
लखनऊ; 2024 के लोकसभा चुनाव में यूपी की लड़ाई दिलचस्प होने वाली है. राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) के मुकाबले सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने PDA समीकरण तैयार किया है. अगर अखिलेश का पीडीए वाला सीक्रेट प्लान कामयाब होता है…तो बीजेपी की मुश्किलें बढ़ना तय है. कहा जाता है कि दिल्ली का रास्त यूपी होकर जाता है… यह स्वाभाविक भी है क्योंकि यूपी में अन्य राज्यों की अपेक्षा सर्वाधित 80 लोकसभा सीटें हैं.
विपक्ष यह भलीभांति जानता है कि 24 में भाजपा को सत्ता में आने से रोकना है…तो पहले यूपी में हराना होगा. लेकिन यह तभी संभव है जब बीजेपी की वोट बैंक में सेंधमारी की जाए. अगर यूपी में वर्तमान की राजनीति देखें तो भाजपा के मुकाबले सपा ही खड़ी दिखती है. 2014 से बसपा का घटता जनाधार भाजपा के लिए फायदेमंद साबित हुआ है. भाजपा ने पिछले कुछ वर्षों में दलितों और पिछड़ों के बीच अपनी पैठ बढ़ाई है. जिसके चलते सपा को 2014 से लगातार हार मिल रही है.
अखिलेश यादव यह जानते हैं कि बीजेपी के मजबूत वोट बैंक के सामने सिर्फ MY समीकरण से काम नहीं चलेगा. इसीलिए आगामी लोकसभा चुनाव में PDA यानी पिछड़े, दलित, अल्पसंख्यक का विजयी फार्मूला तैयार किया है. अखिलेश के पिछले वर्षों की राजनीति भी इसी समीकरण के इर्द गिर्द घूमती दिख रही है.
लेकिन, सपा अपना PDA फॉर्मूला जनता के कैसे लागू करेगी, यह उसके लिए चुनौती होगी. क्योंकि, यूपी में वर्तमान समय में भाजपा ने करीब 42 फीसदी वोट बैंक पर कब्जा कर रखा है. 2022 के विधानसभा चुनाव की बात करें तो बीजेपी ने सर्वाधिक 41.29% वोट पाकर 255 सीटें जीती थीं. वहीं सपा ने 32.06% वोट पाकर 111 सीटें प्राप्त की थी. तीसरे नंबर पर बसपा रही थी, जिसके 12.88% वोट पाकर मात्र एक सीट जीती थी.
अगर 2019 लोकसभा चुनाव की बात करें तो यूपी में सपा-बसपा ने मिलकर कुल 15 सीटें जीती थीं. लेकिन 2024 के चुनाव में सपा-बसपा के बीच गहरी खाई दिख रही है. इसीलिए अखिलेश यादव गठबंधन पर भरोसा करने के बजाए खुद के दम पर मजबूती हासिल करना चाहते हैं. पिछले एक वर्ष में उन्होंने यूपी के लगभग सभी जिलों का दौरा किया है. सपा कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षण दिया जा रहा है. पिछड़ों, दलितों को अपने पाले में लाने के लिए अखिलेश यादव लगातार जातीय जनगणना की मांग कर रहे हैं. लेकिन यह तो समय ही बताएगा अखिलेश का PDA समीकरण कितना कामयाब होता है.