शुक्रवार का दिन भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में स्वर्णिम दिन रहा. देश को पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति मिली. राष्ट्रपति चुनाव में सबसे खास बात यह रही कि विपक्ष के कई नेताओं ने दलगत राजनीति से ऊपर उठकर द्रौपदी मुर्मू का समर्थन किया. वहीं अगर राजनैतिक नजरिए से चुनाव की पृष्ठभूमि को देखें तो भले ही विपक्ष ने यशवंत सिन्हा को अपना उम्मीदवार के तौर पर क्यों ना उतारा हो, लेकिन इस मामले में उसकी एकजुटता भी तार-तार होती नजर आई.
राष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष में कई क्रॉस वोटिंग हुई है. राष्ट्रपति चुनाव के लिए मुर्मू के रूप में बीजेपी के ट्रंप कार्ड को विपक्षी दलों के एक बड़े हिस्से का समर्थन मिला. वहीं देश के सबसे बड़े सूबे और लोकसभा में 80 सीटों वाले राज्य यूपी से यशवंत सिन्हा को केवल 111 वोट मिले. राजभर द्वारा मुर्मू के पक्ष में मतदान किए जाने की घोषणा के बाद यशवंत सिन्हा के पक्ष में विपक्ष के पास 121 वोट थे, लेकिन उन्हें केवल 111 वोट ही मिले.
राष्ट्रपति चुनाव को लेकर सपा गठबंधन में दरार के संकेत
राष्ट्रपति चुनाव ने विपक्षी खेमे की एकजुटता की भी पोल खोल दी है. भले ही विपक्ष एकजुट होने के दावे क्यों ना करते हों लेकिन यह एकजुटता उस समय तार-तार होती नजर आई जब विपक्ष के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा के को केवल 111 वोट ही मिले जबकि राजभर के अलग होने के बाद विपक्ष के पास 121 वोट थे.
इसी बीच राष्ट्रीय लोकदल के 8 वोटों की स्थिति स्पष्ट नहीं है. ऐसा माना जा रहा है कि यूपी से विपक्ष के कम से कम 7-10 विधायकों ने क्रॉस वोट किया.
इस दल से सबसे ज्यादा क्रॉस वोटिंग!
राष्ट्रपति चुनाव में यूपी से द्रौपदी मुर्मू को 287 वोट मिले. समाजवादी पार्टी से अधिकांश विधायकों से मुर्मू के पक्ष में मतदान किया है. सबसे अधिक क्रॉस वोटिंग सपा खेमे से हुई है. वहीं बतौर विपक्षी दल कांग्रेस के पास केवल 2 वोट थे. रालोद के 8 वोटों की स्थिति स्पष्ट नहीं है, जबकि यूपी से ही 3 विधायकों के वोट अवैध हो गए थे.