
सर्वोच्च न्यायलय में सोमवार को सरकार की मौजूदा टीकाकरण निति को लेकर दायर की गई याचिका पर सुनवाई हुई. याचिकाकर्ता ने टीकों की प्रभावशीलता पर पर्याप्त डेटा उपलब्ध नहीं होने पर चिंता व्यक्त करते हुए यह याचिका दायर की थी. इस पर सुनवाई करते हुए सोमवार को शीर्ष अदालत ने कहा कि किसी भी व्यक्ति को टीकाकरण के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता.
अपने इस कथन के पीछे सर्वोच्च न्यायलय ने तर्क दिया कि किसी भी व्यक्ति को टीकाकरण के लिए इसलिए बाध्य नहीं किया जा सकता क्योंकी यह “शारीरिक अखंडता अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के मौलिक अधिकार का एक हिस्सा है.” शीर्ष अदालत ने प्राइवेट प्राधिकरणों सहित सभी अधिकारियों और शैक्षणिक संस्थानों को निर्देश दिया कि “टीके को लेकर लोगों की राय के आधार पर समीक्षा करें.”
पीठ ने कहा कि महामारी की गंभीरता, ऑक्सीजन की कमी, मृत्यु दर और विशेषज्ञों की राय को देखते हुए वो सरकार की वर्तमान वैक्सीन नीति को “अनुचित” नहीं पाते है. पीठ ने आगे कहा, हालांकि अदालत का यह सुझाव सीमित अहमियत रखता है क्योंकी भविष्य में महामारी के प्रसार को नियंत्रित करने के लिए सरकार को सभी जरुरी कदम उठाने रोका नहीं जा सकता।”