के मन में संगम नगरी ही जैसे सांस लेती थी, इसीलिए अक्सर उनका समन्वयवादी दृष्टिकोण अभिभूत कर जाया करता था। वो हर किसी से खुलकर मिलते थे। मैंने जब भी उन्हें देखा, सांस्कृतिक चिंताओं से भरा हुआ पाया। बदलते हुए शहर को लेकर वो बेचैन हो उठते थे और कहते थे कि अपना प्रयाग तो करुणा की देवी महादेवी का शहर है। महाप्राण निराला की कविताएं यहां सांस लेती हैं, कविवर सुमित्रानंदन पंत के छंद यहां की आत्मा में बसते हैं, फिर आख़िर क्यों कैलाश गौतम जैसे संवेदनशील कवि को यह कहना पड़ता है…

न्यायमूर्ति गिरिधर मालवीय ने भारती भवन पुस्तकालय के सभापति के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उन्होंने पुस्तकालय के संरक्षण के लिए अनेक कदम उठाए. उनकी आखिरी इच्छा थी कि पुस्तकालय में रखी लगभग 300 साल पुरानी पांडुलिपियों को डिजिटल करा दिया जाए. न्यायमूर्ति गिरिधर मालवीय 1998 से इसके सभापति रहे. वर्तमान में भी यह पद उनके ही पास था लेकिन कोविड-19 आने के बाद उन्होंने पुस्तकालय आना छोड़ दिया था.

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