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Bigg Boss के बाद मुनव्वर ने क्यों रचाई गुपचुप शादी? खुद बताया सच

Bigg Boss 17 विनर मुनव्वर फारूकी ने आखिरकार मेहजबीन संग अपने गुपचुप निकाह को लेकर चुप्पी तोड़ी है। उन्होंने बताया कि क्यों बेटे मिकेल के लिए उन्हें यह फैसला लेना पड़ा और मेहजबीन से निकाह किया।

Munawar Faruqui With Mehzabeen: स्टैंड-अप कॉमेडियन और ‘बिग बॉस 17’ के विनर मुनव्वर फारूकी आखिरकार अपनी दूसरी शादी को लेकर सामने आए हैं। जिस शादी की सिर्फ फुसफुसाहटें थीं, अब खुद मुनव्वर ने उसके पीछे की सच्चाई शेयर की है। उन्होंने बताया कि क्यों उन्होंने मेहजबीन कोटवाला से चुपचाप निकाह किया, और ये फैसला सिर्फ दिल से नहीं, ज़िम्मेदारी से भी जुड़ा था।

जब ज़िंदगी ने आईना दिखाया

मुनव्वर कहते हैं, “ज़िंदगी में जब सुकून हो ना, तब नूर आ जाता है।” ये लाइन उन्होंने डायरेक्टर फराह खान से बातचीत में कही, जो अब सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है। इसी बातचीत में उन्होंने बताया कि मेहजबीन से निकाह महज इत्तेफाक नहीं, एक सोच-समझकर लिया गया फैसला था।

जब मुनव्वर ‘बिग बॉस’ के घर में थे, तब बाहर की दुनिया में उनकी पर्सनल लाइफ को लेकर तमाम सवाल उठे। शो से बाहर आने के बाद कुछ समय में ही उन्होंने शादी कर ली। लेकिन क्यों?

बेटे मिकेल की गोद ने बदल दी सोच

मुनव्वर ने फराह से बातचीत में कहा कि शो से बाहर आने के बाद वह अपने बेटे मिकेल के साथ केवल 6-7 दिन बिता पाए। लेकिन उन्हीं कुछ दिनों में उन्हें समझ आ गया कि उनका बेटा उन्हें कितना मिस करता है। “वो बार-बार मुझे गले लगाता था… मुझे समझ आया, अब मुझे उसके लिए कुछ बड़ा करना होगा।”

दो ज़िंदगियों की ज़रूरतें मिलीं एक राह पर

मेहजबीन की भी कहानी कुछ ऐसी ही थी। वो भी एक बच्ची की सिंगल मदर थीं। मुनव्वर को लगा कि उनके और मेहजबीन के हालात एक जैसे हैं… दोनों अपने-अपने बच्चों की बेहतर परवरिश चाहते थे, और दोनों को एक साथी की ज़रूरत थी। “मैंने सोचा, क्यों न एक-दूसरे का सहारा बना जाए?” मुनव्वर ने शादी का फैसला कुछ ही समय में ले लिया।

‘बात किसी और से… शादी किसी और से’ वाला सवाल भी आया

फराह खान ने मज़ाक में पूछ ही लिया, “बात किसी और से कर रहे थे, प्यार किसी और से… और शादी किसी और से हो गई?” मुनव्वर मुस्कुराए और जवाब दिया कि बिग बॉस हाउस में उनकी शादी को लेकर कोई योजना नहीं थी। वह पूरी तरह उलझे हुए थे, लेकिन शो के बाद जब ज़िंदगी की सच्चाई सामने आई, तब उन्होंने दिल की नहीं, ज़िम्मेदारी की सुनी।

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