
Jammu and Kashmir High Court on Divorce: जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में तलाकशुदा महिलाओं को ‘डाइवोर्सी’ कहकर संबोधित करने की प्रथा पर रोक लगा दी है। अदालत ने इसे ‘बुरी प्रथा’ करार देते हुए कहा कि किसी महिला को सिर्फ तलाकशुदा होने के आधार पर ‘डाइवोर्सी’ कहकर पहचान देना दर्दनाक और अनुचित है। यह फैसला तीन साल पहले दायर एक याचिका पर सुनाया गया है, जिसमें अदालत ने समाज में महिलाओं के प्रति भेदभावपूर्ण भाषा के इस्तेमाल को लेकर गंभीर चिंता जताई।
अदालत ने क्या कहा?
जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट के जज विनोद चटर्जी कोल ने कहा कि किसी महिला को सिर्फ तलाकशुदा होने के आधार पर ‘डाइवोर्सी’ कहकर पहचान देना एक गलत और तकलीफदेह आदत है। उन्होंने कहा, “अगर महिलाओं के लिए ‘डाइवोर्सी’ लिखा जा सकता है, तो पुरुषों के लिए भी ‘डाइवोर्सर’ (तलाक देने वाला) लिखा जाना चाहिए, जो कि समाज में स्वीकार्य नहीं है।”
अदालत ने यह भी कहा कि तलाकशुदा महिलाओं को उनके नाम से पहचाना जाना चाहिए, न कि उनकी वैवाहिक स्थिति के आधार पर। अदालत ने आदेश जारी करते हुए कहा कि अगर किसी याचिका या अपील में महिला को ‘डाइवोर्सी’ कहकर संबोधित किया गया तो वह याचिका खारिज कर दी जाएगी।
फैसले की मुख्य बातें
- अब किसी भी तलाकशुदा महिला को अदालत के दस्तावेजों में सिर्फ उसके नाम से पहचाना जाएगा।
- अगर किसी याचिका या अपील में महिला को ‘डाइवोर्सी’ कहकर संबोधित किया गया तो वह याचिका खारिज कर दी जाएगी।
- अदालत ने सभी निचली अदालतों को इस फैसले का पालन करने के निर्देश दिए हैं।
- याचिकाकर्ता पर 20,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया गया है।
सुप्रीम कोर्ट का पहले का निर्देश
यह पहली बार नहीं है जब किसी अदालत ने महिलाओं के प्रति भेदभावपूर्ण भाषा के इस्तेमाल पर चिंता जताई है। अगस्त 2023 में, तत्कालीन चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने सुप्रीम कोर्ट की तरफ से एक ‘हैंडबुक’ जारी की थी, जिसमें विभिन्न मामलों में महिलाओं के लिए इस्तेमाल की जाने वाली उपाधियों से बचने को कहा गया था। इस हैंडबुक में कहा गया था कि ‘अपराधी, चाहे वह पुरुष हो या महिला, केवल मनुष्य है, इसलिए हम महिलाओं के लिए व्यभिचारी, वेश्या, बदचलन, धोखेबाज, आवारा जैसे शब्दों का इस्तेमाल नहीं कर सकते।’
महिला की पहचान व्यक्तित्व और उपलब्धियों से होगी
ऐसे में जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट का यह फैसला महिलाओं के प्रति समाज के नजरिए को बदलने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह फैसला न केवल अदालती प्रक्रियाओं में बदलाव लाएगा बल्कि समाज में महिलाओं की गरिमा और सम्मान को भी बढ़ाएगा। अदालत ने यह स्पष्ट कर दिया है कि किसी महिला की पहचान उसकी वैवाहिक स्थिति से नहीं, बल्कि उसके व्यक्तित्व और उपलब्धियों से होनी चाहिए।