
Meerut: मेरठ में एक बार फिर से विकास के नाम पर किसानों के सपनों को रौंदा गया है। जिस ज़मीन पर अन्न उगाकर एक किसान ने अपने परिवार का पेट भरा, वही ज़मीन अब रसूखदारों की हवेली बनने जा रही है। मेरठ विकास प्राधिकरण (MDA) की कार्यशैली और दबंग बिल्डरों की मिलीभगत ने न केवल कानून का मज़ाक उड़ाया, बल्कि एक किसान को आत्महत्या तक मजबूर कर दिया। ये मामला सिर्फ ज़मीन या कब्जे का नहीं है, बल्कि उस सिस्टम की सच्चाई है जिसमें गरीब किसान की कोई सुनवाई नहीं होती — और रसूखदारों की फ़रमाइश पर नीतियाँ बदल दी जाती हैं।
कई किसानों ने समझौते कर लिए
गंगानगर योजना के तहत मेरठ में 1990 में भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया शुरू हुई थी। 2017 में इसी योजना की 55 एकड़ भूमि को अर्जनमुक्त घोषित किया गया था। यह भूमि छोटे किसानों की थी, जिन्हें उम्मीद थी कि अब वे राहत की सांस लेंगे।अर्जनमुक्त घोषित होते ही निजी बिल्डर्स ने किसानों से ज़मीन खरीदनी शुरू की। कई किसानों ने समझौते कर लिए, लेकिन कुछ छोटे किसान अभी भी अपनी ज़मीन पर खेती कर रहे थे और उन्होंने भूमि पर अपने अधिकार को बरकरार रखने के लिए कानूनी लड़ाई शुरू की।
HC के स्टे आदेश को नजरअंदाज
एक छोटे किसान ने अर्जनमुक्त भूमि को लेकर हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की। जनवरी 2024 में हाईकोर्ट ने इस भूमि पर स्टे ऑर्डर दे दिया। हैरानी की बात यह रही कि HC के स्टे आदेश को नजरअंदाज करते हुए MDA ने भूमि को नीलाम कर दिया। इससे पहले, VC (Vice Chairman) ने भूमि का नक्शा बदला, लैंडयूज़ बदला और सवालों के घेरे में आ गए।
रसूखदारों ने ज़मीन पर कब्जे की कोशिश की
नीलामी की गई भूमि शहर के कुछ प्रभावशाली लोगों को दी गई जिनके लखनऊ से संबंध बताए जा रहे हैं। इससे साफ संकेत मिलते हैं कि इस पूरे मामले में सत्ता से जुड़ा दबाव भी था। सितंबर 2024 में जब रसूखदारों ने ज़मीन पर कब्जे की कोशिश की, तब किसानों ने कोर्ट में अवमानना याचिका दाखिल की। दिसंबर 2024 में कोर्ट के सामने VC और सचिव ने माफी मांगी
कानूनी आदेश की अनदेखी
इसके बावजूद प्राधिकरण द्वारा किसानों को मानसिक और शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया जाता रहा। किसानों की फसलें उजाड़ दी गईं ताकि भूमि खाली कराई जा सके और रसूखदार कब्जा जमा सकें। लगातार उत्पीड़न, कानूनी आदेश की अनदेखी और न्याय ना मिलने के कारण एक किसान ने आत्महत्या कर ली। यह घटना न केवल प्रशासन की असंवेदनशीलता को उजागर करती है बल्कि सिस्टम की क्रूरता पर भी सवाल खड़े करती है।
क्या ये लोकतंत्र है, जहां किसानों की ज़मीनें नियम बदलकर छीनी जाती हैं? क्या ये न्याय है, जहां स्टे के बाद भी कब्जा कराया जाता है? और क्या ये सरकार है, जो रसूखदारों के लिए नीतियाँ बनाकर, किसानों को कब्र में धकेल देती है