असदुद्दीन ओवैसी के भगवा पहनने पर बवाल, क्या BJP के B टीम वाली बात हो गई सच…?

AIMIM के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने भगवा को गले लगाया तो राजनीतिक और सामाजिक हलकों में चर्चाओं का बाजार गर्म हो गया।

असदुद्दीन ओवैसी की AIMIM ने उत्तर प्रदेश के इस लोकसभा चुनाव में लड़ने के लिए अपना पूरा जोर लगाना शुरू कर दिया है। वैसे ये कोई पहली बार नहीं है जब वो उत्तर प्रदेश के किसी चुनाव में अपनी किस्मत आजमा रहे हों वो पहले भी ऐसा कर चुके हैं और लगातार बड़ी पराजय का सामना करने के बावजूद वह प्रदेश की राजनीति में एक मुकाम बनाने की एक बार फिर उम्मीद कर रहे है।

लेकिन ओवैसी की घोषणा के तुरंत बाद, विपक्षी दलों ने उन पर ‘भाजपा की बी-टीम’ होने, और ‘धर्मनिरपेक्ष’ वोटों को बांटकर BJP की जीत में मदद करने का आरोप लगाना शुरू कर दिया। देखा जाए तो यह भी कोई पहली बार नहीं है जब ओवैसी पर सत्तारूढ़ दल की बी-टीम होने का लेबल लगाया गया है। पूर्व में तो खुद कांग्रेस प्रमुख रहे राहुल गांधी सहित कई विपक्षी नेताओं ने उनके खिलाफ इसी तरह के आरोप लगाए हैं।

जब भी AIMIM किसी नए राज्य में प्रवेश करने की कोशिश करता है, तब हर बार यह आरोप बढ़ जाता है। इस बीच ओवैसी ने उत्तर प्रदेश में कुछ ऐसा कर दिया है जिससे इस मामले ने तूल पकड़ लिया है। अब तो B टीम का आरोप मानों सच्चाई में बदल गया है। मगर ऐसा क्या किया है उन्होंने यही सोच रहे हैं न आप

दरअसल aimim प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी भगवाधारी हो गए हैं, चौंक गए न ? दरअसल, हाल ही में AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी को हैदराबाद में चुनाव प्रचार के दौरान पुजारियों ने स्वागत किया था। इस दौरान पुजारियों द्वारा उन्हें भगवा दुपट्टा पहनाया गया था। उनके इस कृत्य ने राजनीतिक और सामाजिक हलकों में चर्चाओं का बाजार गर्म हो गया।

अब हमें ये समझने की जरूरत है कि उनके ऊपर बीजेपी की बी टीम होने के आरोपों में कितनी सच्चाई है ? आखिर आंकड़े और सियासी जानकारों का क्या मानना है। चलिए आपको वो भी बताए देते हैं…   सियासी जानकारों की मानें तो महाराष्ट्र, बिहार, उत्तर प्रदेश और झारखंड में पिछले छह वर्षों में एआईएमआईएम द्वारा लड़ी गई सीटों के विश्लेषण से पता चलता है कि इस सिद्धांत का वजूद है मगर बहुत थोड़ा जहाँ AIMIM तथाकथित ‘धर्मनिरपेक्ष’ दलों के वोटों में सेंधमारी करती है या भाजपा की जीत में निर्णायक भूमिका निभाती है।

इस बीच AIMIM प्रमुख ओवैसी ने खुद कई बार प्रतिक्रिया देते हुए इन आरोपों को सिरे से ख़ारिज किया है। खैर अब बड़ा सवाल ये है कि 96 साल पहले साल 1927 में बनी मजलिस-ए-इत्तेहाद-उल मुस्लिमीन, जिसने 1957, में अपने नाम में “ऑल इंडिया” जोड़ा, उसका हैदराबाद के बाहर कितना जनाधार है? AIMIM उत्तर प्रदेश में असर डाल सकती है? और इस लोकसभा चुनाव में AIMIM कितना कारगर साबित हो सकती है? इन सभी सवालों के जवाब के लिए हमको 4 जून का इंतजार करना पड़ेगा मगर इस चुनाव में हैदराबाद से आए भाईजान की एंट्री का क्या प्रभाव पड़ेगा ये देखना दिलचस्प होगा।

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