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अबला नारी नहीं अबला पुरुष….अतुल,मानव और अब सौरभ की दर्दभरी कहानियां! आखिर कब मिलेगा न्याय?

हाल ही में, एक के बाद एक ऐसी दिल दहलाने वाली खबरें सामने आई हैं, जिन्होंने हर किसी को सोचने पर मजबूर कर दिया है। क्या पुरुषों के साथ हो रहे..

प्लीज, जरा मर्दों के लिए भी सोचिए… ये शब्द सिर्फ एक आदमी की चीख नहीं हैं, बल्कि उस सिस्टम की तरफ एक सवाल हैं, जो पुरुषों की पीड़ा को नजरअंदाज करता है। वो चाहे TCS मैनेजर मानव शर्मा हो… बेंगलुरु के इंजीनियर अतुल सुभाष हो …या फिर सौरभ राजपूत….ये कोई एक या दो मामला नहीं हैं…. बल्कि ना जाने ऐसे कितने मामले हैं जो सिस्टम की कड़वी सच्चाई को उजागर करते हैं।

इन दिनों हमारे समाज में पुरुषों के खिलाफ बढ़ते अत्याचार और उनकी अनदेखी पर चर्चा छिड़ी हुई है। हाल ही में, एक के बाद एक ऐसी दिल दहलाने वाली खबरें सामने आई हैं, जिन्होंने हर किसी को सोचने पर मजबूर कर दिया है। क्या पुरुषों के साथ हो रहे अत्याचारों और उनके दर्द को अब तक नजरअंदाज किया जाता रहा है? क्या समाज में पुरुषों को अपनी आवाज उठाने का हक नहीं है? और क्या महिलाओं को जो नियम कानून मिले हैं… वो उसका गलत इस्तेमाल कर रही हैं। आखिर इस पुरुष प्रधान देश में कब से पुरुषों के साथ उत्पीड़न होने लग गया। सवाल तो बहुत हैं लेकिन जवाब एक का भी नहीं हैं। खैर आइए एक नजर डालते हैं… हाल में हुई कई घटनाओं पर…….

ताजा उदाहरण हैं सौरभ राजपूत का…. जो मर्चेंट नेवी में था.. अच्छी खास जॉब भी थी और एक प्यारी-सी 6 साल की बेटी भी थी। हालांकि उसकी खुद की बीवी ने ही अपने बॉयफ्रेंड के साथ मिल कर एक फिल्मी कहानी रची…. और हत्या कर दी….. सोचिए कातिल महिला और उसके प्रेमी के ऊपर ऐसा दिमागी जुनून सवार होता है कि सौरभ को पहले नशीली दवा दी जाती है. फिर सिर को धड़ से अलग किया जाता है और फिर ड्रम में लाश और उसके टुकड़ों को रखकर सीमेंट और रेत का घोल डाल दिया जाता है. इतना सब कुछ करने के बाद मुस्कान बॉयफ्रेंड के साथ शिमला घूमने निकल जाती हैं। आखिर इतनी हैवानियत कि हर सुनने वाला हैरान रह गया। ये क्रूरता इतनी भयावह है कि सब सोच रहे हैं – “कोई पत्नी ऐसा कैसे कर सकती है?”

ऐसे में तो सवाल यही उठता हैं कि क्या पुरुषों के साथ….इस वक्त जो एक के बाद एक खबरें आ रही हैं.. क्या उनको भी महिलाओं की तरह एक कानून की जरुरत हैं….. इसके साथ ही हाल में हुए TCS के मैनेजर मानव शर्मा और इंजीनियर अतुल सुभाष, जिनकी आत्महत्या ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि जब विवाद होता है, तो क्यों पुरुषों के लिए वही कानून लागू नहीं होते जो महिलाओं के लिए होते हैं? इन दोनों ने आत्महत्या से पहले अपनी पत्नियों पर प्रताड़ना के आरोप लगाए और अपने अंतिम शब्दों में यह कहा कि “प्लीज, मर्दों के बारे में भी सोचिए”। क्या इस समाज में मर्दों के लिए किसी को चिंता है? आज के दौर में जो हो रहा हैं। इसको देखने के बाद तो यही नजर आ रहा हैं कि पुरुष भी आज का अबला पुरुष हैं ये कहना शायद गलत नहीं होगा….

आइए अब आपको आगरा के मानव शर्मा के बारे में बताते हैं….. दरअसल, मानव शर्मा TCS मैनेजर थे और मानव ने आत्महत्या से पहले एक वीडियो रिकॉर्ड किया, जिसमें उन्होंने अपनी पत्नी पर गंभीर आरोप लगाए और कहा कि “प्लीज, मर्दों के बारे में भी सोचिए।” मानव की आत्महत्या ने फिर से यह सवाल उठाया कि क्यों पुरुषों को अक्सर मानसिक और शारीरिक प्रताड़ना का शिकार होना पड़ता है, लेकिन उनके लिए न्याय की कोई व्यवस्था नहीं होती। इस वीडियो ने पूरे देश में एक शोक की लहर पैदा कर दी, और हजारों लोग अब इस पर बहस कर रहे हैं कि क्या मर्दों को भी महिलाओं की तरह अपनी समस्याओं का समाधान पाने का हक नहीं होना चाहिए?

अब बात करते हैं अतुल सुभाष की… जो बेंगलुरु में इंजीनियर थे। अतुल सुभाष ने आत्महत्या करने से पहले 24 पन्नों का एक सुसाइड नोट लिखा। उसने अपनी पत्नी और उसके रिश्तेदारों पर कई आरोप लगाए। अतुल ने लिखा कि उसकी पत्नी ने उसके खिलाफ कई केस दर्ज कराए और भारी रकम की मांग की। साथ ही अतुल सुभाष ने एक वीडियो भी बनाया, जिसमें उसकी पीड़ा साफ झलक रही थी। अतुल की कहानी उस सिस्टम की कड़वी सच्चाई को दिखाती है, जहां पुरुषों को न्याय नहीं मिलता।

इन घटनाओं ने यह साबित कर दिया है कि हमारे समाज में पुरुषों के खिलाफ हो रहे अत्याचारों की अनदेखी होती रही है। जबकि महिलाओं के मामलों में न्याय की व्यवस्था काफी सख्त है, वहीं पुरुषों को अपनी पीड़ा का समाधान पाने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ता है। ऐसे में सवाल ये हैं कि क्या पुरुषों को भी वही अधिकार मिलना चाहिए जो महिलाओं को मिलते हैं?

ऐसे में देश के 75 करोड़ पुरुष आज ये सवाल पूछ रहे हैं – “क्या हमें बराबरी का अधिकार नहीं है?” जब पुरुष और महिलाओं के बीच विवाद होता है, तो क्यों पुरुषों के लिए वही कानून नहीं लागू होते, जो महिलाओं के लिए होते हैं? क्यों पुरुषों की आवाज़ दबा दी जाती है? क्यों उनकी पीड़ा को नजरअंदाज किया जाता है? ये सिर्फ कहानियां नहीं हैं। ये उस सिस्टम की कड़वी सच्चाई हैं, जो पुरुषों की पीड़ा को नजरअंदाज करता है। ये उस समाज की चीख हैं, जहां पुरुषों को भी न्याय की जरूरत है। ये उस कानून की कमी को दिखाती हैं, जो पुरुषों को भी सुरक्षा दे। क्योंकि न्याय सिर्फ एक लिंग के लिए नहीं होता, न्याय सबके लिए होता है।

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