PFI Raids: कैसे हुआ पीएफआई का जन्म, कानूनी रुप से कितना है मजबूत, 23 राज्यों तक फैले इस्लामिक संगठन का क्या है मकसद ?

बीते कुछ वर्षों में पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया यानी पीएफआई का नाम सुर्खियों में है। देश में कहीं दंगा हो कोई फसाद हो या देश विरोधी कोई साजिश पीएसआई का नाम ठीक उसी तरीके से सामने आता है जैसा कि किसी जमाने में सिमी का नाम आया करता था। आखिर क्या है पीएफआई और सिमी से इसका क्या रिश्ता है।

नई दिल्ली. बीते कुछ वर्षों में पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया यानी पीएफआई का नाम सुर्खियों में है। देश में कहीं दंगा हो कोई फसाद हो या देश विरोधी कोई साजिश पीएसआई का नाम ठीक उसी तरीके से सामने आता है जैसा कि किसी जमाने में सिमी का नाम आया करता था। आखिर क्या है पीएफआई और सिमी से इसका क्या रिश्ता है।

पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया या पीएफआई खुद को एक चरमपंथी इस्लामिक संगठन बताता है। संगठन का कहना है कि वह पिछड़ों और अल्पसंख्यकों के हक की आवाज उठाता है। संगठन के विकिपीडिया पेज के हिसाब से इसकी स्थापना 2006 में नेशनल डेवलपमेंट फ्रंट के उत्तराधिकारी के रूप में हुई। बताया जाता है कि इसकी शुरुआत केरल के कालीकट से हुई। लेकिन इसका मुख्यालय दिल्ली के शाहीन बाग में है। लेकिन एक तथ्य यह भी है की सुरक्षा एजेंसियां यह मानती है कि देश में जब इस्लामिक स्टूडेंट मूवमेंट ऑफ इंडिया यानी सिमी को जब प्रतिबंधित किया गया तो उसी के सदस्यों ने पीएफआई के नाम से नया संगठन खड़ा कर लिया।

देश के 23 से ज्यादा राज्यों में फैला पीएफआई

मुस्लिम संगठन होने नाते इनकी ज्यादातर गतिविधियां इसी समुदाय के आसपास होती है। ये संगठन वर्ष 2006 में तक खूब सुर्खियों में आया था जब दिल्ली के राम लीला मैदान में इनकी तरफ से नेशनल पॉलिटिकल कांफ्रेंस का आयोजन किया गया था जहां बड़ी संख्या में लोग पहुंचे थे। संगठन का दावा है कि वह देश के 23 से ज्यादा राज्यों में है।

पीएफआई संगठन कानूनी रूप से बहुत मजबूत

बताया यह भी जाता है पीएफआई ने अपने संगठन के विस्तार के साथ साथ खुद को कानूनी रूप से बहुत मजबूत भी किया। आज संगठन के पास वकीलों का एक बड़ा पैनल है जो समय समय पर इनको कानूनी राय देकर तमाम मुसीबतों से बचाते रहते हैं। देश के तमाम बड़े मुस्लिम वकील उनके साथ आए या यूं कहें कि वकीलों का पूरा पैनल उनके साथ है देश के तमाम सामाजिक काम करने वाली संस्थाओं को भी यह फंडिंग करते हैं कहा यह जाता है कि इसकी आड़ में पीएफआई अपनी इमेज को बेहतर बनाता है।

1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद दक्षिणी राज्यों में इस तरह के कई संगठन बने। इनमें राष्ट्रीय विकास मोर्चा, कर्नाटक फोरम फॉर डिग्निटी और तमिलनाडु की मनिथा नीति पासारी के भी नाम थे। 2006 में इन तीनों संगठनों का विलय हो जाता है और उसे पीएफआई का नाम दे दिया जाता है। संगठन का कहना है कि वह देश में मुसलमानों और दलितों के लिए काम करता है और मध्य पूर्व के देशों से आर्थिक मदद भी मांगता है। पीएफआई का मुख्यालय कोझीकोड में था। लेकिन बाद में उसे देश की राजधानी दिल्ली शिफ्ट कर दिया गया। ओएमए सलाम पीएफआई चेयरमैन हैं जिसे आज एनआईए ने हिरासत में लिया।

