
वैश्विक व्यापार में बढ़ती संरक्षणवादी नीतियों और भू-आर्थिक अस्थिरता के बीच भारत और यूरोपीय मुक्त व्यापार संघ (EFTA) के बीच व्यापार समझौता ‘मेक इन इंडिया’ पहल को नया बल देगा। स्विट्जरलैंड, नॉर्वे, आइसलैंड और Lichtenstein जैसे EFTA देशों की उन्नत तकनीक और वित्तीय सेवाएं भारत के नवाचार-आधारित अर्थव्यवस्था को मजबूत करेंगी।
नई दिल्ली में भारत-EFTA डेस्क की शुरुआत
भारत ने 10 फरवरी 2025 को नई दिल्ली के भारत मंडपम में EFTA डेस्क का उद्घाटन किया। यह डेस्क EFTA देशों से निवेश आकर्षित करने और भारतीय बाजार में विस्तार करने की इच्छुक कंपनियों को सहयोग प्रदान करने के लिए बनाया गया है।इसका मुख्य उद्देश्य व्यापार और निवेश को सुगम बनाना, भारतीय नीतियों की जानकारी देना, वित्तीय मार्गदर्शन प्रदान करना और भारत के निवेश परिदृश्य को समझने में सहायता करना है।
$100 अरब डॉलर का निवेश और 10 लाख नौकरियों का लक्ष्य
भारत और EFTA के बीच ट्रेड एंड इकोनॉमिक पार्टनरशिप एग्रीमेंट (TEPA) 10 मार्च 2024 को पूरा हुआ था। इस समझौते के तहत EFTA देशों ने भारत में $100 अरब डॉलर का निवेश करने की प्रतिबद्धता जताई है, जिससे 15 वर्षों में 10 लाख नौकरियां पैदा होने की उम्मीद है। इस समझौते के तहत फार्मास्युटिकल्स, केमिकल्स, खनिज और अन्य उत्पादों के लिए EFTA देशों को भारत में कम या शून्य आयात शुल्क के साथ अधिक बाजार पहुंच मिलेगी।
‘मेक इन इंडिया’ को कैसे मिलेगा लाभ?
- भारत और EFTA देशों के बीच व्यापार 2022-23 में $18.65 अरब से बढ़कर 2023-24 में $24 अरब तक पहुंच गया है।
- स्विट्जरलैंड की प्रेसिजन टेक्नोलॉजी भारत के चंद्र मिशन में अहम भूमिका निभा रही है।
- नॉर्वे और आइसलैंड की अक्षय ऊर्जा में विशेषज्ञता भारत के स्वच्छ ऊर्जा परिवर्तन में योगदान दे सकती है।
- स्विट्जरलैंड भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है और 2000 से 2024 तक भारत में $10.72 अरब का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) कर चुका है।
भारत के लिए रणनीतिक लाभ
इस व्यापार समझौते से भारत को चीन पर आयात निर्भरता कम करने में मदद मिलेगी। साथ ही, उन्नत प्रौद्योगिकी, हरित ऊर्जा और विनिर्माण क्षेत्र में विदेशी निवेश बढ़ेगा, जिससे ‘मेक इन इंडिया’ पहल को गति मिलेगी।