पहली बार उपचुनाव में प्रत्याशी उतारेंगी बसापा सुप्रीमो मायावती, पुराने वोट बैंक की वापसी और बीजेपी की B टीम की अवधारणा को तोड़ना बड़ी चुनौती

2024 के लोक सभा चुनाव में बीएसपी ने अकेले चुनाव लड़ने का निर्णय लिया। हालांकि इंडिया गठबंधन ने उन्हें गठबंधन में लाने की कोशिश भी की।

लखनऊ में बसपा मुख्यालय पर पार्टी सुप्रीमो मायावती ने सभी जोनल कोऑर्डिनेटर के साथ बैठक की। इस दौरान सभी मंडल कोऑर्डिनेटर, जिलाध्यक्ष समेत कई पार्टी पदाधिकारी शामिल हुए। बैठक में पार्टी की आगमी उपचुनाव में होने वाली रणनीतियों पर चर्चा की गई। इस दौरान मायावती ने पार्टी पदाधिकारियों की लाई हुई पिछली रिपोर्ट भी देखी।

बसपा के 3 सीटों पर कैंडिडेट घोषित

बहुजन समाज पार्टी ने फूलपुर विधानसभा सीट से शिव बरन पासी के नाम पर मुहर लगाई है। मिर्जापुर की मंझवा विधानसभा सीट से दीपू तिवारी का नाम घोषित किया है तो वहीं अंबेडकर नगर की कटेहरी से पवन पांडेय के बेटे प्रतीक पांडेय को उपचुनाव में उम्मीदवार बनाने की चर्चा है।

राजनीति और मौसम में परिवर्तन दिखना कोई नई बात नहीं है। 1984 से लोकसभा चुनाव और राज्यों के विधानसभा के चुनावों में उम्मीदवार उतारने वाली मायावती ने समय के साथ खुद को बदलने का मन बनाया है। माया ने उत्तर प्रदेश में होने वाले उपचुनाव में सभी 10 सीटों पर प्रत्याशी उतराने का फैसला किया है। हालांकि पिछले दो चुनावों खासकर 2022 का विधानसभा चुनाव और 2024 का लोकसभा चुनावों में बसपा का प्रदर्शन अनुमान के मुताबिक नहीं रहा। हालांकि अभी भी बीएसपी के लिए जमीनी स्तर पर चुनौतियां कम नहीं हैं।

बीएसपी का बीजेपी की बी टीम होने का आरोप

2024 के लोक सभा चुनाव में बीएसपी ने अकेले चुनाव लड़ने का निर्णय लिया। हालांकि इंडिया गठबंधन ने उन्हें गठबंधन में लाने की कोशिश भी की। लेकिन मायावती ने अपना फैसला नहीं बदला। वहीं सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव ने संविधान की प्रति दिखाकर कई सभाओं में बीएसपी पर ये आरोप लगाया कि बहुजन समाज को बसपा को वोट नहीं देना चाहिए। बसपा ने भीतरखाने से बीजेपी से हांथ मिला लिया है। अगर संविधान बचाना है कि तो बहुजन समाज को इंडिया गठबंधन को वोट देना चाहिए।

सपा के पीडीए की काट

बसपा का सपा के पीडीए का तोड़ निकालना सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है। एक ओर जहां समाजवादी पार्टी ने बड़ी संख्या में बीएसपी के नेताओं को तोड़कर अपनी पार्टी में शामिल कराया वहीं अखिलेश यादव की PDA(पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) की ब्रांडिंग बीएसपी के वोटबैंक को अपनी ओर मौड़ने में बहुत हद तक कामयाब रही है। इनमें से पिछड़ा वर्ग में जहां मौर्या, कुर्मी आदि जातियां जहां बसपा से दूर हो गईं वहीं इंद्रजीत सरोज जैसे पासवान समाज के बड़े नेताओं का बसपा से निकलकर सपा में जाना, बीएसपी के लिए अपूरणीय क्षति है। वहीं अल्पसंख्यकों की बात करें तो नसीमउद्दीन सिद्दीकी के पार्टी से निष्काशित किए जाने के बाद ऐसा कोई भी चर्चित मुस्लिम चेहरा बसपा में फिलहाल नहीं दिखता है।

बीजेपी के कुछ कदम, बदल सकते हैं मौसम

सपा, बसपा और कांग्रेस हमेशा से ही भाजपा पर मुस्लिमों से दूरी बनाए रहने का आरोप लगाते हैं। शायद इसका एक फायदा बसपा को भी मिल पाएगा। हाल ही में यूपी विधानसभा में पास धर्म परिवर्तन का नया कानून, एससी-एसटी आरक्षण के उप-वर्गीकरण के मामले ने बीएसपी को संजीवनी दी है। वहीं मस्जिद -मदरसा संचालन और वक्फ संरक्षण के लिए वक्फ संशोधन विधेयक के जरिए माया ने बीजेपी पर धार्मिक आधार पर हस्तक्षेप का आरोप लगाया। इससे पहले मायावती ने यूपी सरकार ने नजूल की जमीन के संबंधी विधेयक लाने पर भी भाजपा का विरोध किया।

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