
मेरठ के चौधरी चरणसिंह विश्वविद्यालय की टीचर्स भर्ती घोटाले की जांच उत्तरप्रदेश की राज्यपाल ने शुरू करा दी है. राज्यपाल ने विश्वविद्यालय की कुलपति से 15 दिन में पूरे मामले पर रिपोर्ट तलब की है. कुलपति प्रोफेसर संगीता शुक्ला के आदेश से विज्ञापन में आरक्षण का जिक्र हुए बगैर भर्ती विज्ञापन जारी किये गये थे. घोटाला खुलने पर विश्वविद्यालय प्रशासन ने फिलहाल भर्ती प्रक्रिया टाल दी है.

चौधरी चरणसिंह विश्वविद्यालय ने विज्ञापन संख्या SFS/01/2022 और SFS/02/2022 के जरिये विश्वविद्यालय कैंपस के विभिन्न विभागों में नियुक्ति के लिए विश्वविद्यालय की बेबसाइट पर वित्रापन प्रकाशित किये थे. गूगल लिंक के जरिये आवेदकों को अपने आवेदन फाइल करने थे. यह भर्तियां संविदा/अस्थाई तौर पर शिक्षण सहायक एवं सहायक आचार्य /सह आचार्य पदों के लिए थी. लेकिन इन भर्तियों के विज्ञापन में इस चीज का कोई उल्लेख नही था कि किस पद के लिए क्या आरक्षण है.

इन भर्तियों पर आवेदन की अंतिम तारीख 15 जनवरी 2022 थी. लेकिन इससे पहले ही शोषित क्रांतिदल के राष्ट्रीय अध्यक्ष रविकांत ने इस मामले की शिकायत उत्तरप्रदेश की राज्यपाल श्रीमती आनंदीबेन पटेल से की. रविकांत ने अपना शिकायती पत्र भारत के राष्ट्रपति, केन्द्र सरकार के सामाजिक न्याय एवं आधिकारिता मंत्री, राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग और राष्ट्रीय पिछड़ावर्ग आयोग को भी भेजा था. रविकांत ने आरोप लगाया कि विश्वविद्यालय की कुलपति प्रोफेसर संगीता शुक्ला इस भर्ती से एससी-एसटी, अन्य पिछड़ावर्ग और दिव्यांगों को वंचित करने की साजिश रच रही है.
रविकांत ने यह भी आरोप लगाया कि विश्वविद्यालय के बड़े पदों पर आसीन जातिवादी और दूषित मानसिकता से अधिकारी संविधान द्वारा प्रदत्त आरक्षण व्यवस्था को ध्वस्त करने की साजिश रच रहे है. विश्वविद्यालय के अफसरों का यह असंवैधानिक कृत्य केन्द्र और राज्य की सरकारों के उस दावे की पोल खोलता है जिसमें सरकार “सबका साथ, सबका विकास” का नारा देती है. भारत के प्रधानमंत्री के शब्दों में दलित उनकी प्राथमिकता के “शीर्ष” पर है लेकिन यहां विश्वविद्यालय के अफसरों ने नौकरियों को रेवड़ियों की तरह बांटने का इंतजाम कर रखा है.

रविकांत की शिकायत का संज्ञान लेते हुए उत्तरप्रदेश राज्यपाल सचिवालय से आदेश पत्र संख्या ई-882/11-GS/2022 Vi दिनांक 28 फरवरी 2022 जारी किया गया है. इस पत्र के जरिये मेरठ के चौधरी चरणसिंह विश्वविद्यालय की कुलपति प्रोफेसर संगीता शुक्ला से पूरे मामले पर 15 दिनों में अनिवार्य रूप से आख्या तलब की गयी है. ज्ञातव्य है कि मामला खुलने के बाद कुलपति ने इस भर्ती प्रक्रिया को फिलहाल रोक दिया है.
इस भर्ती में आवेदन की अंतिम तारीख 15 जनवरी 2022 थी लेकिन उससे पहले ही पूरा मामला खुल गया. रविकांत की शिकायत के बाद लखनऊ पहुंची तो विश्वविद्यालय प्रशासन ने आनन-फानन में भर्ती प्रक्रिया रोकने का फैसला किया. मामला राज्य से केन्द्र तक पहुंच चुका था. ऐसे में विश्वविद्यालय प्रशासन के पास और कोई चारा नही था. बताया जाता है कि कुछ अफसरों ने विज्ञापन प्रकाशन के समय भी आला अफसरों को चेताया था लेकिन एक महिला अधिकारी ने उन अफसरों की एक बात तक नही सुनी और विज्ञापन जारी करा दिया.
विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार धीरेन्द्र सिंह ने बताया कि भर्ती में समानता का अधिकार संवैधानिक रूप से प्रदत्त है और यह लागू भी होना चाहिए. चुनाव आचार संहिता के चलते भर्ती प्रक्रिया रोकी गयी थी. सेल्फ फाईनेंस विषयों में भर्ती प्रक्रिया के लिए शासन से आरक्षण को लेकर स्पष्ट दिशानिर्देश भी नही थे. ऐसे में भी हमें यह भर्ती प्रक्रिया रोकनी पड़ी है. चुनाव सम्पन्न होने के बाद शासन से जो भी दिशानिर्देश आयेगें उसी के अनुसार भर्ती प्रक्रिया के लिए पुन: विज्ञापन प्रकाशित होगा. माननीय राज्यपाल को आख्या प्रेषित की जा रही है.