पीएफआई पर भड़काऊ नारेबाजी, हत्या से लेकर हिंसा फैलाने तक के आरोप

पीएफआई पर भड़काऊ नारेबाजी, हत्या से लेकर हिंसा फैलाने तक के आरोप लग चुके हैं। इसी साल मई में संगठन की एक रैली में एक बच्चे से भड़काऊ नारे लगवाए गए थे। इस मामले ने काफी तुल पकड़ लिया था। इस मामले में केरल पुलिस ने 20 से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार किया था। पीएफआई का विवादों से पुराना नाता रहा है। पीएफआई ने केरल के चेलारी में एकता मार्च निकाला था। इस रैली में आरएसएस की ड्रेस पहने युवकों को जंजीर से बंधा हुआ दिखाया था जिस पर काफी विवाद मचा था।संगठन पर केरल में कई हिंदूवादी संगठनों की नेताओं की हत्या में शामिल होने के आरोप लगते रहे हैं। इसके अलावा टेरर लिंक, दिल्ली-यूपी में सीएए-एनआरसी के खिलाफ हुए प्रदर्शन को फाइनेंस करने, हिजाब मुद्दे को सुलगाने और हाथरस कांड के दौरान हिंसा भड़काने का आरोप भी लगता रहा है।

RSS नेता की हत्या में भी पीएफआई का नाम

2017 में केरल पुलिस ने लव जिहाद के मामले सौंपे थे, जिसमें पीएफआई की भूमिका सामने आई थी। वहीं 2016 में कर्नाटक में आरएसएस नेता रूद्रेश की हत्या में भी पीएफआई का नाम आया था।

2016 में एनआईए ने केरल के कन्नूर से आतंकी संगठन आईएस से प्रभावित अल जरूल खलीफा ग्रुप का खुलासा किया था। इसे देश के खिलाफ जंग छेड़ने और समुदायों को आपस में लड़ाने के लिए बनाया गया था। बाद में एनआईए को जांच में पता चला कि गिरफ्तार किए गए ज्यादातर सदस्य पीएफआई से थे। इससे पहले 2013 में एनआईए ने पीएफआई के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की थी। चार्जशीट के अनुसार, PFI और SDPI के एक्टिविस्ट आपराधिक साजिश में शामिल हैं और उन्होंने अपने कैडर को हथियारों और विस्फोटकों की ट्रेनिंग दी थी। ये ट्रेनिंग कन्नूर जिले में लगाए गए आतंकी कैंपों में दी गई।

2012 में पीएफआई को बैन करने की उठी थी मांग

2012 में पीएफआई के टेरर लिंक सामने आने के बाद इस संगठन को बैन करने की मांग उठी थी लेकिन तत्कालीन केरल सरकार ने उसका समर्थन किया था। 2017 में एनआईए ने गृह मंत्रालय को सौंपी अपनी विस्तृत रिपोर्ट में पीएफआई और इसके राजनीतिक दल सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया एसडीपीआई के आतंकी गतिविधियों जैसे बम निर्माण में शामिल होने के चलते बैन लगाने की मांग की थी। भारत के कई राज्य सरकारें भी समय-समय पर पीएफआई को बैन करने की मांग कर चुकी हैं। सीएए-एनआरसी प्रदर्शन के दौरान यूपी सरकार ने केंद्रीय गृह मंत्रालय से इस संगठन को पूरी तरह बैन करने की मांग की थी। पिछले साल असम ने भारत सरकार से पीएफआई पर प्रतिबंध लगाने का अनुरोध किया था। असम सीएम का आरोप था कि वे सीधे तौर पर विध्वंसक गतिविधियों से जुड़े हुए हैं।

पीएफआई का नाम काफी समय से लगाातार विवादों में आ रहा है। यूपी में हाथरस कांड के दौरान सीएफआई का नाम सामने आया था। ईडी ने हाथरस दंगों की साजिश में पीएफआई और उसके स्टूडेंट विंग कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया सीएफआई के पांच सदस्यों के खिलाफ लखनऊ की स्पेशल एमपी-एमएलए कोर्ट में चार्जशीट दाखिल किया था। इसके अलावा संगठन का नाम किसान आंदोलन के समय भी आया।

कानपुर दंगों और हाथरस कांड में पीएफआई का नाम

कानपुर दंगों से लेकर हाथरस कांड तक बार-बार पीएफआई का नाम सामने आता है लेकिन इस बार एनआईए और ईडी ने साझा कार्रवाई कर इस संगठन को हिला कर रख दिया है देखना दिलचस्प होगा कि सरकार किस तरीके से कार्रवाई को आगे बढ़ाती है और पी एफ आई का अंजाम क्या होता है ?

क्या है पीएफआई और इसका इतिहास

साल 2006 में भारत के दक्षिणी राज्य केरल में पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया की नींव रखी गई. नेशनल डेवलपमेंट फ्रंट (NDF) के रूप में इसका जन्म हुआ. फिर इसमें कई अन्य मुस्लिमों संगठनों जैसे मनीथा नीति पसराय, कर्नाटक फोरम फॉर डिग्निटी, राष्ट्रीय विकास मोर्चा और अन्यों का इसमें विलय हो गया. जिसके बाद इसे पीएफआई यानी पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया के नाम से पहचाना गया.

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