कक्षा 10 तक हिंदी को अनिवार्य करने के गृहमंत्री अमित शाह के प्रस्ताव पर पूर्वोत्तर राज्यों में सियासी प्रतिक्रियाएं तेज!

गृहमंत्री के इस बयान के बाद केंद्रीय नेतृत्व का करीबी माने जाने वाले असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा, अब एक असहज संतुलन बनाने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि 10वीं कक्षा तक हिंदी को अनिवार्य करने के लिए अभी कोई केंद्रीय आदेश नहीं है।

7 अप्रैल को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह संसदीय राजभाषा समिति की अध्यक्षता की थी। इस दौरान उन्होंने कहा था कि विभिन्न भाषाई समुदायों के बीच अंग्रेजी नहीं वरन हिंदी एक संपर्क भाषा होनी चाहिए। उन्होंने आगे कहा कि उत्तर पूर्वी राज्यों में नौ आदिवासी समुदायों ने पहले ही देवनागरी लिपि को अपना लिया है। लिहाजा इन राज्यों में दसवीं कक्षा तक हिंदी अनिवार्य कर दी जानी चाहिए।

केंद्रीय गृहमंत्री के इस बयान के बाद देशभर के अलग-अलग राज्यों से लोगों की मिली-जुली प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं। कुछ लोग अमित शाह के इस बयान के पक्ष में हैं तो कुछ इसका विरोध कर रहे हैं। इसी क्रम में ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन के अध्यक्ष दीपांक कुमार नाथ ने चेतावनी दी कि अगर केंद्र असम में कक्षा 10 तक हिंदी को अनिवार्य करने के अपने प्रस्ताव को आगे बढ़ाता है तो हिंदी भाषा को थोपने के खिलाफ “विरोध” होगा।

नाथ ने दावा किया कि सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी अपने राजनैतिक हित को साधने के लिए हिंदी भाषा को थोपने की कवायद में जुटी है। उन्होंने कहा कि बीजेपी इस फैसले से उत्तरी राज्यों के हिंदी पट्टी को ‘राजनैतिक रूप से प्रभावित’ करने की कोशिश कर रही है।

वहीं गृहमंत्री के इस बयान के बाद केंद्रीय नेतृत्व का करीबी माने जाने वाले असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा, अब एक असहज संतुलन बनाने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि 10वीं कक्षा तक हिंदी को अनिवार्य करने के लिए अभी कोई केंद्रीय आदेश नहीं है। सरमा ने तर्क दिया, “केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि बच्चों को हिंदी जाननी चाहिए, और हम भी चाहते हैं कि वे हिंदी और अंग्रेजी सीखें, लेकिन उन्होंने यह नहीं कहा है कि हिंदी सीखने के लिए किसी को भी असमिया सीखना छोड़ देना चाहिए।”

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