
Desk: इलाहबाद हाई कोर्ट ने पुलिस विभाग के लिए एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया है. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि यदि पुलिस अधिकारी अपने आधिकारिक/सार्वजनिक कर्तव्य के निर्वहन में कुछ हद तक अपने अधिकार से बढ़ते हैं तो भी उनके खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए सीआरपीसी की धारा 197 के तहत मंजूरी की आवश्यकता होगी.
आपको बता दें कि कोर्ट कुछ पुलिस कर्मियों द्वारा दायर सीआरपीसी की धारा 482 के तहत दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी. इसमें मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा उन्हें भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 323, 325, 379, 427, 452 और धारा 506 के तहत मुकदमे का सामना करने के लिए पारित आदेश को चुनौती दी गई है.
पुलिस कर्मियों/आवेदकों के खिलाफ मामला वर्ष 2014 की घटना के संबंध में दर्ज किया गया. इसमें आवेदकों (अन्य 8-10 पुलिस अधिकारियों के साथ) ने सिविल कोर्ट परिसर में कानून और व्यवस्था की स्थिति को नियंत्रित करने के लिए कथित तौर पर हल्के बल का इस्तेमाल किया गया। विवाद पीएसी कर्मियों द्वारा वकील पर गोली चलाने के बाद उत्पन्न हुआ था। इसमें वकील घायल हो गया था.
कोर्ट में कहा कि यदि कर्तव्य का निर्वहन करते हुए यदि पुलिस कर्मी ने कुछ सीमाएँ भी लांघी हैं तो अभियोजन मंजूरी आवश्यक परन्तु यदि ऑफ ड्यूटी कोई कृत्य किया गया है तो अभियोजन मंजूरी आवश्यक नहीं, उक्त टिप्पणीयों क़े साथ इलाहबाद हाई कोर्ट ने सभी पुलिस कर्मियों क़े खिलाफ जारी कार्यवाही निरस्त की.