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गाय अब बोझ नहीं, ब्रांड है… योगी सरकार ने बदल दी सोच, जानिए गोवर्धन मॉडल की पूरी कहानी

उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ सरकार ने गोवंश संरक्षण को सामाजिक और आर्थिक क्रांति में बदल दिया है। जहां 2017 से पहले गोवंश कत्लखानों में बिकते थे, आज वे गोबर-गोमूत्र आधारित उत्पादों से ग्रामीण अर्थव्यवस्था के स्तंभ बन चुके हैं। जानिए कैसे बदली प्रदेश की तस्वीर।

UP News: उत्तर प्रदेश में आज गोवंश सिर्फ एक पशु नहीं, गांव की रीढ़, महिलाओं की ताकत और युवाओं की रोज़ी-रोटी का सहारा बन गया है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अगुवाई में गोवंश संरक्षण को लेकर जो अभियान शुरू हुआ था, वह अब आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक क्रांति में बदल चुका है।

2017 से पहले… गोवंश था बेसहारा और बेआवाज़

कुछ साल पहले तक यूपी की तस्वीर कुछ और ही थी। सड़कों पर घूमते लावारिस गोवंश, फसल बर्बाद होने से परेशान किसान और कत्लखानों में बिकने के लिए मजबूर गायें – ये सब आम बात थी। उस दौर में गो-संरक्षण के नाम पर कोई ठोस नीति नहीं थी। महज 100 गो-आश्रय स्थल, सीमित टीकाकरण और न कोई डेयरी मिशन।

2017 के बाद बदली तस्वीर, गोवंश बना अर्थव्यवस्था का हिस्सा

जब योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बने… जो स्वयं गोरक्ष पीठ के पीठाधीश्वर हैं.. तो गाय और गोवंश संरक्षण सरकार की प्राथमिकता में सबसे ऊपर आ गया। 2 जनवरी 2019 को यूपी देश का पहला राज्य बना, जिसने “निराश्रित गोवंश संरक्षण नीति” लागू की। आज प्रदेश में 7,717 गो-आश्रय स्थल हैं, जहां 12.52 लाख गोवंश सुरक्षित हैं। सरकार हर गोवंश पर प्रतिदिन ₹50 खर्च कर रही है। साथ ही गो-संरक्षण केंद्रों के निर्माण में 1.60 करोड़ रुपये प्रति यूनिट का निवेश किया जा रहा है।

‘कचरा’ बना ग्रामीण आमदनी का साधन

अब वो दिन नहीं जब गोबर फेंका जाता था या सिर्फ उपले बनाए जाते थे। उत्तर प्रदेश में हर दिन 5,500 टन गोबर इकट्ठा हो रहा है, जिससे वर्मी कम्पोस्ट, गमले, धूपबत्ती, गोदीप, गोकाष्ठ, जैविक खाद और जीवामृत जैसे उत्पाद तैयार किए जा रहे हैं। महिला स्वयं सहायता समूहों को इन उत्पादों के निर्माण से जोड़ा गया है, जिससे वे आत्मनिर्भर बनी हैं और गांवों में जैविक खेती को बढ़ावा मिला है।

पशुपालन ने दी ग्रामीण युवाओं को नई उड़ान

उत्तर प्रदेश की 25.63 लाख करोड़ की जीएसडीपी में से 1.67 लाख करोड़ रुपये पशुपालन से आता है। प्रदेश आज 390 लाख मीट्रिक टन दूध का उत्पादन कर रहा है, जो देश में अव्वल है। स्वदेशी नस्लों (साहीवाल, गीर, थारपारकर) को बढ़ावा देने के लिए सरकार अनुदान और पुरस्कार दे रही है। अब तक 6,500 से अधिक पशुपालकों को सीधे डीबीटी के ज़रिए मदद मिली है।

टीकाकरण और चिकित्सा से गोवंश को मिली सुरक्षा की ढाल

2017 के बाद से अब तक… 2,202 पशु चिकित्सालयों के साथ 39 नए हॉस्पिटल और 2,575 पशु सेवा केंद्र बनाए गए। 520 मोबाइल यूनिट्स द्वारा 32.34 लाख पशुओं को चिकित्सा सुविधा दी गई। 1.52 करोड़ लम्पी वायरस के टीके लगाए गए, जिससे यूपी में गोवंश की मृत्यु दर देश में सबसे कम है।

महिलाओं और युवाओं को मिला नया सशक्तिकरण मॉडल

इतना ही नही नंदिनी कृषक समृद्धि योजना और चारा नीति 2024 जैसी योजनाएं महिलाओं और युवाओं को न केवल पशुपालन से जोड़ रही हैं, बल्कि उन्हें स्वरोजगार का अवसर भी दे रही हैं। जिससे 25 दुधारू पशुओं की यूनिट्स में 50% लाभार्थी महिलाएं हैं तो गो-आश्रय स्थलों पर महिला समूहों द्वारा गोमूत्र आधारित उत्पाद बनाए जा रहे हैं। इसके साथ ही 9,449 हेक्टेयर गोचर भूमि कब्जामुक्त कर हरे चारे का उत्पादन शुरू हुआ है।

सिर्फ संरक्षण नहीं, अब गोवंश बना निवेश का क्षेत्र

  • Artificial Insemination (कृत्रिम गर्भाधान): 2024-25 में 3.08 लाख गोवंश का निःशुल्क गर्भाधान।
  • National Livestock Mission और अवसंरचना योजना के तहत 1,200 करोड़ से ज्यादा निवेश।
  • UP GIS 2023 में पशुपालन क्षेत्र से 2,221 करोड़ का निवेश और 1.23 लाख रोजगार सृजित।

जब एक गाय ने गांव को बदल दिया

आपको जानकर ताज्जुब होगा कि गाय, जिसे कभी सिर्फ धार्मिक भावना से देखा जाता था, आज उत्तर प्रदेश के गांवों की आर्थिक क्रांति की धुरी बन चुकी है। योगी सरकार ने सिर्फ गोवंश नहीं बचाया, बल्कि हजारों ग्रामीण परिवारों को आय और आत्मनिर्भरता का रास्ता दिया। यह मॉडल न सिर्फ उत्तर प्रदेश, बल्कि पूरे देश के लिए प्रेरणा है – जहां पशुधन को संरक्षण के साथ विकास का इंजन बनाया जा सकता है।

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