मुठभेड़ में मारे गए आतंकियों के नमाज-ए-जनाजा में शामिल होना राष्ट्र विरोधी गतिविधि नहीं : जम्मू-कश्मीर हाइकोर्ट

हाईकोर्ट के दो जजों की पीठ ने कहा कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार सबसे कीमती है और कानून के तहत स्थापित प्रक्रिया के मुताबिक किसी को भी इससे वंचित नहीं किया जा सकता है. जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट के जस्टिस अली मोहम्मद माग्रे और एमडी अकरम चौधरी की पीठ ने इस आधार पर कोर्ट ने गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम यानी UAPA के तहत गिरफ्तार इमाम को जमानत दे दी.

जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट ने बीते शनिवार को एक मामले में सुनवाई के दौरान कहा कि मारे गए आतंकवादियों के नमाज ए जनाजा में शामिल होना कोई राष्ट्र विरोधी कृत्य नहीं है. जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट के जस्टिस अली मोहम्मद माग्रे और एमडी अकरम चौधरी की पीठ ने आतंकी के जनाजे की नमाज में शामिल होना संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत दी गई व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधीन माना.

हाईकोर्ट के दो जजों की पीठ ने कहा कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार सबसे कीमती है और कानून के तहत स्थापित प्रक्रिया के मुताबिक किसी को भी इससे वंचित नहीं किया जा सकता है. जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट के जस्टिस अली मोहम्मद माग्रे और एमडी अकरम चौधरी की पीठ ने इस आधार पर कोर्ट ने गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम यानी UAPA के तहत गिरफ्तार इमाम को जमानत दे दी.

दरअसल, साल 2021 में हिजबुल मुजाहिदीन के एक स्थानीय आतंकवादी को सुरक्षा बलों ने मुठभेड़ में मार गिराया था. इसके बाद उस आतंकी को दफनाने से पहले जुलुस निकाला गया जिसमें भारी संख्या में लोग जुटे थे. वहीं सुरक्षाबलों के साथ मुठभेड़ में मारे गए आतंकी के नमाज-ए-जनाजा का आयोजन करने वाले कुछ लोगों सहित आरोपी इमाम के खिलाफ जम्मू कश्मीर पुलिस ने गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम यानी UAPA के तहत मामला दर्ज कर लिया.

वहीं जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट ने आरोपी इमाम को UAPA के तहत मामला होने पर भी जमानत दे दी और दो जजों की पीठ ने अपनी टिपण्णी में मेनका गांधी बनाम भारत संघ में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला दिया. जस्टिस अली मोहम्मद माग्रे और एमडी अकरम चौधरी की पीठ ने कहा कि किसी की व्यक्तिगत स्वतंत्रता में कटौती की जा सकती है, जिसके तहत किसी व्यक्ति को आपराधिक आरोप का सामना करना पड़ता है या दोषी ठहराए जाने के बाद कारावास की सजा सुनाई जाती है.

बता दें कि मामले में दर्ज प्राथमिकी में कहा गया था कि आतंकी के नमाज ए जनाजा का आयोजन मस्जिद शरीफ के इमाम जाविद अहमद शाह ने किया था. इसमें नमाज के बाद लोगों की भावनाओं को उकसाया गया और आजादी जंग जारी रखने के विवादास्पद नारे भी लगाए गए थे. वहीं मामले में सुनवाई के दौरान निचली अदालत ने मस्जिद के इमाम और अन्य लोगों की जमानत के लिए पर्याप्त सबूतों का अभाव बताया था.

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