दिल्ली तक जाने का रास्ता यूपी से होकर जाता है और उसी यूपी में भाजपा ने इस बार के चुनाव में 400 पार का नारा लगाते हुए मिशन 80 में जुट गई है। ऐसे में उत्तर प्रदेश के लोकसभा चुनाव में इस बार क्लीन स्वीप के लिए भाजपा के तरफ से हर बड़े अहम चेहरे और सियासी शख्सियत को साधने का प्रयास करती नजर आ रही है।
वहीं इस बार के चुनावी जंग का मोर्चा भारतीय जनता पार्टी के चाणक्य कहे जाने वाले केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने संभाला है। वर्ष 2014 में भी उन्हीं के किलेबंदी ने उत्तर प्रदेश में भाजपा को अप्रत्याशित सफलता दिलाई थी। अब एक बार फिर उन्होंने सियासत की इस लड़ाई में एक अलग मोड़ दे दिया है। दरअसल, 2014 में शाह ने जो किलाबंदी की थी उसी किलेबंदी के नट-बोल्ट को कसे जाने का काम उन्होंने फिर शुरू कर दिया है। इसी क्रम के तहत 4 मई को बंगुलरु में Amit Shah ने जनसत्ता पार्टी लोकतांत्रिक के अध्यक्ष रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया से मुलाकात करते हुए सियासी गलियारों में अटकलों का बाजार गर्म कर दिया है। अब Raja Bhaiya के साथ हुई इस मुलाकात को सियासी लिहाज से काफी अहम माना जा रहा है।
अब भले ही यह मुलाकात दक्षिण भारत में हुई है, मगर इसका जो असर है वो यूपी के प्रतापगढ़ से लेकर लखनऊ तक दिख रहा है। राजनैतिक जानकारों के तरफ से इन दोनों के बीच हुई मुलाकात का कई मायने निकाले जा रहे हैं। उनका कहना है कि इन दोनों दिग्गजों के मुलाकात से ये साफ है कि इस बार उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव की राजनीतिक जमीन पर एक बार फिर बड़ा बदलाव देख सकते हैं। हाल ही में हमने देखा की कैसे प्रदेश के क्षत्रिय वर्ग का एक बड़ा हिस्सा भाजपा से नाराज चल रहा है। पश्चिमी यूपी का क्षत्रिय समाज भाजपा के खिलाफ था, मन जा रहा है उन्हीं की नाराजगी दूर करने के लिए राजा भैया को मैदान में उतारा है। उनकी अपने समाज में खास प्रभाव है।
अब एक तरफ प्रधानमंत्री मोदी हैं, जो लगातार रैलियों और रोड शो के जरिए यूपी के राजनीतिक माहौल को भाजपा के पक्ष में मोड़ने की कवायद में जुटे हुए हैं। तो वहीं, दिउसारी तरफ Amit Shah हैं, जिन्होंने Raja Bhaiya से मुलाकात कर सियासी गलियारों में हलचल तेज कर दी है। सबको मालूम है की इन दोनों के बीच यह मुलाकात शिष्टाचार भेंट तक सीमित नहीं है।