
लखीमपुर खीरी केस में मुख्य आरोपी आशीष मिश्रा की ज़मानत पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला आया। सुप्रीम कोर्ट ने आशीष मिश्रा को इलाहाबाद हाई कोर्ट से मिली जमानत को रद्द कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने आशीष मिश्रा को एक हफ्ते में सरेंडर करने को कहा है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इलाहाबाद हाईकोर्ट जमानत पर आदेश देते समय पीड़ित पक्ष को नहीं सुना। आशीष मिश्रा की ज़मानत रद्द करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने आदेश में कहा कि हाई कोर्ट ने ज़मानत पर आदेश देते समय ग़ैर ज़रूरी चीज़ो पर ध्यान दिया, अहम सबूतों को नजरअंदाज किया, केस की मेरिट पर गौर किया, बेल पर सुनवाई में इसकी जरूरत नहीं थी, हाई कोर्ट ने जमानत देने में जल्दबाज़ी किया।
सुप्रीम कोर्ट आशीष मिश्रा की जमानत के इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को रद्द करते हुए कहा कि पीड़ितों को हर कार्रवाई में सुनवाई अधिकार है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाई कोर्ट ने बिना सभी पक्षों को ध्यान में रखें जमानत आदेश सुनाया। सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट से आशीष मिश्रा जमानत पर दोबारा सुनवाई करने को कहा सुप्रीम कोर्ट ने कहा हाई कोर्ट मामले में तेजी से सुनवाई करे और 3 महीने में फैसला सुनाने की कोशिश करें। पक्षकारों की तरफ से वकील दुष्यंत दवे ने आग्रह किया कि हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश सुप्रीम कोर्ट कहा कि इस बार किसी अन्य पीड़ित के सामने आशीष मिश्रा की जमानत याचिका पर लगाया जाए मुख्य न्यायाधीश ने इस पर कहा कि ऐसा आदेश पारित करना उचित नहीं होगा हमें यकीन है कि वह जब दोबारा इस मामले को सुनना भी नहीं चाहेंगे।
मामले की सुनवाई के दौरान उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ से वरिष्ठ वकील महेश जेठमलानी ने कहा कि हमारा स्टैण्ड वही है जो इलाहाबाद हाई कोर्ट में आशीष मिश्रा की ज़मानत याचिका के समय था। हमने हाई कोर्ट में आशीष मिश्रा की ज़मानत का विरोध किया था। यूपी सरकार ने सभी गवाहों को सुरक्षा प्रदान किया है। गवाहों की जान को कोई खतरा नहीं हैं। हमने गवाहों से संपर्क किया है। याचिकाकर्ता की तरफ से वरिष्ठ वकील दुष्यंत दवे ने कहा था कि इलाहाबाद हाई कोर्ट के आशीष मिश्रा के ज़मानत के फैसले को रद्द किया जाए। हाई कोर्ट प्रसांगिक तथ्यों पर विचार नहीं किया था। हाई कोर्ट ने फैसला देते एमी विवेक का इस्तेमाल नहीं किया था ।

पीड़ित परिवार की तरफ से वरिष्ठ वकील दुष्यंत दवे ने कहा फैसला में FIR पर ध्यान नहीं दिया जिसमें कर से कुचलने की बात कही गई है। हाई कोर्ट सिर्फ यह कहता है कि कोई गोली नहीं लगी है। मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि जज पोस्टमार्टम आदि के बारे में कैसे जा सकते है? जम ज़मानत पर सुनवाई कर रहे है। सवाल यह है कि ज़मानत रद्द करने की ज़रूरत है या नहीं? कौन सी कर थी पोस्टमार्टम आदि जैसे बकवास सवालों पर सुनवाई नहीं करना चाहते हैं।