चिंतन शिविर में बन रही 2024 फतह की रणनीति, राष्ट्रीय गठबंधन के लिए कांग्रेस को क्षेत्रीय दलों से समझौतों का मिला सुझाव…

कई गठबंधन समर्थक नेताओं ने सुझाव दिया कि पार्टी को केवल राज्य-स्तर पर राजनितिक समझौते में प्रवेश करने का प्रयास करना चाहिए क्योंकि क्षेत्रीय दलों का प्रभाव कुछ क्षेत्रों तक ही सीमित है, न कि पूरे देश में.

2024 के राष्ट्रीय चुनावों में सिर्फ दो साल बचे हैं. ऐसे में केंद्रीय चुनावों के लिहाज से कांग्रेस अपने स्थिति को मजबूत करने में जुटी हुई है. इसी कड़ी में राजस्थान के उदयपुर में चल रहे कांग्रेस के तीन दिवसीय चिंतन शिविर को क्षेत्रीय दलों के साथ गठबंधन के लिए भारी समर्थन मिल रहा है.

चिंतन शिविर में कई नेताओं ने कांग्रेस को मजबूत करने के लिए राज्य-स्तरीय दलों से समझौते का सुझाव दिया. कांग्रेसी चिंतन शिविर की राजनीतिक समिति ने दो दिनों तक केवल गठबंधन पर चर्चा की. भले ही, ध्रुवीकरण और बढ़ती सांप्रदायिकता चिंतन शिविर में चर्चा के दो सबसे ज्वलंत मुद्दे क्यों ना रहे हों.

फिर भी गठबंधन के सवाल को बतौर चुनावी समझौता स्वीकार करने के पक्ष और विपक्ष दोनों में आवाज मिली. अभिषेक सिंघवी, प्रमोद तिवारी और पृथ्वीराज चव्हाण सहित कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेताओं ने तर्क दिया कि कांग्रेस के लिए ‘एकला चलो रे’ मॉडल अपनाने के लिए समय बहुत कम है.

वहीं कई गठबंधन समर्थक नेताओं ने सुझाव दिया कि पार्टी को केवल राज्य-स्तर पर राजनितिक समझौते में प्रवेश करने का प्रयास करना चाहिए क्योंकि क्षेत्रीय दलों का प्रभाव कुछ क्षेत्रों तक ही सीमित है, न कि पूरे देश में.

हालांकि राज्य स्तर पर गठबंधन के सुझाव का विरोध करने वाले नेताओं में से एक नेता ने तर्क दिया कि अगर दीर्घकालिक लक्ष्यों के लिए कांग्रेस को मजबूत करना है तो अवसरवादी गठबंधन से के सुझावों को दरकिनार कर पार्टी को नए शिरे से लोगों से जुड़ने की जरुरत है. इसके साथ ही पार्टी में जरुरी परिवर्तन भी करने होंगे क्योंकि यही समय की मांग है.

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